भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस कमेटी (एआईसीसी) द्वारा एक ‘आंदोलन समिति’ का गठन किया गया था। अब कहा जा रहा है कि इस नए टूलकिट को लागू करने के लिए कॉन्ग्रेस सिविल सोसाइटी संगठनों, एक्टिविस्ट और बुद्धिजीवियों को अपने साथ जोड़ने की योजना बना रही है।
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अपनी पार्टी को लामबंद करने के अलावा कॉन्ग्रेस पार्टी मोदी सरकार से परेशान भाजपा विरोधी सामाजिक कार्यकर्ताओं, गैर सरकारी संगठनों और बुद्धिजीवियों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश में है।
स्रोत के हवाले से दी गई जानकारी के मुताबिक, आंदोलन समिति के अध्यक्ष बनाए गए दिग्विजय सिंह संघ परिवार के विरोध में सिविल सोसाइटी संगठनों और कार्यकर्ताओं के साथ नेटवर्क के लिए जाने जाते हैं।
#किसान_एकता_ज़िंदाबाद https://t.co/W8HENSN5PC
— digvijaya singh (@digvijaya_28) September 7, 2021
इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि सिंह ने पैनल के गठन के तुरंत बाद तीन कृषि विधेयकों का विरोध कर रहे कथित किसानों की जय-जयकार करते हुए ट्वीट किया था।
भीड़तंत्र का लाभ उठाएगा आंदोलन पैनल
कॉन्ग्रेस कमिटी के अंदर के सूत्रों ने विभिन्न मुद्दों पर नागरिकों को भड़काने के लिए लंबे समय से तैयार आंदोलन की रणनीति का संकेत दिया है। इसमें मुद्रीकरण (राष्ट्रीय/सार्वजनिक संपत्ति का), मुद्रास्फीति और बेरोजगारी शामिल है, जिसमें संघ परिवार के संगठनों को निशाना बनाए जाने की पूरी संभावना है।
अगले सप्ताह होने वाली आंदोलन समिति की बैठक में कॉन्ग्रेस किसानों के चल रहे विरोध प्रदर्शनों पर मुख्यरूप से अपना फोकस रखेगी। कॉन्ग्रेस पार्टी अपनी समान विचारधारा वाले 18 विपक्षी दलों के साथ मिलकर 20 से 30 सितंबर तक केंद्र के खिलाफ देशव्यापी विरोध का आह्वान कर सकती है। इस बीच 27 सितंबर को भारत बंद की भी योजना है।
कॉन्ग्रेस की उत्तर प्रदेश की महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा आंदोलन समिति की भी सदस्य हैं। यह आंदोलन समिति भाजपा शासन के खिलाफ असंतोष फैलाने की कवायद पर विचार कर सकती है। कॉन्ग्रेस को खुद उसके द्वारा शासित हर राज्य में खासी निराशा मिली है, जिससे पार्टी को भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ी है। राष्ट्रीय विपक्ष के रूप में इसकी भूमिका के लिए भी इसकी कड़ी आलोचना की गई है।
एक मजबूत राष्ट्रीय विपक्ष के रूप में खुद को पुनर्जीवित करने के लिए कॉन्ग्रेस पार्टी को आंदोलनकारियों, संदिग्ध गैर सरकारी संगठनों और पुराने कार्यकर्ताओं पर भरोसा करना पड़ रहा है। उत्तम कुमार रेड्डी, मनीष चतरथ, बीके हरिप्रसाद, रिपुन बोरा, उदित राज, रागिनी नायक और जुबेर खान जैसे कॉन्ग्रेस पार्टी के नेता पहले ही इस पैनल के तहत किसान आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं।
कॉन्ग्रेस-सोरोस-आंदोलनजीवी तिकड़ी
जॉर्ज सोरोस, एक हंगेरियन अमेरिकी व्यवसायी और एक स्व-घोषित फिलेंथ्रोपिस्ट और गैर-सरकारी संगठनों, मीडिया, बुद्धिजीवियों, आदि के द्वारा वित्त पोषित विभिन्न नेटवर्क का उपयोग करके भारत में उथल-पुथल पैदा करने में भूमिका के बारे में चिंता करनी चाहिए।
सोरोस ने विश्व स्तर पर हर ‘राष्ट्रवादी सरकार’ को खत्म करने की कसम खाई है, उसी ने भारत में अपना ‘लोकतंत्र की मौत का जाल’ बिछाया है।
मीडिया गिरोह
इंडियन एक्सप्रेस के रितु सरीन श्यामलाल यादव और पी वैद्यनाथन अय्यर जैसे पत्रकार, आईएनएस के पूर्व संपादक (अब जर्मन डायचे वेले के लिए काम करते हैं राकेश कलशियान), मुरली कृष्णन और एशियन एज के यूसुफ जमील, ये सभी इंटरनेशनल कमेटी ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) के माध्यम से सोरोस मीडिया नेटवर्क के लिए काम करते हैं।
कॉन्ग्रेस के प्रमोटर अमर्त्य सेन के साथ जॉर्ज सोरोस के एनजीओ से जुड़े हैं। बता दें कि ये एनजीओ भारत में ‘पर्यावरण न्याय’ के लिए काम करता है। इन सब के अलावा हर्ष मंदर इकलौते ऐसे व्यक्ति हैं, जिसने हाल के दिनों में दूसरों की तुलना में देश की इमेज को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है। ओपन सोसायटी फाउंडेशन से जुड़े हर्ष मंदर के कॉन्ग्रेस पार्टी के साथ बहुत ही घनिष्ठ संबंध रहे हैं। दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगा भड़काने के मामले में, खासतौर पर साल 2019 में जामिया मिलिया इस्लामिया परिसर के आसपास की हिंसा के लिए जिम्मेदार हर्ष मंदर पिछले कुछ समय से जाँच के दायरे में हैं।
आंदोलनजीवी गैंग
इसके अलावा देश में किसानों के चल रहे विरोध प्रदर्शन में किसान नेता बने योगेंद्र यादव के भी कथित तौर पर सोरोस से लिंक हैं। 2006 में सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज में प्रोफेसर के रूप में यादव ने पहली बार भारत आने वाले सोरोस के सामने स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी इन साउथ एशिया (एसडीएसए) पर स्टडी रिपोर्ट प्रस्तुत किया था।
सोरोस और उसका गिरोह भारत के संशोधित नागरिकता मानदंडों के भी गंभीर रूप से आलोचना करता है। सीएए विरोधी दंगों को भड़काने वाले इन मोदी विरोधी कार्यकर्ताओं में जॉन दयाल, उषा रामनाथन, उमर खालिद और तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोग भी शामिल हैं। कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाले राजीव गाँधी फाउंडेशन और सोरोस-वित्त पोषित संगठनों से इसके संबंध भी नए नहीं हैं।
नेटवर्क का पता लगाना
विपक्ष के रूप में कॉन्ग्रेस की भूमिका को बयाँ करने के लिए इतिहास में बहुत पीछे जाने की जरूरत नहीं है। सीएए के विरोध और अब किसान आंदोलन (विशेषकर पंजाब, एक कॉन्ग्रेस शासित राज्य) को पार्टी के अटूट समर्थन ने उनके टूलकिट को बेनकाब कर दिया है।
वैक्सीन की झिझक पैदा करने से लेकर मृतकों पर मुँह फेरने तक, जैसा कि राष्ट्र महामारी की तीसरी लहर के कगार पर है कुछ राज्यों में, कॉन्ग्रेस पार्टी ने केवल देश के संकट को बढ़ाया है।
पेगासस स्नूपगेट से लेकर गाजियाबाद के ‘जय श्री राम’ फर्जी अपराध सहित अपने नेटवर्क का इस्तेमाल कर कॉन्ग्रेस ने जो तमाशा करने की कोशिश की उन्हें भूलना नहीं चाहिए, जिस पर कॉन्ग्रेस के बड़े नेताओं ने ब्राउनी पॉइंट हासिल करने की कोशिश की थी।
उपरोक्त सभी घटनाओं ने भारत के विकास में बाधा उत्पन्न की या महामारी के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करने की कोशिश की। ये एक अच्छी तरह से बुने हुए मकड़जाल की तरह लग रहा था, जो कि आंदोलनजीवी, बुद्धिजीवी और मीडिया के व्यापक नेटवर्क का उपयोग से गढ़ा गया है।
पहले से मौजूद नेटवर्क के साथ यह देखना दिलचस्प होगा कि कॉन्ग्रेस देश को पटरी से उतारने के लिए आगे अब इसका दुरुपयोग कैसे करती है।