कॉन्ग्रेस (Congress) के वरिष्ठ नेता और असंतुष्ट गुट जी-23 के सदस्य गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने पार्टी के भीतर जारी अंतर्कलह के बीच शुक्रवार (18 मार्च) को अंतरिम अध्यक्षा सोनिया गाँधी से मुलाकात की। पार्टी में सुधार के तरीकों पर चर्चा करने के लिए गाँधी परिवार और जी-23 के बागी नेताओं के बीच यह दूसरी मुलाकात थी। उधर 14 मार्च को कॉन्ग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक हुई और हाल ही में संपन्न पाँच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन पर चर्चा हुई।
बताया जाता है कि लगभग एक घंटे तक चली बैठक के दौरान आजाद ने कॉन्ग्रेस कार्यसमिति (CWC) का चुनाव कराने, केंद्रीय चुनाव समिति (CEC) को निर्वाचित इकाई बनाने और निष्क्रिय संसदीय बोर्ड (Parliamentary Board) को फिर से जीवित करने का प्रस्ताव रखा।
सोनिया गाँधी से मुलाकात के बाद आजाद ने संवाददाताओं से कहा कि कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का पद ‘रिक्त नहीं है’ और CWC ने अगस्त-सितंबर में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव कराने का फैसला किया है। आजाद CWC के सदस्य हैं।
उन्होंने कहा, “कॉन्ग्रेस अध्यक्ष के साथ बैठक अच्छी थी। हम कॉन्ग्रेस प्रमुख से मिलते रहते हैं और वह नियमित रूप से नेताओं से मिलती हैं। हाल ही में कार्यसमिति की बैठक हुई थी और पार्टी को मजबूत करने के लिए सुझाव माँगे गए थे। मैंने कुछ सुझाव भी दिए थे। इसलिए मैंने उन सुझावों को दोहराया है। कुल मिलाकर चर्चा आगामी विधानसभा चुनाव पर रही। पार्टी में सुधार के सुझाव सार्वजनिक रूप से नहीं दिए जा सकते। पार्टी अध्यक्ष के लिए अभी कोई पद खाली नहीं है। उन्होंने (सोनिया गाँधी ने) इस्तीफे की पेशकश की, लेकिन हमने इसे खारिज कर दिया।”
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद दस जनपद पहुंचे कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी से मिलने। साथ ही ग़ुलाम नबी आज़ाद ने बताया कौन करेगा पार्टी प्रेजिडेंट के पद का फैसला।#ReporterDiary #Delhi (@supriya23bh) pic.twitter.com/NG5IdaIVl6
— AajTak (@aajtak) March 18, 2022
लगता है कि कॉन्ग्रेस ने राहुल गाँधी के अध्यक्ष बनने की उम्मीद छोड़ दी है। गुरुवार (17 मार्च) को राहुल गाँधी ने कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा से मुलाकात की थी और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने गुलाम नबी आजाद से दो बार फोन पर बात की थी। खबरों के मुताबिक, कहा जाता है कि दोनों नेताओं राहुल गाँधी और हुड्डा ने पार्टी के पुनर्गठन पर चर्चा की थी। कॉन्ग्रेस के जी-23 बागी गुट की भी यही प्रमुख माँग है।
आजाद के आवास पर जी-23 नेताओं की बैठक
जी-23 के सदस्यों ने भविष्य की रणनीति पर चर्चा के लिए बुधवार (16 मार्च) की रात को गुलाम नबी आजाद के आवास पर मुलाकात की थी। बैठक के दौरान G-23 सदस्यों ने कथित तौर पर चर्चा की कि कैसे पार्टी के लिए आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका सामूहिक और समावेशी नेतृत्व और सभी स्तरों पर निर्णय लेने का एक मॉडल अपनाना था। G-23 नेताओं ने कॉन्ग्रेस नेतृत्व से 2024 के लोकसभा चुनाव में एक विश्वसनीय विकल्प का मार्ग तैयार करने के लिए समान विचारधारा वाली ताकतों के साथ बातचीत करने का भी आग्रह किया।
बैठक कपिल सिब्बल के आवास पर होनी थी, लेकिन अंतिम समय में कार्यक्रम स्थल को स्थानांतरित कर दिया गया। बैठक में शामिल होने वाले नेताओं में आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, संदीप दीक्षित और शशि थरूर शामिल थे। शशि थरूर सहित की उपस्थिति से कई कॉन्ग्रेस नेता आश्चर्यचकित थे, क्योंकि हाईकमान पर सवाल खड़ा करने के कारण थरूर या मुकुल वासनिक ने इसके बैठकों में आना बंद कर दिया था।
पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे 10 मार्च को घोषित होने के बाद से कॉन्ग्रेस नेतृत्व दबाव में है। वापसी की सभी उम्मीदें खत्म होने के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता गाँधी परिवार के अलावा किसी और को पार्टी की कमान सौंपने की माँग दोहरा रहे हैं।
‘घर की कॉन्ग्रेस’ के बजाए ‘सबकी कॉन्ग्रेस’: सिब्बल
दिलचस्प बात यह है कि कॉन्ग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक के एक दिन 15 मार्च को पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने राहुल गाँधी और पार्टी आलाकमान के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने सवाल किया था कि राहुल गाँधी के पास पार्टी में कोई औपचारिक पद नहीं है, फिर उन्होंने पंजाब जाकर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी क नाम की घोषणा कैसे कर दी। उन्होंने यह भी कहा कि गाँधी परिवार को पार्टी का कमान छोड़ देना चाहिए।
इसी तरह सोमवार (14 मार्च) को कार्यसमिति की बैठक के दौरान सिब्बल ने कहा कि पार्टी को लोकसभा चुनाव हारे आठ साल हो गए हैं। अगर नेतृत्व को अभी भी यह पता लगाने के लिए ‘चिंतन शिविर’ की आवश्यकता है कि क्या गलत हुआ तो वे सपनों की दुनिया में रह रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि सीडब्ल्यूसी के प्रमुख नेता यह महसूस करते हैं कि गाँधी परिवार के बिना कॉन्ग्रेस चल नहीं पाएगी। उन्होंने कहा कि वे ‘सबकी कॉन्ग्रेस’ चाहते हैं न कि ‘घर की कॉन्ग्रेस’। ‘सब की कॉन्ग्रेस’ से उनका मतलब उन पुराने सदस्यों को लाना है, जिन्होंने पार्टी छोड़ दी और बीजेपी के खिलाफ लड़ाई लड़ी।