महाराष्ट्र में 117 नए मामलों के साथ कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या 1,135 हो चुकी है। राज्य के विभिन्न हिस्सों में कोरोना वायरस के संक्रमण से आठ लोगों की मौत हुई है। इसके साथ राज्य में संक्रमण से कुल मृतकों की संख्या 72 हो गई है। लेकिन महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे की सोशल मीडिया सेना कुछ और ही कह रही है। यह सेना रोजाना ट्विटर पर दिन के कम से कम 3 टाइम एक ही सन्देश ट्वीट करती है, जिसमें महाराष्ट्र सरकार की कोरोना महामारी से निपटने के प्रयासों को लेकर पीठ थपथपाई गई होती है।
सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि सोशल मीडिया पर एक सुर में महाराष्ट्र सरकार के गुणगान में भक्तिगीत गाती हुई इस सेना के ट्वीट महाराष्ट्र के मंत्रियों की प्रेस वार्ता से कहीं भी मेल नहीं खाते हैं। जमीनी आँकड़ों से इतर, कोरोना पर महाराष्ट्र सरकार की वाह-वाही करने वाला यह गिरोह कई दिनों से एक ही प्रकार के ट्वीट कर रहा था।
इस गिरोह में मौजूद लोगों के नाम देखकर ही इसके दावों की विश्वसनीयता स्पष्ट हो जाती है, क्योंकि इसमें वो नाम हैं, जो अक्सर अपने जन्मदिन की पार्टी से लेकर हर दूसरे फंक्शन में पटाखे फोड़ने के बाद ट्विटर पर पर्यावरण बचाने की अपील वाले ट्वीट किया करते हैं। यही नहीं, ये गिरोह जनता कर्फ्यू से लेकर मोमबत्ती और दीपक जलाने जैसी बातों से भी असहमत नजर आता है।
बहुत दिनों से सोनम कपूर, जावेद अख्तर, स्वर भास्कर, स्वाति चतुर्वेदी, आदि ट्विटर पर महाराष्ट्र सरकार को शाबासी देते हुए देखे जा रहे थे। इनका दावा है कि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार कोरोना से निपटने में कहीं ज्यादा सफल रही है।
लेकिन आज की ही फ्री प्रेस जरनल की एक रिपोर्ट में आँकड़े एकदम उलट है। यह रिपोर्ट बताती है कि महाराष्ट्र सरकार कोरोना से होने वाली मौतों को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित नहीं है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि स्वास्थ्य सेवा पर पैसा खर्च करने में सभी बड़े राज्यों में यह सबसे पीछे रहा है। यह आँकड़े अप्रैल 07, 2020 को CARE रेटिंग्स द्वारा निकाले गए एक शोध पत्र द्वारा सामने लाए गए हैं।
#Coronavirus in India: Maharashtra emerges as a state that does not care much about people’s health @rnbhaskar1 writes#coronavirusIndia #COVID19 https://t.co/wmuMWtbgkv
— Free Press Journal (@fpjindia) April 8, 2020
सरकार द्वारा पैसे खर्च करने के तरीके के विश्लेषण पर जरा सा ध्यान देने पर आप पाएँगे कि स्वास्थ्य सेवाओं की तुलना में पुनर्वास पर अधिक खर्च किया है। जैसा कि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीबों की झुग्गियाँ चुनाव के समय वोटबैंक की तरह इस्तेमाल की जाती हैं और आखिर में रियल स्टेट की अपार सम्भावनाएँ तैयार करती हैं। यदि आपको ध्यान होगा तो दिल्ली विधानसभा चुनावों में यही झुग्गियाँ अरविन्द केजरीवाल का सबसे बड़ा टारगेट रहती आई हैं। महाराष्ट्र में इन झुग्गियों की संख्या पूरे भारतवर्ष में सर्वाधिक हैं।
यह भी पाया गया कि बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) कुछ इमारतों में सैनिटाइजर्स इस्तेमाल करती रही, जबकि कुछ को उसने छोड़ दिया। दूसरा तरीका यह है कि आप BMC को पत्र लिखें और कोरोना की महामारी के टाइम में लाइन में लगकर अपने नम्बर आने का इन्तजार करें।
इस चार्ट में आप देख सकते हैं कि महाराष्ट्र ने अपने जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) के प्रतिशत के रूप में किसी भी बड़े राज्यों की तुलना में सबसे कम पैसे खर्च किए हैं। एक और बात यह कि स्वास्थ्य सेवाओं पर अपने कुल राजस्व का सबसे कम प्रतिशत खर्च करने वाला अभी तक सिर्फ तेलंगाना ही था। तो क्या अब इस मामले में महाराष्ट्र ने अपनी प्रतिस्पर्धा तेलंगाना से शुरू कर दी है?
इतनी बड़ी आपदा के समय भी यदि महाराष्ट्र सरकार झुग्गियों की अनदेखी कर रही है तो यहाँ हर हाल में एक बड़े संकट की और इशारा करता है। वह भी तब, जब महाराष्ट्र कोरोना संक्रमितों की संख्या में एक अग्रणी राज्य है।
लेकिन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके पुत्र आदित्य ठाकरे का सारा ध्यान शायद सिर्फ सोशल मीडिया पर छवि को दुरुस्त रखने में है। बॉलीवुड की वे ‘हस्तियाँ’ जिन्होंने रोजगार की कमी के चलते केंद्र की दक्षिणपंथी सरकार-विरोधी एजेंडा अपनाकर अपनी प्रासंगिकता बरकरार रखी है, वह इस काम उनके सहायक की भूमिका में नज़र आ रही हैं।