आम चुनाव सर पर हैं, चारों दिशाओं में नेताओं की हुँकार भरने की खबर आ रही हैं। सबके जीतने के पूरे आसार नजर आ रहे हैं क्योंकि जिस स्तर पर रैलियाँ और भीड़ जुटाने के प्रयास देखने को मिल रहे हैं उनको देखते हुए ‘हार’ शब्द को चुनावी डायरी से विलुप्त कर लिया जाना चाहिए।
कुछ ऐसी घटनाएँ भी हैं जो किसानों की तस्वीर खींचने वालों को कष्ट दे सकती हैं। 4 बीघा जमीन पर अधपकी फसल को मायावती की रैली के लिए समय से पहले काटा जा रहा है। रोजगार के गलत आँकड़े जुटाने में व्यस्त मीडिया प्रमुखों से मेरा व्यक्तिगत निवेदन है कि अपने मतलब के प्रोपेगैंडा बेचने से कुछ समय निकालकर किसानों की एड़ियों और बिवाइयों की तस्वीर बेचने के बाद बड़े मीडिया गिरोहों को इस खबर को भी प्रमुखता से छापना चाहिए।
6 अप्रैल को रुड़की में प्रस्तावित BSP प्रमुख मायावती की जनसभा के लिए 4 बीघा में खड़ी गेहूँ की फ़सल काटी जा रही है। फसल को इसलिए कटवाया जा रहा है ताकि मायावती का विमान आसमान से वहाँ पर उतरे और उनका चुनावी भाषण जोर-शोर से वोटर्स को सुनाया जा सके। चिंता की बात यह भी है कि अभी फ़सल पकने का समय नहीं है, ऐसे में यह फ़सल मवेशियों के चारे के अलावा किसी काम में नहीं आ सकेगा। किसानों का कर्ज माफ़ करने के लिए महागठबंधन की सरकार लेकर जो लोग सत्ता में आने का स्वप्न देख रहे हैं, वो जब चुनावी रैलियों के लिए किसानों और उनकी फसलों की बलि देते हुए नजर आते हैं तो लोकतंत्र बहुत पीछे छूट जाता है।
उत्तर प्रदेश के महागठबंधन की तर्ज पर उत्तराखंड में BSP और SP ने चुनाव लड़ने के लिए समझौता किया है। उत्तराखंड राज्य की 5 सीटों में से 4 BSP के खाते में गई हैं और 1 सीट (पौड़ी) SP के खाते में गई है। हालाँकि, मजेदार बात ये है कि पौड़ी से समाजवादी पार्टी प्रत्याशी ने नामांकन ही नहीं किया है। हरिद्वार सीट से BSP के अंतरिक्ष सैनी मैदान में हैं। उत्तराखंड आंदोलन के इतिहास में 1994 के मुजफ्फरनगर में हुए वीभत्स कांड के लिए जिम्मेदार समाजवादी पार्टी का इस राज्य में वोट ढूँढना सत्ता में आने की लालसा की पराकाष्ठा ही मानी जा सकती है।
हरिद्वार, ख़ासकर रुड़की के इलाके में BSP का अच्छा-खासा वोट बैंक है और वहाँ से पार्टी के विधायक भी रहे हैं। BSP प्रत्याशी के समर्थन में मायावती की 6 अप्रैल को रुड़की में जनसभा है। रुड़की क्षेत्र में किसी बड़ी रैली के लिए मैदान उपलब्ध नहीं है, इसलिए BSP रैली के लिए जगह तैयार कर रही है। रुड़की में 4 बीघा में खड़ी गेहूँ की फ़सल को काटकर रैली के लिए मैदान बनाया जा रहा है। मैदान में एक हेलीपैड भी बनाया जाएगा, जिसमें मायावती का हेलिकॉप्टर उतरेगा।
स्थानीय लोग बता रहे हैं कि अभी फ़सल पकी नहीं है, लेकिन इसे काटने के अलावा उन्हें कोई दूसरा उपाय नजर नहीं आ रहा है, इसलिए अब यह सिर्फ़ पशुओं के चारे के काम आ सकती है। आस-पास के लोग यह कटा हुआ गेहूँ अपने मवेशियों के लिए ले जा रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बारे में झूठ और फर्जी खबरों का कारोबार खूब बढ़ा है। आम चुनाव से पहले हालत ये हो चुके हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जोर से साँस भी खींच लें, तो विपक्ष और तमाम मीडिया गिरोह इसे मोदी द्वारा चुनाव जीतने की रणनीति ठहराया जाने लगा है। हैरान करने वाली बात ये है कि चुनाव के लिए पार्टी प्रमुख से लेकर तमाम नेताओं के साथ खुदको निष्पक्ष कहने वाले मीडिया गिरोहों ने भी कमर कस डाली है। चुनाव जीतने और जितवाने के लिए नेताओं से ज्यादा होशियारी उनके मीडिया गिरोह दिखाते नजर आ रहे हैं। होशियारी दिखाते हुए मीडिया तंत्र वोटर्स के सामने ऐसी काल्पनिक घटनाएँ तोड़-मरोड़कर ले आते हैं, जो एक खुली ‘व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी’ रोल निभा सकती है।
मीडिया गिरोह फ़ौरन अपनी पोज़िशन लेकर कुछ मनगढ़ंत स्वप्न जनता के बीच लाकर रखता है, जो बिना सोचे-समझे आगे संचार माध्यमों को सौंप दी जाती हैं। इसी तरह से प्रोपेगैंडा और अफवाहों के बीच मीडिया गिरोहों द्वारा नरेंद्र मोदी की रैलियों के लिए पेड़ कटवाए जाने की ख़बरें पढ़ने को मिली थी, जिन्हें OpIndia द्वारा फैक्ट चेक किए जाने पर पता चला था कि वो ख़बरें मात्र अफवाहें थी। इनमें झूठी अफवाह फैलाई जा रही थी कि नरेंद्र मोदी की रैली के लिए हैलीपैड बनवाया जाना था और इसके लिए बड़े स्तर पर पेड़ कटवाए गए।
लेकिन पर्यावरणविद पत्रकारों और किसानों के प्रति चिंतित रहने वाले लोगों को जानना आवश्यक है कि BSP प्रमुख मायावती की चुनावी तैयारियाँ गेहूँ की फ़सल पर भारी पड़ रही हैं। महागठबंधन फिलहाल और किसी पर नहीं लेकिन किसान और फसलों पर खूब भारी पड़ रहा है। अपने फेसबुक पोस्ट्स के विभिन्न भाषाओं में अनुवाद करते हुए किसानों की इस चिंता पर ध्यान दे पाना संभव नहीं होता होगा। ना ही TV पर रोज TV ना देखने की अपील करने वालों के लिए किसानों पर अभी प्राइम टाइम करने से TRP को कोई विशेष लाभ होगा, इसलिए मवेशियों को अध-पकी फसल खिलाने के महत्त्व को लेकर तो कम से कम कुछ प्राइम टाइम जरूर करवाए जाने चाहिए। बाकी जो है सो तो….