कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) पर कई आरोप लगाकर पार्टी छोड़ने वाले गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) के कॉन्ग्रेस में फिर शामिल होने चर्चा चल रही है। हालाँकि, आजाद ने इन चर्चाओं पर विराम लगाते हुए कहा कि उनके मनोबल को गिराने के लिए इस तरह की खबरें प्लांट की जा रही हैं।
डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी (DAP) के प्रमुख और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार (30 दिसंबर 2022) को कॉन्ग्रेस में फिर से शामिल होने की खबरों को पूरी तरह निराधार बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह की खबरों को प्लांट करने में कॉन्ग्रेस के नेता अभी भी लगे हुए हैं।
गुलाम नबी आजाद ने कहा, “मैंने कभी किसी कॉन्ग्रेस नेता से बात नहीं की है और ना ही कॉन्ग्रेस के किसी नेता ने मुझे फोन किया है। मुझे हैरानी हो रही है कि मीडिया में इस तरह की खबरें क्यों डाली जा रही हैं।” उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस के कुछ नेता ऐसी कहानियाँ प्लांट करके उनकी पार्टी DAP के नेताओं और समर्थकों का मनोबल गिराने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस और उसके नेतृत्व के प्रति उनके मन में कोई दुर्भावना नहीं है। हालाँकि, उन्होंने कॉन्ग्रेस हाईकमान से आग्रह किया कि इस तरह का कथित अफवाह फैलाने वाले नेताओं को रोके। राहुल गाँधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में शामिल के सवाल पर आजाद ने कहा, “मेरी ऐसी कोई योजना नहीं है। मेरे पास अपने ही बहुत काम हैं।”
बता दें कि पिछले कुछ दिनों से मीडिया में खबर चल रही है कि कॉन्ग्रेस छोड़ने के बाद गुलाम नबी आजाद फिर से वापसी कर सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट में यह भी कहा जा रहा है कि वे बैक चैनल से कॉन्ग्रेस के कई नेताओं से संपर्क में हैं। उन्हें कॉन्ग्रेस में वापस लाने की जिम्मेवारी अखिलेश प्रसाद सिंह, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अंबिका सोनी को दी गई है।
गौरतलब है कि इसी साल 26 अगस्त को गुलाम नबी आजाद ने पार्टी के साथ अपने पाँच दशक पुराने रिश्ते को तोड़ लिया था। पार्टी से इस्तीफा देते हुए उन्होंने कॉन्ग्रेस की दुर्दशा के लिए राहुल गाँधी को जिम्मेदार बताया था। गुलाम नबी आजाद को इसी साल मार्च में पद्मभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया था।
साल 1973 में डोडा जिले के भलेसा ब्लॉक कॉन्ग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में राजनीति की शुरुआत करने वाले गुलाम नबी आजाद आगे चलकर युवा कॉन्ग्रेस अध्यक्ष बने और साल 1980 में पहली बार संसदीय चुनाव महाराष्ट्र से लड़कर जीते। साल 1982 में वे केंद्रीय मंत्री बने और फिर 2005 में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री भी बने।