भारत विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। सबसे बड़ी आबादी वाले देश की सुरक्षा का दायित्व भी बड़ा है। इस सुरक्षा के लिए सैनिकों के साथ ही हथियारों की बड़ी जरूरत होती है। भारत आजादी के बाद से ही अपने हथियारों के लिए रूस, फ़्रांस, इजरायल और अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर रहा है।
भारतीय सुरक्षाबलों की सामान्य सी बंदूक से लेकर लड़ाकू विमान तक बाहर से आते रहे हैं। विदेशों पर ऐसी निर्भरता रही है कि हम विश्व के सबसे हथियारों के खरीददार रहे हैं। 2014 से पहले देश के रक्षा मंत्री ने खुद माना था कि हमारे पास हथियार खरीदने का पैसा नहीं है। CAG की रिपोर्ट ने बताया था कि मार्च 2013 में देश के पास 10 दिन युद्ध लड़ने का भी गोला बारूद नहीं था।
बीते कुछ सालों से यह तस्वीर बदलने लगी है। अब भारत की सेनाएँ जहाँ भारत में बने तमाम हथियार उपयोग में ला रही हैं तो यह विदेशों में भी जा रहे हैं। देश का रक्षा निर्यात कई गुना बढ़ गया है। विदेशों से कम्पनियाँ आकर भारत में निर्माण कर रही हैं। देश के अंदर भी कई नई कम्पनियाँ खुल रही हैं जो कि रक्षा उत्पाद बना रही हैं। वर्षों से लटके रक्षा प्रोजेक्ट भी रफ़्तार पकड़ने लगे हैं। सेनाएँ भी अब भारत में बने उत्पादों पर भरोसा दिखा रही हैं। मोदी सरकार ने साफ़ कर दिया है कि देश में बने रक्षा उत्पाद ही अब सेनाओं के हाथ में दिए जाएँगे।
UPA सरकार के मुकाबले 22 गुना बढ़ा निर्यात
बीते 10 वर्षों में भारत के रक्षा उत्पादों के निर्यात में 22 गुना से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। यह बढ़ोतरी इसलिए हुई हैं क्योंकि देश में अब अच्छी गुणवत्ता के रक्षा उत्पाद बन रहे हैं। आर्मेनिया, बांग्लादेश और फिलिपिन्स जैसे देश भारत से बड़ी मात्रा में रक्षा उत्पाद खरीद रहे हैं। आँकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि UPA सरकार के सत्ता में रहते समय 10 वर्षों में (2004-14) तक कुल ₹4312 करोड़ का रक्षा निर्यात देश ने किया।
मोदी सरकार में यह स्थिति पूरी तरह बदल गई। मोदी सरकार के दस सालों के आँकड़ों पर नजर डाली जाए तो 2014-24 के बीच ₹88,319 करोड़ के रक्षा निर्यात हुए हैं। 2023-24 में ही देश का रक्षा निर्यात ₹21,083 करोड़ रहा। यह 2022-23 में ₹15,920 करोड़ था। यानी एक वर्ष में ही इसमें 32.5% की वृद्धि हुई। इसमें भी बड़ी बात यह है कि इन रक्षा निर्यातों में 60% सरकारी रक्षा निर्माण संस्थानों का था। यानी ₹12,000 करोड़ से अधिक का निर्यात सरकारी रक्षा संस्थानों ने किए।
SIPRI की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत का विश्व के रक्षा निर्यातों में अब 10% से अधिक हिस्सा है। 10 वर्षों पहले यह नगण्य था। भारत ने आर्मेनिया को एयर डिफेन्स सिस्टम, ATAGS (तोपें), पिनाका राकेट सिस्टम और स्वाति राडार समेत तमाम रक्षा उत्पाद बेंचे हैं। भारत, फिलिपीन्स को ब्रह्मोस मिसाइल भी बेंची हैं। इसके अलावा भी कई देशों को भारत ने महत्वपूर्ण रक्षा उत्पाद बेचे हैं। बांग्लादेश भारत से लगातार रक्षा उत्पाद खरीदता रहा है। यानी मोदी सरकार के भारत सिर्फ हथियार आयात नहीं बल्कि निर्यात भी कर रहा है।
अब देश में ही बन रहे विदेशी हथियार भी, आत्मनिर्भर पर जोर
भारत की रक्षा निर्माण कम्पनियाँ जहाँ बीते 10 वर्षों में काफी आगे बढ़ी हैं तो वहीं विदेशी कम्पनियाँ भी आकर भारत में ही निर्माण कर रही हैं। अब देश के अंदर विश्व की कई बड़ी कम्पनियाँ अपने हथियार बना रही हैं। इजरायल की IWI जहाँ PLR कम्पनी के साथ मिलकर देश में बंदूकें बना रही है तो वहीं कोरिया की कम्पनी L&T के साथ मिलकर होवित्ज़र तोपें बना रही है। एयरबस भी गुजरात वड़ोदरा में वायु सेना के लिए C-295 विमान का निर्माण कर रही है। अडानी के साथ मिलकर इजरायली IAI भारत में ड्रोन बना रही है।
सेना को ज्यादा से ज्यादा भारत में निर्मित हथियार मिलें, इसके लिए मोदी सरकार ने भी कदम उठाए हैं। मोदी सरकार के अंतर्गत रक्षा मंत्रालय ने उन रक्षा सामानों की सूचियाँ जारी करना चालू किया है जिन्हें सिर्फ भारतीय निर्माताओं से ही खरीदा जाना है। रक्षा मंत्रालय अब तक पाँच ऐसी सूचियाँ जारी कर चुका है। इनमें 500 रक्षा सामान शामिल किए गए हैं। इसके अंतर्गत कई महत्वपूर्ण तकनीकी सामान भी शामिल किए हैं।
नए स्टार्टअप को भी मिल रहा मौक़ा, सेना के जवान डिजाइन कर रहे हथियार
भारत में रक्षा सामग्री के निर्माण के लिए मात्र बड़ी और सरकारी कम्पनियाँ ही नहीं बल्कि नए स्टार्टअप को भी मौक़ा दिया जा रहा है। केंद्र सरकार ने 2018 में IDEX स्कीम चालू की थी। इसके अंतर्गत नए डिफेन्स स्टार्टअप को सरकार एक प्रोजेक्ट के लिए ₹50 करोड़ का अनुदान दिया जाता है। इससे युवा भी रक्षा निर्माण के क्षेत्र में आ रहे हैं। हाल ही में IDEX के अंतर्गत रक्षा मंत्रालय ने ₹200 करोड़ का एक सौदा किया था। दो कम्पनियों को इसके अंतर्गत ड्रोन बनाने का आर्डर दिया गया था।
युवा शक्ति को बढ़ावा देने के कारण अब सेना के भीतर से भी काफी नई डिजाइन बन रही हैं। भारतीय थल सेना के अफसर प्रताप बनसोड ने एक मशीन पिस्टल (ASMI) बनाई है। भारतीय सेना इसे खरीदने भी जा रही है। भारतीय सेना ने 550 ASMI खरीदने का निर्णय लिया है। यह पूरी तरीके से भारत में ही निर्मित है और विदेशी मशीन पिस्टल से सस्ती भी है।
सालों से अटके थे जो प्रोजेक्ट, अब देश की रक्षा में
मोदी सरकार में दशकों से लंबित रक्षा प्रोजेक्ट को भी रफ़्तार मिली है। जो रक्षा प्रोजेक्ट 1980 के दशक में चालू किए गए थे, वह मोदी सरकार के आने के बाद धरातल पर उतर पाए। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भारत का स्वदेशी लड़ाकू विमान LCA तेजस है। LCA तेजस को 1980 के दशक में सरकार की मंजूरी मिली थी, जबकि इसकी पहली सफल उड़ान 2001 में वाजपेयी सरकार के दौरान हुई। इसके बाद यह प्रोजेक्ट कछुए की चाल से चलता रहा।
मोदी सरकार के अंतर्गत इस प्रोजेक्ट ने रफ़्तार पकड़ी और 2015 में पहली बार तेजस को वायु सेना में शामिल किया गया। वर्तमान में भारतीय वायु सेना के पास लगभग 40 तेजस विमान हैं जबकि उसने लगभग 200 तेजस विमानों का आर्डर हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को दे रखा है। तेजस की तरह ही भारतीय वायु सेना में हाल ही में प्रचंड लड़ाकू हेलीकाप्टर भी शामिल किए गए हैं। यह भी लम्बे समय से लटके हुए हुए थे। इसके अलावा सेना ने 550 अर्जुन मार्क-1 बनाने का ऑर्डर दिया है।
देश के पास अब अब स्वनिर्मित एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत है। इसको भी मुख्यतः मोदी सरकार के अंतर्गत ही बनाया गया है। इसको पीएम मोदी ने अगस्त 2022 में देश को समर्पित किया था। 45000 टन विस्थापन वाला यह कैरियर लम्बे समय से बन रहा था।
मोदी सरकार ने कई लम्बे समय से लटके रक्षा सौदों को भी अंतिम रूप देकर सेना के हाथ मजबूत किए हैं। इनमें सबसे बड़ा उदाहरण वायु सेना के लिए खरीदे 36 राफेल जेट्स का है। वायु सेना को लम्बे समय से नए पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की जरूरत थी। मोदी सरकार ने फ्रांस से डील करके यह विमान खरीदे। इसके अलावा मोदी सरकार ने एयर फ़ोर्स की क्षमता बढ़ाने के लिए चिनूक और अपाचे जैसे हेलिकॉप्टर खरीदे हैं। मोदी सरकार ने देश की सीमा पर खड़े रहने वाले जवानों के लिए सिग सार कम्पनी की राइफल खरीदी हैं।
नए प्रोजेक्ट पर काम चालू
भारतीय सेनाओं को सबसे नई तकनीक मिले, इसके लिए भी काम चल रहा है। हाल ही में मोदी सरकार ने पाँचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान के लिए मंजूरी दी है। इसकी पहली उड़ान 2030 तक होने की आशा है। इसी के साथ ही नौसेना के लिए नई पनडुब्बियों को लेकर भी काम चल रहा है। थल सेना के लिए नया हल्का टैंक बनाया जा रहा है। इसका उपयोग चीन के खिलाफ मुख्यतः किया जाना है। कई अन्य मिसाइलों पर भी काम चल रहा है। इनमें से कई का सफलतापूर्वक परीक्षण हो चुका है।