जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष व दारुल उलूम के हदीस के उस्ताद मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि वो तलिबान को दहशतगर्द नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि अगर तालिबान गुलामी की जंजीरों को तोड़कर आजाद हो रहे हैं, तो इसे दहशतगर्दी नहीं कहेंगे। आजादी सबका हक है। अगर वह गुलामी की जंजीर तोड़ते हैं तो हम ताली बजाते हैं। अगर यह दहशतगर्दी है तो फिर नेहरु और गाँधी भी दहशतगर्द थे। शेखुद्दीन भी दहशतगर्द थे। वे सारे लोग जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी वे सारे दहशतगर्द हैं।
अरश्द मदनी ने यह बात दैनिक भास्कर को दिए एक इंटरव्यू में कहा। इस दौरान मदनी ने तालिबान से संबंधित कई मुद्दों पर बात की। उन्होंने तालिबान को दारुल उलूम से जोड़ने के आरोपों पर कहा कि तालिबान का देवबंद और दारुल उलूम से कोई ताल्लुक नहीं है। तालिबान को देवबंद से जोड़ना गलत है।
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि कुछ फिरकापरस्त ताकतें बेवजह यह भ्रम फैला रही हैं कि तालिबानी देवबंद के पढ़े हुए हैं। इन लोगों ने कभी दारुल उलूम आकर कोई तालीम हासिल नहीं की। उन्होंने तालिबान और दारुल उलूम की विचारधारा पर बात करते हुए कहा कि दोनों गुलामी के खिलाफ हैं। वहीं महिलाओं के विरोध प्रदर्शन पर उन्होंने कहा कि महिलाएँ बिना क्रीम, लिपस्टिक लगाए, बुर्का पहन कर बाहर औकर विरोध कर सकती हैं।
इसके अलावा अफगानिस्तान में तालिबानियों द्वारा शरिया लागू करने एवं मर्द और औरत को अलग-अलग पढ़ने का फरमान जारी करने पर मदनी का कहना था कि कौन कहता है कि सिर्फ शरिया ही कहता है कि लड़के और लड़कियाँ साथ नहीं पढ़ सकते। हिंदुस्तान के अंदर कितनी यूनिवर्सिटी और कॉलेज हैं जो कोएड नहीं हैं। लड़कियों के अलग और लड़कों के लिए अलग कॉलेज हैं। तो क्या इन कॉलेजों की बुनियाद तालिबान ने रखी थी? क्या इन्हें स्थापित करने वाले सब तालिबान के बाप हैं? हिंदुस्तान में तालिबान की गवर्नमेंट है क्या?
गौरतलब है कि पिछले दिनों अरशद मदनी ने जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की कार्यसमिति की बैठक में गहन चर्चा के बाद कहा था कि लड़कियों के लिए अलग स्कूल और कॉलेज होने चाहिए। इनका कहना था कि गैर-मुस्लिम अपनी बेटियों को ‘अनैतिकता और दुर्व्यवहार से दूर रखने’ के लिए सह-शिक्षा (लड़के-लड़कियों की एक साथ पढ़ाई) वाले स्कूल या कॉलेजों में न भेजें। आगे उन्होंने कहा कि लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग स्कूल बनाने में प्रभावशाली और धनी लोग मदद करें। मुसलमान अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर उच्च शिक्षा दें… लेकिन धार्मिक माहौल में।
इनका कहना था, “अनैतिकता और अश्लीलता किसी धर्म की शिक्षा नहीं है। दुनिया के हर धर्म में इसकी निंदा की गई है क्योंकि यही चीजें हैं, जो समाज में दुर्व्यवहार फैलाती हैं। इसलिए, हम अपने गैर-मुस्लिम भाइयों को भी सह-शिक्षा देने से परहेज करने के लिए कहेंगे।”