Wednesday, April 24, 2024
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लड़के-लड़कियों के साथ पढ़ने से अनैतिकता… गैर-मुस्लिम अपनी बेटियों को दूर रखें सह-शिक्षा से: जमीयत वाले मदनी

"ये चीजें समाज में दुर्व्यवहार फैलाती हैं। इसलिए, हम अपने गैर-मुस्लिम भाइयों को भी सह-शिक्षा देने से परहेज करने के लिए कहेंगे।"

  • लड़कियों के लिए अलग स्कूल और कॉलेज होने चाहिए।
  • अनैतिकता से दूर रखने के लिए गैर-मुस्लिमों को अपनी बेटियों को सह-शिक्षा (लड़के-लड़कियों की एक साथ पढ़ाई) देने से बचना चाहिए।
  • लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग स्कूल बनाने में प्रभावशाली और धनी लोग मदद करें।
  • मुसलमान अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर उच्च शिक्षा दें… लेकिन धार्मिक माहौल में।

ये 4 पॉइंट पढ़िए। कल वाली अफगानिस्तान-तालिबान वाली खबर है? नहीं। खबर भारत से है। यहाँ के मुस्लिमों की एक प्रमुख संस्था की ओर से आए हैं ये सारे सलाह। जमीयत उलेमा-ए-हिंद – ये इस संस्था का नाम है।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सोमवार (30 अगस्त 2021) को एक मीटिंग की। इसमें समाज में कैसे सुधार हो, इसके तरीकों पर चर्चा की गई। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी ने इस संस्था की कार्यसमिति की बैठक में गहन चर्चा के बाद ऊपर के 4 पॉइंट दिए।

अपनी बेटियों (मुस्लिम की बेटियों) को अनैतिकता और दुर्व्यवहार से दूर रखने के लिए लड़के और लड़कियों के अलग-अलग स्कूल-कॉलेज की वकालत जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने की है। एक कदम आगे बढ़ते हुए गैर-मुस्लिमों से भी इस संस्था ने लड़के-लड़कियों के लिए अलग शिक्षण संस्थान का तर्क दिया। इनका कहना है कि गैर-मुस्लिम अपनी बेटियों को ‘अनैतिकता और दुर्व्यवहार से दूर रखने’ के लिए सह-शिक्षा वाले स्कूल या कॉलेजों में न भेजें।

इनके अनुसार:

“अनैतिकता और अश्लीलता किसी धर्म की शिक्षा नहीं है। दुनिया के हर धर्म में इसकी निंदा की गई है क्योंकि यही चीजें हैं, जो समाज में दुर्व्यवहार फैलाती हैं। इसलिए, हम अपने गैर-मुस्लिम भाइयों को भी सह-शिक्षा देने से परहेज करने के लिए कहेंगे।”

जमीयत उलेमा-ए-हिंद = तालिबान

क्यों? क्योंकि जिस सोमवार को जमीयत उलेमा-ए-हिंद मीटिंग करके लड़के-लड़कियों के लिए अलग शिक्षा की बात कर रहा था, ठीक उसी दिन पड़ोसी देश अफगानिस्तान से एक खबर आती है – लड़की को लड़कों के साथ पढ़ने की आजादी नहीं। सह-शिक्षा सिस्टम जारी रखने पर को कोई तर्क नहीं, न ही कोई विकल्प।

स्पष्ट है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद नाम की संस्था तालिबान के समानांतर सोच रखती है। और इसके अध्यक्ष अरशद मदनी? इनकी सोच एक क्रिकेटर से मिलती है। शाहिद अफरीदी नाम का यह क्रिकेटर पहले क्रिकेट खेलता है, अब धर्म (सिर्फ इस्लाम) से खेलता है। इस क्रिकेटर ने भी लड़के-लड़कियों की पढ़ाई, खेलकूद को लेकर तालिबानी परिभाषा दी है।

कौन है जमीयत उलेमा-ए-हिन्द?

उतर प्रदेश आतंकवाद रोधी दस्ता ने दो मुस्लिम युवकों को आतंकवाद के आरोप में गिरफ़्तार किया था। दोनों पर अलकायदा की शाखा ‘अंसार ग़ज़वतुल हिन्द’ से जुड़े होने के आरोप थे। जमीयत उलेमा-ए-हिंद वो संस्था है, जिसने इन दोनों के परिवारों को कानूनी सहायता देने का निर्णय किया था। उस निर्णय के पहले भी कुछ इसी तरह की कार्यसमिति की बैठक की गई थी।

कमलेश तिवारी हत्याकांड को याद कीजिए। जमीयत उलेमा-ए-हिंद वो संस्था है, जो इस हत्याकांड के 5 आरोपितों को बचाने में भी कूद गया था। तब इस संस्था ने कहा था कि जो भी कानूनी खर्च आएगा, उसे वो वहन करेंगे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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