अयोध्या में राम मंदिर भूमिपूजन ने एक तरफ इस्लामी कट्टरपंथियों के चेहरे का नकाब हटा दिया है तो दूसरी ओर कॉन्ग्रेस की मुसीबतें बढ़ा दी है। कॉन्ग्रेस नेताओं का राम राम करना न इस्लामिक संगठनों को न भाया है और न पार्टी के सहयोगी दलों को। यहॉं तक कि पार्टी के भीतर भी मतभेद सामने आ चुके हैं।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भूमिपूजन के मौके पर हनुमान चालीसा का पाठ और दीपोत्सव किया। इसके कारण पार्टी से जुड़े कई मजहबी समूह के लोग नाराज हो गए और उन्हें खुलकर इस पर अपनी आपत्ति जताई।
कमलनाथ जी कहीं इसमें दिग्विजय सिंह जी का हाथ तो नही! pic.twitter.com/vXkhra0PU5
— Gaurav Tiwari (@adolitics) August 7, 2020
अब जामिया निजामिया ने इस मामले पर बयान जारी कर कहा है कि समुदाय विशेष ने जो कॉन्ग्रेस और कमलनाथ पर भरोसा किया था, वह बेकार गया। अब उन्हें इस बारे में दोबारा सोचने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि मजहबी समुदायों को शुरुआती समय से ही उन पर यकीन नहीं था। लेकिन फिर भी जब उन्होंने यह आश्वासन दिया कि वह हिंदुओं से निपट लेंगे तो मजहबी कौम ने उन पर भरोसा कर लिया।
मगर, पिछले दिनों जो चेहरा कमलनाथ का देखने को मिला उससे कई चीजें स्पष्ट हो गई। जामिया निजामिया ने कमलनाथ ने अपनी हिंदू परस्ती के बहुत नमूने दिए। कभी हनुमान की पूजा की और कभी राम मंदिर बनने का स्वागत किया। इन सबसे कौम को बहुत तकलीफ हुई और ये पता चला कि उन्हें मजहब के लोगों से कभी कोई हमदर्दी नहीं थी। समुदाय विशेष वाले उनके लिए सियासत करने के लिए प्यादे थे।
जामिया निजामी ने समुदाय के लोगों को कमलनाथ पर यकीन न करने की सलाह दी है। साथ ही कहा कि आपका साथ देने वाले प्रतिनिधि को सोच-समझकर वोट दें। बयान में कहा गया है, “इस देश में समुदाय का व्यक्ति अब अकेला है। इसलिए इस दौर में हमें अपने लिए सोच समझकर नेता का चयन करना होगा।”
इस बयान में जामिया निजामिया की ओर से कहा गया, “हमें विश्वास है कि अकाबिरों की बताए हुए रास्ते से हटना बड़ा नुकसान का कारण बन सकता है।” इसके बाद इसमे यह भी स्पष्ट किया गया कि अब उनका कमलनाथ और कॉन्ग्रेस से कोई ताल्लुक नहीं है। वह दीन पर बयान और फिक्र को लेकर हमेशा अपनी आवाज को बुलंद रखेंगे, क्योंकि उस्मत का नेतृत्व करना वह अपना दीनी कर्तव्य समझते हैं।