कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मंदिरों की कमाई पर टैक्स लगाने वाले कानून पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है। राज्यपाल ने पूछा है कि सिर्फ मंदिरों पर ही टैक्स क्यों लगाया जा रहा है, अन्य मजहबी स्थलों को ऐसे कानूनों से बाहर क्यों रखा गया है। यह कानूनों कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार लाई है और इसे हाल ही में राज्य की विधायिका से पास किया गया था।
रिपब्लिक की एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्यपाल थावरचंद गहलोत को यह बिल उनकी स्वीकृति के लिए भेजा गया था। उन्होंने इसे मंजूरी देने से मना कर दिया। उन्होंने इस कानून को एक धर्म के साथ पक्षपात करने वाला बताया है। राज्यपाल ने पूछा कि सिर्फ मंदिरों पर ही टैक्स क्यों लगाया जा रहा है। राज्यपाल ने कहा है कि नए कानून के अंतर्गत सभी धार्मिक स्थलों पर टैक्स लगाया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी पूछा है कि क्या इस कानून के अंतर्गत अन्य धार्मिक स्थल भी टैक्स के दायरे में लाए जाएँगे।
गौरतलब है कि राज्य की कॉन्ग्रेस सरकार फरवरी माह में राज्य के हिन्दू मंदिरों की कमाई पर टैक्स लगाने वाला यह कानून लाई थी। इस कानून को ‘कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक 2024’ नाम दिया गया था।
कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार इस विधेयक के जरिए वार्षिक ₹1 करोड़ से अधिक दान पाने वाले मंदिरों से उनकी कमाई का 10% जबकि ₹10 लाख से ₹1 करोड़ तक दान पाने वाले मंदिरों से 5% टैक्स वसूलना चाहती थी।
इस कानून को कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार ने फरवरी, 2024 में राज्य विधानसभा में पास करवा लिया था। हालाँकि, कर्नाटक की विधान परिषद में इस विधेयक को भाजपा और जेडीएस के गठबंधन ने गिरा दिया था और पास नहीं होने दिया था।
कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार ने 1 मार्च, 2024 को कर्नाटक विधान परिषद में यह विधेयक दुबारा पेश करके पास करवा लिया था। इस दिन भाजपा और जेडीएस के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया था। इस विधेयक के दोनों सदनों से पास होने के बाद इसे राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था।
अब इसे राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मंजूर करने से मना कर दिया है और साथ ही सरकार से प्रश्न भी पूछे हैं। इससे पहले विधेयक के लाए जाने पर राज्य की विपक्षी पार्टी भाजपा और जेडीएस ने भी प्रश्न उठाए थे कि कॉन्ग्रेस सरकार मंदिरों से कमाई क्यों करना चाहती है।