Sunday, September 8, 2024
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कर्नाटक में कॉन्ग्रेस सरकार के ‘लोकल कोटा’ पर उठे सवाल, उद्योगपति बोले- प्राइवेट सेक्टर में कन्नड़ भाषियों को रिजर्वेशन भेदभावपूर्ण, बिल रद्द करें

बाइक टैक्सी कम्पनी युलू के को फाउंडर और कर्नाटक ASSOCHAM के सह चेयरमैन RK मिश्रा ने इसे अदूरदर्शी कदम बताया। उन्होंने लिखा, "कर्नाटक सरकार का एक और विचित्र कदम। स्थानीय लोगों के आरक्षण को जरूरी कर दिया और हर कम्पनी में एक सरकारी आदमी बिठाना। इससे भारतीय IT कम्पनियाँ और जीसीसी डरेंगे। अदूरदर्शी।"

कर्नाटक में निजी नौकरियों में कन्नड़ भाषाई लोगों को 50-75% आरक्षण देने का निर्णय कारोबारी समुदाय को रास नहीं आया है। इस संबंध में बिल कैबिनेट से पास होने के बाद कई कारोबारियों ने अपनी राय इस संबंध में रखी है। उन्होंने इसकी आलोचना करते हुए इसे भेदभावपूर्ण बताया है। कारोबारियों ने कहा है कि इसमें कुछ छूट दी जानी चाहिए।

कर्नाटक सरकार के निर्णय पर कन्नड़ उद्योगपति और मनिपाल ग्लोबल सर्विसेस के चेयरमैन TV मोहनदास पाई ने एक्स पर लिखा, ”इस बिल को रद्द कर देना चाहिए। यह भेदभावपूर्ण, रूढ़िवादी और संविधान के विरुद्ध है। क्या सरकार को यह प्रमाणित करना है कि हम कौन हैं? यह एनिमल फार्म जैसा एक फासीवादी बिल है, अविश्वसनीय बात है कि कॉन्ग्रेस इस तरह का बिल ला सकती है। क्या अब एक सरकारी अधिकारी निजी क्षेत्र के इंटरव्यू में बैठेगा? क्या लोगों को भाषा की परीक्षा देनी पड़ेगी?”

उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा, “यह बिल अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है। कर्नाटक सरकार का यह कदम अनुच्छेद 19 के विरुद्ध है। इससे पहले हरियाणा सरकार ने यही करने की कोशिश की थी, लेकिन हाई कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी थी। अगर आपको लोगों को नौकरी देनी है तो उन्हें कौशल का प्रशिक्षण दें। उनको इंटर्नशिप करवाएँ।”

TV मोहनदास पाई के अलावा दवाइयों के लिए कच्चा माल उपलब्ध करवाने वाली देश की सबसे बड़ी कम्पनी बायोकॉन लिमिटेड की मुखिया किरण मजुमदार शॉ ने भी इस बिल को लेकर अपनी चिंताएँ प्रकट कीं। उन्होंने लिखा, “टेक हब के रूप में हमें स्किल्ड लोगों की आवश्यकता है। भले ही हमारा उद्देश्य स्थानीय लोगों को रोजगार देना हो, हमें इस कदम से टेक्नोलॉजी में अपनी अच्छी स्थिति को प्रभावित नहीं करना चाहिए। ऐसी कुछ नीतियाँ होनी चाहिए जो विशेष भर्तियों में इस नीति से छूट दें।”

बाइक टैक्सी कम्पनी युलू के को फाउंडर और कर्नाटक ASSOCHAM के सह चेयरमैन RK मिश्रा ने इसे अदूरदर्शी कदम बताया। उन्होंने लिखा, “कर्नाटक सरकार का एक और विचित्र कदम। स्थानीय लोगों के आरक्षण को जरूरी कर दिया और हर कम्पनी में एक सरकारी आदमी बिठाना। इससे भारतीय IT कम्पनियाँ और जीसीसी डरेंगे। अदूरदर्शी।”

गौरतलब है कि मंगलवार (15 जुलाई, 2024) को बेंगलुरु में हुई राज्य कैबिनेट बैठक में इस बिल को मंजूरी दे दी गई है। इस बिल के अनुसार, राज्य में स्थित सभी फैक्ट्रियों और दफ्तरों में नौकरी पर रखे जाने वाले लोग अब कन्नड़ ही होने चाहिए। इस बिल के अनुसार, राज्य में स्थित सभी दफ्तरों और फैक्ट्रियों में काम पर रखे जाने वाले ग्रुप सी और ग्रुप डी (सामान्यतः क्लर्क और चपरासी या फैक्ट्री के कामगार) के 75% लोग कन्नड़ होने चाहिए। इसके अलावा, बिल के अनुसार इससे ऊँची नौकरियों में 50% नौकरियाँ कन्नड़ लोगों को मिलनी चाहिए।

बिल के अनुसार कर्नाटक में जन्मा या कर्नाटक में पिछले 15 वर्षों से रह रहा कोई भी व्यक्ति कन्नड़ माना जाएगा और इसे इस आरक्षण का लाभ मिलेगा। कन्नड़ आरक्षण का लाभ लेने के लिए व्यक्ति को 12वीं पास होना चाहिए और इस दौरान उसके पास कन्नड़ एक विषय के तौर पर होनी जरूरी है। यदि उसके पास यह नहीं है तो उसे कन्नड़ सीखनी होगी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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