कर्नाटक में 15 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में कॉन्ग्रेस को करारी हार मिली है। पार्टी की हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कॉन्ग्रेस विधायक दल के नेता पद से इस्तीफा दे दिया है। लेकिन, उनके लिए सबसे बड़ा झटका गोकाक सीट से पूर्व मंत्री रमेश जरकीहोली की जीत बताई जा रही है।
बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे रमेश जरकीहोली ने अपने छोटे भाई और कॉन्ग्रेस उम्मीदवार लखन जारकीहोली को भारी अंतर से हराया है। कर्नाटक में येदियुरप्पा की अगुआई में बीजेपी की सरकार बनवाने में रमेश जरकीहोली की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने ही 16 अन्य विधायकों के साथ बगावत की थी जिसके कारण कॉन्ग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार गिरी थी।
अपनी हार स्वीकार करते हुए उनके छोटे भाई लखन जरकीहोली ने कहा है कि जनता ने रमेश को चुना है और वे जनादेश को स्वीकार करते हैं। उन्होंने क्षेत्र का विकास होने की उम्मीद जताई।
रमेश जरकीहोली ने PLD बैंक चुनावों के बाद अक्टूबर 2018 में कॉन्ग्रेस के ख़िलाफ़ खुले तौर पर विद्रोह कर दिया था, जहाँ उनकी प्रतिद्वंद्वी, लक्ष्मी हेब्बलकर को PLD बैंक के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। इसके अलावा, उन्होंने पूर्व जल संसाधन मंत्री डीके शिवकुमार पर बेलगावी कॉन्ग्रेस की राजनीति में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया था।
कैबिनेट फ़ेरबदल के दौरान नगर पालिकाओं के मंत्री के रूप में हटाए जाने के लिए रमेश जरकीहोली पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से भी नाख़ुश थे। इस साल नवंबर में, रमेश जरकीहोली ने खुले तौर पर कहा था कि उन्होंने गुप्त रूप से विद्रोह की योजना बनाई थी। रमेश ने कहा था कि उन्होंने मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा से सम्पर्क किया था, जिसके बाद उन्होंने हैदराबाद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मुरलीधर राव के साथ बातचीत की थी। इस बातचीत में उन्होंने भाजपा नेताओं से 16 विधायकों को गठबंधन में लाने का वादा किया था।
इस साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोग्य ठहराए गए विधायकों को चुनाव लड़ने की अनुमति देने के तुरंत बाद, रमेश जारकीहोली ने कहा था कि जुलाई में सफल होने से पहले ही उन्होंने सात बार गठबंधन सरकार को गिराने की कोशिश की थी। उनकी जीत कर्नाटक में कॉन्ग्रेस के लिए एक बड़ा झटका सा प्रतीत हो रही है, क्योंकि गोकाक में यह चुनावी दंगल सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के लिए एक व्यक्तिगत लड़ाई के रूप में थी। डीके शिवकुमार को भी बेलगावी में प्रचार करने की अनुमति नहीं दी गई थी और सूत्रों का कहना है कि अनुमति नहीं मिलने का कारण उनके ख़िलाफ़ दायर धन शोधन मामला था।
गोकाक सीट पर रमेश जारकीहोली का 1999 से ही कब्जा रहा है। वे यहॉं से पॉंच बार विधायक रह चुके हैं। वे सिद्धारमैया के वफादार हुआ करते थे। यही कारण है कि जब उन्होंने बगावत की तो शुरुआत में माना गया कि यह सिद्धारमैया के ही इशारे पर हुआ है।
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