भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 25 जून, 1975 को देश पर आपातकाल थोप दिया था। लालकृष्ण आडवाणी समेत विपक्ष के कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। अखबारें सरकारी स्क्रूटनी के बाद छप कर निकलने लगीं। पत्रकारों को प्रताड़ित किया जाने लगा। अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी को जेल में इतना प्रताड़ित किया गया कि उनकी मौत हो गई। बीमार महारानी गायत्री देवी को जेल में ठूँस कर यातनाएँ दी गईं। संजय गाँधी के आदेश पर हजारों लोगों की जबरन नसबंदी हुई।
आपातकाल की गुम कहानियों में एक प्रभाकर शर्मा की भी है। प्रभाकर शर्मा सत्याग्रही थे। बिहार के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने सोशल मीडिया के माध्यम से प्रभाकर शर्मा के बारे में बताया है। सुरेंद्र किशोर 5 दशकों में कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन कर चुके हैं और पद्मश्री से सम्मानित हैं। जॉर्ज फर्नांडिस के लिए काम कर चुके सुरेंद्र किशोर आपातकाल के दौरान जेल भी गए थे। बिहार में पशुपालन घोटाले को उजागर करने वालों में भी शामिल रहे। सुरेंद्र किशोर आपातकाल के भुक्तभोगी हैं, ऐसे में उन्होंने प्रभाकर शर्मा की कहानी बताई है।
उन्होंने उनलोगों को जवाब दिया है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तानाशाह कहते हैं और देश में ‘अघोषित आपातकाल’ होने की बातें करते हैं। जो लोग ऐसी बातें करते हैं, या तो उन्होंने असली आपातकाल देखा नहीं है या फिर वो जानबूझकर आपातकाल के दर्द को कम कर के आँकते हैं। कोलकाता से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘रविवार’ में प्रभाकर शर्मा की ये कहानी 8 दिसंबर, 1979 में छपी थी। उन्होंने इंदिरा गाँधी को एक मार्मिक पत्र भी भेजा था, जिसकी एक प्रति उन्होंने विनोबा भावे को भेजी थी।
जब्त होती थीं पत्रिकाएँ, झुक गए थे जज भी
बता दें कि विनोभा भावे को आपातकाल का विरोध न करने के कारण उस दौर में ‘सरकारी संत’ कहा जाने लगा था। उन्होंने प्रभाकर शर्मा के इस पत्र की चर्चा तक किसी से नहीं की। समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर ने उन्हें कई बार आपातकाल विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करने को कहा, लेकिन वो चुप रहे। इस पर कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि उन्हें महात्मा गाँधी का उत्तराधिकारी कहलाने का कोई अधिकार नहीं है। ये भी चर्चा थी कि उन्होंने आपातकाल को ‘अनुशासन पर्व’ कहा है, जिसे उन्होंने आपातकाल खत्म होने के बाद नकार दिया था।
खैर, इन्हीं विनोबा भावे की पत्रिका ‘मैत्री’ पर भी सरकार का कहर बरपा था। वो खुद इसके संपादक थे। विनोबा भावे गोहत्या पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग के साथ अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने वाले थे, इसी खबर को छापने पर ‘मैत्री’ की पत्रिकाओं को जब्त कर लिया गया। इसकी 4000 प्रतियाँ जब्त की गई थीं। एक जूनियर सब-इंस्पेक्टर को भेज कर महाराष्ट्र के वर्धा स्थित पवनार आश्रम पर छापा मारा गया। विनोबा भावे इस पर ‘धन्य हो, धन्य हो’ कह कर रह गए।
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस दौरान लोगों की मदद करने से इनकार कर दिया था। 5 न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला दिया कि नए निजाम में सरकार किसी को भी जेल में डाल सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसमें हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था। सिर्फ एक जज HR खन्ना ने इससे मतभेद जताया। बताया जाता है कि 3 जजों ने CJI बनने के लालच में ये फैसला दिया, उन्हें डर भी था कार्रवाई का। इंदिरा गाँधी ने 38वें संविधान संशोधन के जरिए न्यायपालिका को आपातकाल की समीक्षा से वंचित कर दिया, सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि इंदिरा गाँधी के चुनाव संबधी फैसला अब उसकी परिधि से बाहर है।
अब आते हैं वापस प्रभाकर शर्मा पर। उन्होंने 14 अक्टूबर, 1976 को 1976 को वर्धा के निकट सुरगाँव में आत्मदाह किया था। उन्होंने उससे पहले लिखे गए पत्र में बताया था कि कैसे सरकार ने पशुबल का इस्तेमाल कर पत्र-पत्रिकाओं के स्वातंत्र्य लेखन को छीन लिया था। उन्होंने लिखा था कि सत्य पर निर्मम प्रहार किया जाता है, उन्होंने ‘मैत्री’ को जब्त किए जाने का भी विरोध करते हुए लिखा था कि भारत की अहिंसक और आध्यात्मिक संस्कृति पर निर्लज्ज प्रहार किया गया है।
प्रभाकर शर्मा ने इंदिरा गाँधी को अपने मार्मिक पत्र में क्या लिखा था
उन्होंने आपातकाल की तुलना मुगलों के अत्याचार से करते हुए कहा कि महात्मा गाँधी से जिस पार्टी को अहिंसा की शिक्षा मिली उसी ने ऐसा किया है। उन्होंने पूछा था कि उनके घर में लोग घुस आएँ और उनकी संपत्ति पर कब्ज़ा कर के पिस्तौल दिखा कर स्त्रियों का बलात्कार करें तो उन्हें कैसा महसूस होगा? उनका इशारा इंदिरा गाँधी के ‘गरीबी हटाओ’ के नारे पर था। उन्होंने लिखा था कि राक्षसी कानून लगा कर अँधेरी गुफा में देश को धकेल दिया गया है।
प्रभाकर शर्मा ने लिखा था, “ये केंद्र सरकार गुंडों का संगठन है। मानवता, शील, चरित्र, न्याय, लज्जा, ईमानदारी और भारतीय संस्कृति को इसने तिलांजलि दे दी है। अख़बारों में भी इसकी खबर नहीं छप सकती। जयप्रकाश नारायण का स्वागत तक करने पर गिरफ़्तारी हो जाती है। जालसाजी, भ्रष्टाचार और काले धन के बल पर इंदिरा गाँधी PM बनी हैं। उनके खिलाफ आदेश देने पर न्यायधीशों को भी हटा दिया जाएगा। आज इंदिरा गाँधी की मर्जी है धर्मशास्त्र, सबक है नीति-शास्त्र, इच्छा है संस्कृति, गर्वोन्माद है कानून और हुंकार है न्याय।”
प्रभाकर शर्मा ने आगे लिखा था कि इंदिरा गाँधी अपने जघन्य कुकृत्यों के कारण लोकमत का सामना करने का साहस खो चुकी हैं, उन्होंने राष्ट्र की अंतरात्मा की हत्या की है। उन्होंने इंदिरा गाँधी पर प्रजा को दब्बू व चरित्रहीन बनाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि नई पीढ़ी तो खत्म ही है। होने स्पष्ट ऐलान किया था कि संपूर्ण भारत को सत्ता के लिए अपने पाँवों तले रौंदने वाली नरपिशाचिनी के राज में जीने की बजाए वो हजार बार मल-मूत्र में रेंगने वाले कीड़े के रूप में जन्म लेना पसंद करेंगे।
उन्होंने याद किया था कि ये वही भारत है जहाँ अद्वैतवाद का जन्म हुआ, हजारों संतों ने तपस्या की और बहुमातैक्य की अनुभूति प्राप्त कर आध्यात्मिक और अहिंसक संस्कृति के बीज बोए थे। उन्होंने कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि आपातकाल का विरोध न करने पर ये ऐसे लोगों का देश कहलाएगा जिसने शरीर और आत्मा को बेच कर पश्चिम से बन-ठन कर आई रोगग्रस्त वेश्या को पूजना शुरू कर दिया है। उन्होंने नौकरशाही पर भी अपना पद बनाए रखने के लिए जनता पर दमन किया।
प्रभाकर शर्मा ने लिखा था, “शहरी वर्ग ने अपने भोग-विलास, फैशन और ऐशोआराम को बनाए रखने के लिए सरकार के अपमानजनक कानूनों और जुल्मों के आगे घुटने टेक दिए हैं। सत्ता और संपत्ति की पूजा के लिए मनुष्य जाति के नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का यह पतन देख कर मेरा हृदय विदीर्ण हो जाता है। अज्ञान और दारिद्र्य में गोते लगाने वाले करोड़ों भारतवासियों के रहते इन सत्ताधीशों और शहरवासियों को नींद कैसे आती है और अन्न कैसे पचता है?”
प्रभाकर शर्मा ने लिखा था कि उन्होंने बहुत कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया है, लेकिन इंदिरा गाँधी के दमनकारी कुकृत्यों की तुलना में ये शब्द बेहद ही सौम्य माने जाने चाहिए। उन्होंने ईश्वर की दृष्टि में सबको समान बताते हुए लिखा था कि वो कभी इन मदांध सत्ताधीशों को माफ़ नहीं करेगा। उन्होंने लिखा था कि भावी पीढ़ी आज के मदग्रस्त अफसरों, मंत्रियों, राष्ट्रपति और पिट्ठू न्यायाधीशों को सबसे बड़ा अपराधी मानेगी। उन्होंने आरोप लगाया था कि अपने निकृष्ट स्वार्थ की पूर्ति के लिए ये लोग चकाचौंध और भ्रामक विचारों द्वारा प्रजा को सम्मोहित कर उसका पतन सुनिश्चित कर रहे हैं।
आडवाणी और विनोबा भावे तक भी पहुँची खबर
प्रभाकर शर्मा के आत्मदाह की खबर लालकृष्ण आडवाणी को भी मिली थी। 13 नवंबर, 1976 को एक पत्र के जरिए उन्हें सर्वोदय कार्यकर्ता प्रभाकर शर्मा के आत्मदाह की खबर मिली थी। प्रभाकर शर्मा ही नहीं, ऐसे सैकड़ों गाँधीवादियों ने इस ‘दूसरे स्वाधीनता आंदोलन’ में हिस्सा लिया और सरकारी दमनचक्र का शिकार बने। सर्वोदय आंदोलन महात्मा गाँधी ने शुरू किया था, बाद में विनोबा भावे ने इसका नेतृत्व किया। प्रभाकर शर्मा, विनोबा भावे के सहयोगी थे लेकिन विनोबा भावे इस पर चुप रहे।
प्रभाकर शर्मा की उस वक्त उम्र 65 वर्ष थी। प्रभाकर शर्मा ने अपने पत्र में महात्मा गाँधी की पत्रिका ‘यंग इंडिया’ का उल्लेख करते हुए ये भी कहा था कि हम एक आज़ाद स्त्री-पुरुष की तरह नहीं जी सकते तो हमें मर जाना चाहिए। उन्होंने लिखा था कि इंदिरा गाँधी के शासनकाल में चिट्ठी लिखना भी अपराध है, इसीलिए सज़ा भुगतने की बजाए वो मरना पसंद करेंगे। उन्होंने लिखा था कि आपातकाल ने नौकरशाहों को शैतान और जनता को कायर बना दिया है।