पश्चिम बंगाल विधानसभा में कुल सीटें हैं 292। लेकिन जिस एक सीट पर इन चुनावों में सबकी नजर थी वह थी, नंदीग्राम। यहाँ से बीजेपी के तरफ से मैदान में थे शुभेंदु अधिकारी। वही शुभेंदु अधिकारी जो चुनाव से कुछ महीने पहले तक ममता बनर्जी की कैबिनेट का हिस्सा थे। जिनके लिए कहा जाता है कि वे ही ममता को नंदीग्राम ले गए थे, जहाँ से उठी राजनीतिक बदलाव की हवा ने बंगाल में वाम मोर्चा का किला एक दशक पहले ध्वस्त कर दिया था।
अधिकारी परिवार के इस गढ़ में शुभेंदु को चुनौती देने के लिए इस चुनाव में ममता खुद टीएमसी की तरफ से मैदान में थीं। जैसा कि उम्मीद थी कि मुकाबला काँटे का हुआ। पहले खबर आई कि ममता 1200 वोटों के अंतर से जीत गईं हैं। फिर पता पता चला कि 1622 वोटों के अंतर से बाजी शुभेंदु के हाथ लगी है। अंत में ममता ने यह कहकर उनके जीत पर मुहर लगा दी कि ‘मैं हार मानती हूँ’। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया है कि चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद कुछ हेरफेर की गई है। इसको लेकर वह कोर्ट जाएँगी और जल्द इसका खुलासा करेंगी।
I accept the verdict. But I will move the Court because I have information that after the declaration of results there were some manipulations done and I will reveal those: West Bengal CM Mamata Banerjee pic.twitter.com/JM88edOgAa
— ANI (@ANI) May 2, 2021
पश्चिम बंगाल में यूँ तो शुभेंदु अधिकारी कोई नया नाम नहीं है और उनके भाजपा में शामिल होने के बाद इस साल हुए विधानसभा चुनावों में कई बार वो ख़बरों में छाए रहे। पहले उन्होंने कहा था कि भाजपा किसी को भी यहाँ से उम्मीदवार बनाती है तो वे उसकी जीत की गारंटी लेते हैं। फिर उन्हें ही मैदान में उतारा गया। शुभेंदु अधिकारी ने खुली घोषणा की थी कि अगर वो नंदीग्राम हारे तो राजनीति छोड़ देंगे।
जैसा कि हमने बताया है, मेदिनीपुर और आसपास की सीटों पर अधिकारी परिवार का दबदबा है। उनके पिता शिशिर अधिकारी ने 2009 से लगातार काँठी लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं। उससे पहले वो काँठी दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से 1982, 2001 और 2006 में विधायक चुने गए थे। खुद शुभेंदु तामलुक लोकसभा क्षेत्र से 2009 और 2014 में सांसद रहे हैं। 2016 में उनके इस्तीफे के बाद उनके भाई दिव्येंदु यहाँ से सांसद बने।
2019 में दिव्येंदु ने फिर से जीत दर्ज की। काँठी दक्षिण से शुभेंदु ने पिता की विरासत सँभाली और 2006 में यहाँ से विधायक चुने गए। अब उन्होंने नंदीग्राम से लगातार दूसरी बार (2016, 2021) जीत दर्ज की है। इस तरह से अधिकारी परिवार के इन तीनों सदस्यों ने लगभग एक दर्जन विधानसभा/लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज की है। स्थानीय म्युनिसिपल्टी के चुनावों में भी इस परिवार का दबदबा रहा है।
शुभेंदु अधिकारी अपनी हिन्दू पहचान जाहिर करने में कभी पीछे नहीं हटते। कई मौकों पर उन्हें भगवान श्रीराम की तस्वीर वाला ध्वज लहराते हुए देखा गया है तो कई बार मंदिर में मत्था टेकते हुए। इस बार भी अपने नामांकन से पहले उन्होंने जानकी मंदिर में हवन किया था और सिंहवाहिनी मंदिर में पूजा-अर्चना की थी। उनके मंचों से ‘जय श्री राम’ के नारे लगने आम बात है। दुर्गा पूजा और हिन्दू त्योहारों के साथ भेदभाव को लेकर उन्होंने ममता को कई बार घेरा।
शुभेंदु अधिकारी के पिता मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। 50 वर्षीय शुभेंदु अधिकारी के जीवन में एक समय ऐसा भी आया था जब उनका नाम शारदा स्कैम में आया था और सितम्बर 2014 में CBI ने उनसे पूछताछ भी की थी, लेकिन वो इन सभी आरोपों से बाहर निकलने में कामयाब रहे। ममता बनर्जी के नंदीग्राम आंदोलन को सफल बनाने में उनकी बड़ी भूमिका थी, जिसके बाद 2011 में TMC पहली बार सत्ता में आई थी।
Returning Officer of #Nandigram announces, @SuvenduWB won by 1736 against @MamataOfficial in #Nandigram#SuvenduAdhikari #MamtaBanerjee #WestBengalElections2021
— Newsroom Post (@NewsroomPostCom) May 2, 2021
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शुभेंदु अधिकारी को उनके क्षेत्र में लोग ‘दादा’ या ‘भूमिपुत्र’ कह कर भी पुकारते हैं। अपने क्षेत्र के लोगों के लिए वे हमेशा सहज रहे हैं। चुनावी कवरेज के दौरान भी कई कारोबारियों और दुकानदारों ने स्वीकारा था कि कभी न कभी उन्होंने शुभेंदु से मदद ली है। यही कारण है कि TMC के दिनों में इस इलाके में वो ममता बनर्जी के सबसे ज़्यादा विश्वस्त हुआ करते थे। उन्हें 2016 में मंत्री बनाया गया था।
ममता बनर्जी की सरकार में परिवहन मंत्रालय सँभालने वाले शुभेंदु अधिकारी ‘जूट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ और ‘हुगली रिवर ब्रिज कॉर्पोरेशन’ के अध्यक्ष भी रहे हैं। नंदीग्राम आंदोलन में उनकी नेतृत्व व प्रबंधन क्षमता को देखते हुए ममता बनर्जी ने उन्हें जंगलमहल (पश्चिम मेदिनीपुर, बाँकुरा और पुरुलिया) में TMC का प्रभारी बनाया था। इन 3 जिलों में पार्टी का संगठन खड़ा करने में उनकी ही भूमिका रही है।
उनके आने से पश्चिम बंगाल में भाजपा को एक बड़ा और जमीनी चेहरा मिल गया है, जो अगर आगे जाकर राज्य में पार्टी का नेतृत्व सँभालता है तो ‘बाहरी बनाम भीतरी’ वाला आरोप यूँ ही ख़त्म हो जाएगा। इस चुनाव में भाजपा में आए नेता, पार्टी के नए विधायक और 18 सांसद मिल कर राज्य में अगले 3 वर्षों में एक ऐसा माहौल तैयार कर सकते हैं, जिसका फायदा पार्टी को 2024 और 2026 में ज़रूर मिलेगा। फ़िलहाल तो शुभेंदु की तुलना स्मृति ईरानी की अमेठी विजय से हो रही है।