Sunday, April 28, 2024
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मॉब लिंचिंग पर फाँसी, राजद्रोह खत्म, किसी भी थाने में जीरो FIR: IPC की जगह ‘भारतीय न्याय संहिता’, संसद में बोले अमित शाह – अब तारीख़ पर तारीख़ नहीं चलेगा

"हमने कहा था कि हम धारा 370 और 35-A हटा देंगे, हमने हटा दिया। हमने वादा किया था, आतंकवाद को समाप्त कर देंगे, जीरो टॉलरेंस की नीति बनाएँगे और सुरक्षाकर्मियों को फ्री हैंड देंगे, हमने दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ‘नए भारत का नया कानून’ के रूप में IPC (भारतीय दंड संहिता) की जगह ‘भारतीय न्याय संहिता’ लेकर आई है, जिस पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद को जानकारी दी। इस दौरान उन्होंने बताया कि इस ऐतिहासिक सदन में करीब 150 साल पुराने तीन कानून, जिनसे हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली चलती है, उन तीनों कानूनों में पहली बार पीएम मोदी के नेतृत्व में भारतीयता, भारतीय संविधान और भारत की जनता की चिंता करने वाले बहुत आमूल-चूल परिवर्तन लेकर वो आए हैं।

अमित शाह ने कहा कि ‘Indian Penal Code’ जो 1860 में बना था, उसका उद्देश्य न्याय देना नहीं बल्कि दंड देना ही था। उसकी जगह ‘भारतीय न्याय संहिता’ 2023 इस सदन की मान्यता के बाद पूरे देश में अमल में आएगी। वहीं CrPc की जगह ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023’ इस सदन के अनुमोदन के बाद अमल में आएगी। इनके अलावा ‘Indian Evidence Act, 1872’ की जगह ‘भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023’ अमल में आएगा।

अमित शाह ने ‘भारतीय न्याय संहिता’ को लेकर संसद में दी जानकारी

अमित शाह ने आगे जानकारी दी कि आतंकवाद की व्याख्या अब तक किसी भी कानून में नहीं थी। उन्होंने कहा कि पहली बार अब मोदी सरकार आतंकवाद को व्याख्यायित करने जा रही है, जिससे इसकी कमी का कोई फायदा न उठा पाए। साथ ही बताया कि मॉब लिंचिंग घृणित अपराध है और केंद्र सरकार इस कानून में मॉब लिंचिंग अपराध के लिए फाँसी की सजा का प्रावधान कर रही है। उन्होंने विपक्ष से सवाल दागा कि आपने भी वर्षों देश में शासन किया है, आपने मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून क्यों नहीं बनाया?

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, “आपने मॉब लिंचिंग शब्द का इस्तेमाल सिर्फ हमें गाली देने के लिए किया, लेकिन सत्ता में रहे तो कानून बनाना भूल गए। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (CRPC) में पहले 484 धाराएँ थीं, अब 531 होंगी, 177 धाराओं में बदलाव हुआ है। 9 नई धाराएँ जोड़ी गई हैं, 39 नए सब सेक्शन जोड़े गए हैं, 44 नए प्रोविजन और स्पष्टीकरण जोड़े गए हैं, 35 सेक्शन में टाइम लाइन जोड़ी हैं और 14 धाराओं को हटा दिया गया है। राज्य का सबसे पहला कर्तव्य न्याय होता है। न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका – लोकतंत्र के तीन स्तंम्भ हैं। हमारे संविधान निर्माताओं ने देश को मजबूत प्रशासन देने के लिए इन तीनों के बीच काम का बँटवारा किया। आज पहली बार ये तीनों मिलकर देश को दंड केंद्रित नहीं, न्याय केंद्रित क्रिमिनल सिस्टम देंगे।”

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आतंकवाद की व्याख्या अब तक किसी भी कानून में नहीं थी, पहली बार अब मोदी सरकार आतंकवाद को व्याख्यायित करने जा रही है। ऐसा इसीलिए किया जा रहा है, ताकि इसकी कमी का कोई फायदा न उठा पाए। इसके साथ-साथ राजद्रोह को देशद्रोह में बदलने का काम किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों द्वारा बनाया गया राजद्रोह का कानून, जिसके तहत तिलक महाराज, महात्मा गाँधी, सरदार पटेल… हमारे बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानी सालों साल जेल में रहे और वह कानून आज तक चलता रहा। जब विपक्ष में रहते थे, तब विरोध करते थे, लेकिन सत्ता में आते थे, तो इसका दुरुपयोग ​करते थे। पहली बार मोदी सरकार ने राजद्रोह कानून को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया।

अमित शाह ने संसद में कहा कि पहली बार हमारे संविधान की स्पिरिट के हिसाब से कानून अब मोदी जी के नेतृत्व में बनने जा रहे हैं। 150 साल के बाद इन तीनों कानूनों को बदलने पर उन्होंने गर्व जताया। कुछ साथ ही तंज कसा कि लोग कहते थे कि हम इन्हें नहीं समझते, उन्हें वो कहना चाहेंगे मन अगर भारतीय रखोगे तो समझ में आ जाएगा, लेकिन अगर मन ही इटली का है तो कभी समझ नहीं आएगा। अमित शाह ने स्पष्ट किया कि ये अंग्रेजों का शासन नहीं है, ये कॉन्ग्रेस का शासन नहीं है, ये भाजपा और नरेन्द्र मोदी का शासन है – यहाँ आतंकवाद को बचाने की कोई दलील काम नहीं आएगी।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “हमने कहा था कि हम धारा 370 और 35-A हटा देंगे, हमने हटा दिया। हमने वादा किया था, आतंकवाद को समाप्त कर देंगे, जीरो टॉलरेंस की नीति बनाएँगे और सुरक्षाकर्मियों को फ्री हैंड देंगे, हमने दिया। हमने कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर बनाएँगे और अब 22 जनवरी, 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी। ये नरेन्द्र मोदी की सरकार है, जो कहती है-वो करती है।

जानिए ‘भारतीय न्याय संहिता’ में क्या-क्या है नया

मोदी सरकार में देश की कानूनी प्रक्रियाओं को सरल करने पर जोर दिया गया है। छोटे-मोटे आपराधिक मामलों में समरी ट्रायल के जरिए तेज़ी लाई जाएगी। चोरी-चकारी, आपराधिक धमकी जैसे मामलों में ये समरी ट्रायल ज़रूरी होगा। 3 साल तक की सज़ा वाले मामलों में मजिस्ट्रेट समरी ट्रायल चलाएँगे। संगठित अपराध पर भी मोदी सरकार ने दोहरा वार किया है। इससे संबंधित नई दाण्डिक धाराएँ जोड़ी गई हैं। सिंडिकेट की विधिविरुद्ध गतिविधि को दंडनीय बनाया गया है।

भारत की एकता एवं अखंडता के खिलाफ कृत्यों को नए प्रावधानों में जोड़ा गया है। सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक कृत्यों और अलगाववादी गतिविधियों को इसमें शामिल किया गया है। घोषित अपराधियों पर चलेगा सख्त कानूनी हंटर चलाने का ऐलान भी किया गया है। 10 वर्ष या उससे अधिक, आजीवन कारावास एवं मृत्युदंड के दोषी अब ‘प्रोक्लेम्ड ऑफेंडर’ घोषित किए जा सकेंगे। घोषित अपराधियों की भारत से बाहर की संपत्तियों को जब्त करने के लिए नया प्रावधान लाया गया है।

नागरिकों की सुविधा के लिए किसी भी थाने में ‘जीरो FIR’ दर्ज की जा सकेगी। E-FIR के लिए नए प्रावधान जोड़े गए हैं। 90 दिन में पुलिस को जाँच की प्रगति की सूचना देनी होगी। विकसित भारत में फॉरेन्सिक्स का बढ़िया उपयोग होगा। 7 वर्ष या उससे अधिक की जेल की सज़ा वाले सभी अपराधों में फॉरेंसिक अनिवार्य होगा। सभी प्रदेशों में इसका इस्तेमाल आवश्यक होगा। 5 वर्ष के भीतर इसके लिए राज्यों एवं संघ/राज्य क्षेत्रों में इसके लिए इंफ़्रास्ट्रक्चर तैयार कर दिया जाएगा।

FIR से लेकर जजमेंट तक, सब कुछ डिजिटलाइज किया जाएगा। जाँच-पड़ताल से लेकर मुकदमों के साक्ष्यों तक की रिकॉर्डिंग की जाएगी। पुलिस द्वारा सर्च एवं जब्ती की कार्रवाई में तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इलेक्ट्रॉनिक या किसी भी प्रकार के डिजिटल रिकॉर्ड को दस्तावेज बनाया जाएगा। यौन हिंसा के मामलों में पीड़िता का बयान सिर्फ महिला मजिस्ट्रेट ही रिकॉर्ड कर सकेगी। पीड़िता का बयान उसके आवास पर महिला पुलिस अधिकारी के समक्ष ही दर्ज होगा।

बयान दर्ज किए जाते समय पीड़िता के माता-पिता/अभिभावक मौजूद रहेंगे। गैंगरेप के मामलों में 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा का प्रावधान है। 18 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के मामलों में आजीवन कारावास से लेकर मृत्युदंड तक की सज़ा दिलाई जा सकती है। झूठे वादे या पहचान छिपा कर यौन संबंध बनाना अब अपराध है। राजद्रोह जैसे अंग्रेजों के काले कानून को निरस्त किया गया। मृत्युदंड की सज़ा को अब आजीवन कारावास में बदला जा सकेगा।

इस मामले में आजीवन कारावास की सज़ा को भी 7 वर्ष की सज़ा में बदला जा सकेगा। आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलेरेंस की नीति अपनाते हुए पहली बार इसकी व्याख्या की गई है। अब ये दंडनीय अपराध है। मॉब लिंचिंग में नस्ल, जाति, समुदाय के आधार पर की गई हत्या से संबंधित अपराध का नया प्रावधान जोड़ा गया है। मॉब लिंचिंग में आजीवन कारावास से लेकर मृत्युदंड का प्रावधान है। इस तरह अब IPC की जगह BNS (भारतीय न्याय संहिता) ने ले ली है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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