बिहार, जम्मू कश्मीर, गोवा और अब मेघालय के राज्यपाल बने सत्यपाल मलिक अपने बयानों के कारण लगातार चर्चा में हैं। बीच में उन्हें ओडिशा का भी अतिरिक्त प्रभार दिया गया था। इस तरह कुल मिला कर 4 वर्षों में 5 राज्यों के राज्यपाल रह चुके हैं। हाल ही में उन्होंने एक बयान दिया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धमकी भरे अंदाज़ में इंदिरा गाँधी की हत्या याद दिलाई गई है। सिख और जाट कार्ड खेलते हुए उन्होंने ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के वक्त भारतीय सेना प्रमुख रहे जनरल अरुण श्रीधर वैद्य की हत्या तक को गिना दिया।
आपके मन में ये जज्ञासा ज़रूर जगी होगी कि सत्यपाल मलिक हैं कौन? अधिकतर लोगों ने उनका नाम तभी सुना होगा जब उन्हें सितंबर 2017 के अंत में बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया। अगले साल मार्च में उन्हें ओडिशा का अतिरिक्त प्रभार दिया गया और तीन महीने से अधिक समय तक उनके पास ही रहा। अगस्त 2018 में उन्हें जम्मू कश्मीर का राज्यपाल बना कर भेजा गया। जब वो एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया तो उनका ट्रांसफर गोवा हुआ।
अगस्त 2020 में उन्हें मेघालय का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इस तरह 3 सालों में ही उन्होंने 5 राज्यों का मुँह देख लिया। लेकिन, वो जिस भी राज्य में गए वहाँ अपने बयानों से सुर्खियाँ बटोरी। अब ‘किसान आंदोलन’ के समर्थन में बार-बार उनके बयानों से केंद्र सरकार असहज हुई। उन्होंने ये तक दावा कर दिया कि इंदिरा गाँधी ने स्वर्ण मंदिर में कार्रवाई के बाद अपने घर पर महामृत्युंजय यज्ञ कराया था और जब अरुण नेहरू ने उनसे पूछा कि वो तो इन सब में नहीं मानती हैं, इस पर उन्होंने कहा था कि उन्होंने सिखों का ‘अकाल तख़्त’ तोड़ा है, वो उन्हें नहीं छोड़ेंगे।
कौन हैं सत्यपाल मलिक? कैसा रहा है उनका राजनीतिक करियर
सत्यपाल मलिक का जन्म उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसवाड़ा गाँव में हुआ था। उससे पहले के भी इतिहास की बात करें तो 300 साल पहले उनके पूर्वज पहले हरियाणा के रोहतक जिले के खरावड़ गाँव में रहा करते थे, जहाँ से उन्होंने पलायन किया था। सामान्य किसान परिवार में जन्मे सत्यपाल मलिक के ने पड़ोस में स्थित ढिकौली गाँव से इंटर तक की पढ़ाई पूरी की थी। उन्होंने छात्र जीवन से ही अपना राजनीतिक सफर शुरू किया और दो बार प्रधान चुने गए। मेरठ कॉलेज से उनकी सियासी पारी शुरू हुई थी, जहाँ वो दो बार छात्र संघ के अध्यक्ष रहे थे।
75 वर्षीय सत्यपाल मलिक मेरठ विश्वविद्यालय (अब चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी)से बीएससी और एलएलबी की पढ़ाई पूरी की थी। उन्हें दो प्रधानमंत्रियों का करीबी माना जाता था। चौधरी चरण सिंह और फिर वीपी सिंह का उन्हें वरदहस्त प्राप्त हुआ। वो कभी RSS से जुड़े नहीं रहे हैं, लेकिन भाजपा में वो राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद तक पहुँचे थे। वो दो बार राज्यसभा सांसद और एक बार लोकसभा सांसद रहे हैं। 1974-77 तक वो उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। कई संसदीय समितियों में उन्हें जगह दी गई और कइयों के वो अध्यक्ष भी रहे।
भारतीय संसद द्वारा संचालित किए जाने वाले ‘सांविधानिक तथा संसदीय अध्ययन केंद्र (Institute of Constitutional and Parliamentary Studies)’ से उन्होंने संसदीय मामलों के अध्ययन में डिप्लोमा की डिग्री भी ले रखी है। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कई पार्टियाँ बदली हैं। 1974 में जब वो बागपत से विधायक बने थे, तब उन्होंने चौधरी चरण सिंह के ‘भारतीय क्रांति दल’ से जीत दर्ज की थी। 1977 में आपातकाल के दौरान उन्होंने इसका विरोध किया, जिस कारण उन्हें इंदिरा गाँधी की सरकार ने जेल में डाल दिया था।
इसके बाद सत्यपाल मलिक चौधरी अजीत सिंह की ‘लोक दल’ से 1980 में राज्यसभा सांसद बने। 1985 तक वो इस पद पर रहे। 1985 में उन्होंने फिर से पाला बदला और कॉन्ग्रेस में चले गए। कॉन्ग्रेस ने भी उन्हें राज्यसभा सांसद बना दिया। हालाँकि, जब राष्ट्रीय राजनीति में वीपी सिंह का उद्भव हुआ तो उन्होंने उनका साथ देना उचित समझा और ‘जनता दल’ में शामिल हो गए। 1989 में इसी पार्टी के टिकट पर वो अलीगढ़ से सांसद चुने गए। प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार में उन्हें पर्यटन और संसदीय मामलों का केंद्रीय राज्यमंत्री बनाया गया।
गोवा राजभवन पर मौजूद सत्यपाल मलिक की प्रोफ़ाइल के अनुसार, उन्होंने 1965 में राम मनोहर लोहिया के समाजवाद से प्रेरित होकर राजनीति का रुख किया था। 1974 में उनकी जीत के बाद ‘भारतीय क्रांति दल’ ने उन्हें पार्टी का चीफ व्हिप नियुक्त किया था। जब वो कॉन्ग्रेस में गए, तब पार्टी ने उन्हें राज्यसभा सीट के साथ-साथ उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस कमिटी में जनरल सेक्रेटरी का पद भी दिया। 1987 में उन्होंने बोफोर्स घोटाले का विरोध कर के कॉन्ग्रेस से भी नाता तोड़ लिया।
फिर उन्होंने खुद की पार्टी बनाई, जिसका नाम रखा गया था – ‘जन मोर्चा’। 1987 में इसका विलय ‘जनता दल’ में कर दिया गया और वो विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ घूम-घूम कर रैलियों में उनके पक्ष में चुनाव प्रचार करने लगे। ‘जनता दल’ ने उन्हें सेक्रेटरी और प्रवक्ता बना कर इनाम दिया। इसके बाद उनके करियर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा शुरू होता है। 2004 में वो भाजपा में शामिल हुए और बागपत लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार नसीब हुई।
इस चुनाव में रालोद के अजीत सिंह की जीत हुई थी और सत्यपाल मलिक बसपा उम्मीदवार से भी पीछे तीन नंबर पर रहे थे। उन्हें मात्र 15.58% वोट नसीब हुए। जिस चौधरी चरण सिंह के कभी वो साथ थे, उनके बेटे के खिलाफ ही उन्होंने चुनाव लड़ा। हालाँकि, हार के बावजूद भाजपा ने उन्हें 2005 में यूपी में पार्टी का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया। 2009 में उन्हें भाजपा के ‘किसान मोर्चा’ का राष्ट्रीय प्रभारी बनाया गया। 2012 में उन्हें भाजपा ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया और 2014 में उन्हें पुनः इस पद के लिए चुना गया।
बतौर राज्यपाल अपने बयानों से जम कर बटोरी सुर्खियाँ
इसके बाद जब नरेंद्र मोदी की सरकार आई, तो पार्टी में पिछले 13 वर्षों से रहे सत्यपाल मलिक को राज्यपाल बनाया गया। ये वो समय था जब नीतीश कुमार की सरकार मुजफ्फरपुर में नाबालिग बच्चों के यौन शोषण मामलों में फँसी हुई थी। सत्यपाल मलिक ने मुख्यमंत्री को इस मामले को लेकर दो पत्र भेजे। इस शेल्टर होम कांड को उन्होंने दिल दहलाने वाला बताते हुए ऐसे उपाय करने के सुझाव दिए, जिससे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भी इस मामले को लेकर पत्र लिखे।
लेकिन, जब वो जम्मू कश्मीर पहुँचे तो उन्होंने वहाँ आतंकी हत्याओं की तुलना बिहार में अपराध से कर डाली। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर अन्य राज्यों की तरह ही है और यहाँ कोई नरसंहार नहीं हो रहा है। जनवरी 2019 में दिए गए बयान में उन्होंने कहा कि एक दिन में पटना में जितनी हत्याएँ होती हैं, वो जम्मू कश्मीर में एक सप्ताह में होने वाली हत्याओं के बराबर है। उन्होंने दावा किया था कि पत्थरबाजी और आतंकी संगठनों में युवाओं का भर्ती होना रुक गया है।
उन्होंने कश्मीर के आतंकियों को भी सार्वजनिक रूप से सलाह देते हुए कह दिया था कि जो युवा ‘गैर-जरूरी रूप से’ पुलिस वालों की हत्याएँ कर रहे हैं, उन्हें उनको मारना चाहिए जिन्होंने देश और कश्मीर के धन को लूटा है। बाद में उन्होंने इसे अपनी व्यक्तिगत सोच बताते हुए माफ़ी माँगते हुए कहा था कि एक राज्यपाल के रूप में उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था। गोवा में जाते उन्होंने जम्मू कश्मीर की बुराई शुरू कर दी। उन्होंने कह दिया कि वो एक समस्याओं वाले राज्य से आ रहे हैं, जिनसे वो सफलतापूर्वक निपटे।
उन्होंने गोवा को शांतिपूर्ण और विकासशील जगह बताते हुए कहा कि वो शांति से अब यहाँ समय व्यतीत करेंगे, क्योंकि गोवा का नेतृत्व विवादित नहीं है। उन्होंने कहा कि उनसे पहले जो जम्मू कश्मीर के राज्यपाल हुए वो शराब पीते थे और गोल्फ खेलते थे। उन्होंने कहा था, “गवर्नर का कोई काम नहीं होता। कश्मीर में जो गवर्नर होता है अक्सर वो दारू पीता है और गोल्फ खेलता है। बाकी जगह जो राज्यपाल होते हैं वो आराम से रहते हैं, किसी झगड़े में नहीं पड़ते।”
Know Satypal Malik. His history tells what he is doing in Present and Why. #SackSatyapalMalik
— Sushant Sinha (@SushantBSinha) November 23, 2021
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इसके बाद गोवा सरकार से भी उनकी ठन गई और उन्होंने मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत की सरकार पर कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक से न निपट पाने का आरोप मढ़ दिया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने सही निर्णय नहीं लिए और मुख्यमंत्री को अब पद छोड़ देना चाहिए। मेघालय में जाते सत्यपाल मलिक ‘किसान आंदोलन’ वाले विवाद में पड़ गए और लगातार प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया। गोवा में उन्होंने प्रमोद सावंत सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिए, जिससे विपक्ष को मुखर होने का मौका मिल गया।
हाल ही में एक इंटरव्यू में सत्यपाल मलिक ने राज्यपाल का पद छोड़ने से इनकार कर दिया। साथ ही वो इंटरव्यू से निकल भी गए। पत्रकार सुशांत सिन्हा ने इस इंटरव्यू के बाद कहा कि सत्यपाल मलिक को कुर्सी बड़ी प्यारी हैं। सत्यपाल मलिक ये कह कर भी सनसनी मचा चुके हैं कि RSS नेता से जुड़े जमीन की डील को आगे न बढ़ाने के कारण उन्हें जम्मू कश्मीर से हटा दिया गया, जिसके लिए उन्होंने 300 करोड़ रुपए बतौर घूस ऑफर किए गए थे। बाद में उन्होंने RSS का नाम घसीटने को लेकर माफ़ी माँग ली थी।