वह 2012 का 17 नवंबर था जब पूरी मुंबई ठहर गई थी। शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के निधन का समाचार सुनते ही कभी न रुकने वाले महानगर गुमसुम हो गया था। लेकिन, यह 2019 का 17 नवंबर है। बाल ठाकरे के बेटे और मौजूदा शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की सॉंसें अटकी हुई है और मुंबई हमेशा की तरह अपने रफ्तार से भाग रही है।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कॉन्ग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गॉंधी शिवसेना के साथ सरकार बनाने को लेकर अब भी तैयार नहीं हैं। एनसीपी के मुखिया शरद पवार के साथ उनकी होनी वाली मुलाकात इस संबंध में निर्णायक साबित हो सकती है। रविवार को पुणे में पवार अपनी पार्टी के नेताओं से चर्चा करने वाले हैं। इसके बाद वे दिल्ली आएँगे और सोमवार को उनकी मुलाकात सोनिया से हो सकती है।
Nawab Malik, Nationalist Congress Party (NCP) Mumbai president: Pawar Sahab (Party Chief Sharad Pawar) has called a meeting of core committee of NCP leaders tomorrow at 4 pm in Pune. #Maharashtra pic.twitter.com/dozorz7E2j
— ANI (@ANI) November 16, 2019
यह सब ऐसे वक्त में हो रहा है जब पिछले दिनों कहा गया था कि कॉमन मिनिमम प्रोग्राम को लेकर शिवसेना, राकांपा और कॉन्ग्रेस के बीच आम सहमति बन गई है। इसके मुताबिक शिवसेना अपने हिंदुत्व के एजेंडे से पीछे हटते हुए कथित अल्पसंख्यकों को 5 फीसदी अतिरिक्त आरक्षण देने और वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मॉंग से पीछे हटने को तैयार भी हो गई थी। सत्ता के समझौते के कथित मसौदे के मुताबिक शिवसेना को मुख्यमंत्री की कुर्सी और 16 मंत्री पद मिलने थे, वहीं एनसीपी को 14 और कॉन्ग्रेस के 12 विधायकों को मंत्री बनना था।
शिवसेना बाल ठाकरे की पुण्यतिथि पर सरकार गठन करना चाहती थी। लेकिन, सोनिया के बदले रुख ने आखिरी वक्त में उसकी पूरी योजना खटाई में डाल दी। इधर, एनडीए से औपचारिक रूप से शिवसेना का बाहर जाना करीब-करीब तय हो गया है। पार्टी सांसद संजय राउत ने कहा है कि संसद के 18 नवम्बर से शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र से पहले रविवार को दिल्ली में होने वाली राजग घटक दलों की बैठक में उनकी पार्टी की तरफ से कोई शामिल नहीं होगा। एनसीपी की मॉंग पर शिवसेना अपने मंत्री को मोदी कैबिनेट से पहले ही इस्तीफा दिलवा चुकी है। राउत ने यह भी कहा है कि पार्टी चाहती है कि उनके अध्यक्ष उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने।
बावजूद इसके शिवसेना की अड़चनें दूर होती नहीं दिख रही। गौरतलब है कि 21 अक्टूबर को हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने को 56 सीटें जीती थी। 288 सदस्यीय सदन में सबसे अधिक 105 सीटें भाजपा को मिली थी। कॉन्ग्रेस ने 44 और एनसीपी ने 54 सीटों पर जीत हासिल की थी। शिवसेना ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन नतीजों के बाद वह ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की मॉंग पर अड़ गई थी। इसे ठुकराते हुए भाजपा ने सरकार बनाने से इनकार कर दिया था। भाजपा को कई निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी है। महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल 119 विधायकों का समर्थन होने की बात कह चुके हैं।