Thursday, November 21, 2024
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डॉक्टर रेप-मर्डर केस में ममता बनर्जी की पैंतरेबाजी, नाकामियों का ठीकरा दूसरों पर फोड़ने की कोशिश: CBI को रविवार तक का दिया समय, विरोध प्रदर्शन का ऐलान

टीएमसी का राजनीतिक खेल इतनी बेशर्मी भरा है कि एक तरफ़ राज्य सरकार सीबीआई को 'समय सीमा' दे रही है और दूसरी तरफ़ हास्यास्पद समय सीमा समाप्त होने से ठीक एक दिन पहले बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की घोषणा कर रही है।

सोचिए कि एक महिला के साथ क्रूरतापूर्वक बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई, लेकिन लोगों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार राज्य सरकार पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए ‘विरोध प्रदर्शन’ पर उतर आती है। सुनने में ये बिल्कुल अजीब लग रहा है न? लेकिन पश्चिम बंगाल में यही हो रहा है, जहाँ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 32 वर्षीय प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ क्रूर बलात्कार और हत्या के अपराधियों को सजा देने की माँग करते हुए विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। इस मामले में एक पुलिस सहायक स्वयंसेवी संजय रॉय को गिरफ्तार किया गया है, जिसके कथित तौर पर अपना अपराध कबूल कर लिया है।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घोषणा की कि 17 अगस्त को उनकी पार्टी अपराधी को सजा दिलाने की माँग को लेकर सभी प्रखंडों में विरोध मार्च निकालेगी। फिर 18 अगस्त को सभी प्रखंडों में प्रदर्शन होगा और 19 अगस्त को दोषियों को फाँसी की सजा दिलाने की माँग को लेकर कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।

मुख्य आरोपित संजय रॉय गिरफ्तार, मृतक पीड़िता के लिए न्याय की माँग को लेकर डॉक्टरों का प्रदर्शन (फोटो साभार : टीवी9)

ममता बनर्जी ने सीबीआई को दी ‘समय सीमा’

ममता बनर्जी चाहती हैं कि अपराधी को फाँसी की सज़ा दी जाए और उन्होंने ‘माँग’ की है कि सीबीआई रविवार (18 अगस्त) तक यह काम पूरा कर ले। पीड़ित को न्याय दिलाने की ज़िम्मेदारी केंद्रीय जाँच एजेंसी पर डालने का ये एक मौजूदा मुख्यमंत्री का ख़तरनाक दुस्साहस है, जो ये स्पष्ट करता है कि तृणमूल कॉन्ग्रेस (टीएमसी) केंद्र पर दोष मढ़ने और अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने की बेताबी से कोशिश कर रही है। टीएमसी का राजनीतिक खेल इतनी बेशर्मी भरा है कि एक तरफ़ राज्य सरकार सीबीआई को ‘समय सीमा’ दे रही है और दूसरी तरफ़ हास्यास्पद समय सीमा समाप्त होने से ठीक एक दिन पहले बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की घोषणा कर रही है।

पुलिस के सामने ट्रकों में भर कर आए गुंडों ने की तोड़फोड़

इस बीच, प्रदर्शनकारी डॉक्टरों पर गुंडों द्वारा हमला किया जा रहा है, जिन्होंने 14 अगस्त को आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल परिसर में भी तोड़फोड़ की। 50 से अधिक लोगों की भीड़ ने अस्पताल में घुसकर डॉक्टरों पर हमला किया और यहाँ तक ​​कि उस इमारत में घुसने की कोशिश की, जहाँ जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई। इस दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही। यह भी आरोप है कि सत्तारूढ़ टीएमसी सरकार ने हमलों की साजिश रची।

ऐसा लगता है कि न्याय के लिए ‘समय सीमा’ राज्य सरकार ने बहुत सोच-विचार के बाद तय की है क्योंकि घटनाक्रम से पता चलता है कि जब तक सीबीआई मामले की जाँच करेगी, तब तक अधिकांश सबूत नष्ट हो चुके होंगे और प्रदर्शनकारियों को चुप करा दिया जाएगा। माहौल बनाने के लिए सीएम बनर्जी अपनी खुद की अक्षमता का दोष केंद्र पर डाल देंगी और कहेंगी कि सीबीआई मृतक पीड़िता को न्याय दिलाने में विफल रही।

ममता बनर्जी चाहती हैं कि सीबीआई रविवार तक अपराधी को फाँसी पर लटका दे, लेकिन उनकी सरकार पर इस मामले में शामिल लोगों को बचाने का आरोप है। 9 अगस्त को आरजी कर मेडिकल कॉलेज के सेमिनार हॉल में एक पीजी ट्रेनी डॉक्टर का अर्धनग्न शव मिलने के बाद अस्पताल प्रबंधन ने उसके परिवार को सूचित किया कि उसने आत्महत्या कर ली है।

सीबीआई का काम जाँच करना, सजा देने का काम अदालत का

दरअसल, कलकत्ता हाई कोर्ट आरजी कर कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष को बचाने के लिए राज्य सरकार को फटकार लगाई और कहा कि इसे आत्महत्या बताकर इस जघन्य अपराध को छिपाने की कोशिश की जा रही है। यह ध्यान देने योग्य है कि घोष ने विरोध प्रदर्शनों के बीच इस्तीफा दे दिया और उसी दिन उन्हें राज्य सरकार के कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (सीएनएमसीएच) का प्रिंसिपल नियुक्त कर दिया गया। तथ्य यह है कि कलकत्ता हाई कोर्ट ने आरजी कर मेडिकल बलात्कार और हत्या मामले को सीबीआई को सौंप दिया, जब पीड़िता के माता-पिता ने चिंता जताई कि कोलकाता पुलिस सही से जाँच नहीं कर रही। ये बात साफ है कि स्थानीय पुलिस निष्पक्षता से काम नहीं कर रही।

ऑपइंडिया ने बताया कि मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने किस तरह से चेस्ट मेडिसिन डिपार्टमेंट की दीवारों को ढहा दिया, जहाँ लड़की के साथ बलात्कार हुआ और उसकी हत्या कर दी गई। भाजपा ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार दीवारों को तोड़कर मामले में सबूतों से छेड़छाड़ करने की कोशिश कर रही है। इन घटनाओं के मद्देनजर, ममता बनर्जी ने सीबीआई पर ‘बोझ’ डालकर न्याय सुनिश्चित करने में अपनी विफलता के लिए अपनी सरकार और राज्य पुलिस को आलोचना से बचाने का चतुराई से प्रयास किया।

आम आदमी पार्टी की राह पर ममता बनर्जी

ममता बनर्जी के विरोध प्रदर्शन की घोषणा से सवाल उठता है कि वह किसके खिलाफ विरोध कर रही हैं, कोलकाता पुलिस के खिलाफ, अपराधी के खिलाफ या खुद के खिलाफ? क्योंकि वह मुख्यमंत्री हैं। इसका एक और पहलू है: कहानी को तोड़-मरोड़ कर पेश करना। इस समय, इस भयावह घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है, मीडिया दिखा रहा है कि कैसे पश्चिम बंगाल और देश के दूसरे हिस्सों में डॉक्टर शांतिपूर्वक विरोध कर रहे हैं और कैसे पुलिस की मौजूदगी में बंगाल में उन पर हमला किया गया। हालाँकि, राज्य की मुख्यमंत्री खुद ‘न्याय’ की माँग करते हुए ‘विरोध’ करेंगी, जबकि लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना उनका काम है, लेकिन वो खुद प्रदर्शन कर रही हैं और न्याय माँगने वालों में शामिल हो गई हैं। ताकि ये भूमिका बनाई जा सके कि ममता बनर्जी पीड़िता के साथ खड़ी हुई हैं, जबकि है इसका एकदम उलटा।

मुख्यमंत्री के तौर पर बनर्जी पश्चिम बंगाल में कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। उनकी स्थिति के अनुसार राज्य के निवासियों की सुरक्षा और संरक्षा को बनाए रखने के लिए त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई की आवश्यकता है, न कि विरोध प्रदर्शन आयोजित करने या उनमें शामिल होने की, जैसे कि वह राज्य की सरकार के लिए बाहरी व्यक्ति या विपक्षी नेता हैं।

एक मौजूदा मुख्यमंत्री द्वारा उसी व्यवस्था के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करना, जिसे वह नियंत्रित करती हैं, राज्य के शासन की जिम्मेदारी लेने और ऐसे भयानक अपराधों पर तुरंत और निर्णायक रूप से प्रतिक्रिया देने में विफलता को दर्शाता है। आगे बढ़कर नेतृत्व करने और यह सुनिश्चित करने के बजाय कि अपराधियों को तुरंत न्याय के कटघरे में लाया जाए। ऐसा न कर पाने की वजह से ही कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस मामले की जाँच सीबीआई को सौंपी है, लेकिन ममता बनर्जी इस पूरे मामले को अब अपने राजनीतिक लाभ के फायदे के लिए इस्तेमाल करने पर उतर आई हैं।

संयोग से, पश्चिम बंगाल में टीएमसी सरकार का ये नाटक नई दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की याद दिलाता है। आप पारंपरिक रूप से “सामान्य दिनों में सरकार की तरह व्यवहार करें, संकट में विपक्ष की तरह व्यवहार करें” के मंत्र का पालन करती रही है। चाहे वह राष्ट्रीय राजधानी में पानी के संकट का सामना करने पर जल मंत्री आतिशी द्वारा किया गया ‘पानी सत्याग्रह’ और आमरण अनशन का नाटक हो और बेशर्मी से इसके लिए पड़ोसी राज्यों को दोषी ठहराना हो, आप ने केंद्र और पड़ोसी हरियाणा और हिमाचल प्रदेश को खलनायक बनाकर अपनी खुद की विफलताओं के लिए जवाबदेही से सफलतापूर्वक पल्ला झाड़ लिया, साथ ही मीडिया का ध्यान पानी के टैंकरों के पीछे भाग रहे दिल्ली के लोगों से हटाकर आतिशी की कथित तौर पर ‘अनशन’ के कारण बिगड़ती तबीयत और उन्हें अस्पताल ले जाने की ओर मोड़ दिया।

ऐसा लगता है कि बनर्जी विरोध प्रदर्शन आयोजित करके अपने शासन में प्रशासनिक विफलताओं से खुद को दूर कर रही हैं, जिसका उद्देश्य खुद को एक सहानुभूतिपूर्ण नेता के रूप में पुनः ब्रांड करना है जो पीड़ित के साथ खड़ी है। हालाँकि, यह रणनीति भयावह अपराध के प्रति वास्तविक प्रतिक्रिया के बजाय केवल एक सतही इशारा है। जनता के आक्रोश के सामने ऐसा लगता है कि वह अपनी छवि को साफ करने का प्रयास कर रही हैं। ये सीएम बनर्जी की खुद को खबरों में बनाए रखने की खोखली चाल हैं, जबकि उनकी सरकार की विफलता पूरी दुनिया देख रही है।

ममता बनर्जी किस तरह से पीड़ित को न्याय दिलाने की जगह राजनीति साध रही है, इसे इस बात से समझिए कि अगर सीबीआई रविवार तक अपनी जाँच पूरी भी कर लेती है, तो ममता बनर्जी इस बात का ढिंढोरा पीटेंगी कि उन्होंने पीड़ित को न्याय दिलाया। और अगर ऐसा नहीं हो पाता है, तो वो पूरी जिम्मेदारी सीबीआई और केंद्र सरकार पर डालने की कोशिश करेंगी। वो ऐसा माहौल बनाएँगी कि केंद्र सरकार महिला विरोधी और असंवेदनशील है। उन्होंने सीबीआई को समयसीमा देकर अपने प्रति लोगों का समर्थन जुटाने की रणनीति बनाई है। जबकि ये बात सभी जानते हैं कि सीबीआई का काम सिर्फ जाँच करना है और तथ्यों को अदालत के सामने रखना है न कि किसी को फाँसी पर लटकाने का फैसला देना।

ये कैसी विडम्बना है कि पीड़ित परिवार को स्थानीय अधिकारियों के अधीन मामले की जाँच प्रभावित होने की चिंता की वजह से कोर्ट जाना पड़ा और सीबीआई जाँच की माँग करनी पड़ी, जबकि उस राज्य की नेता ने सीबीआई को रविवार तक का समय देने का दुस्साहस कर दिया है।

खुद फेल होना और हर बात के लिए केंद्र को दोषी ठहराना ममता की यूएसपी

साल 2019 में ममता बनर्जी ने चक्रवात फानी के भारत के पूर्वी तट पर पहुँचने के बाद ध्यान भटकाने के लिए केंद्र को दोषी ठहराने की कोशिश की थी, जिसमें ओडिशा और पश्चिम बंगाल के तटीय क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे। बनर्जी ने दावा किया था कि पीएम मोदी ने चक्रवात फानी के बाद ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक से बात की, लेकिन उन्होंने उन्हें फोन करने की जहमत नहीं उठाई। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने दावा किया था कि चक्रवात के राज्य के ‘संघीय ढांचे पर हमला’ होने के बाद पीएम मोदी ने सीएम से नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से बात की थी। हालाँकि, बाद में पीएमओ ने स्पष्ट किया कि पीएम के स्टाफ ने सीएम ममता को पीएम से बात करने के लिए दो बार फोन करने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। दोनों मौकों पर पीएम के स्टाफ को बताया गया कि वह कॉल बैक करेंगी, जो कभी नहीं हुआ।

डॉक्टरों का विरोध प्रदर्शन 2019 में हुए इसी तरह के आंदोलन की याद दिलाता है, जब एनआरएस मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के दो डॉक्टरों पर एक मरीज मोहम्मद सईद के रिश्तेदारों ने हमला किया था, जिसकी जून 2019 में इलाज के दौरान मौत हो गई थी। डॉक्टरों की शिकायतों को दूर करने के बजाय, ममता बनर्जी ने उन पर ‘बाहरी‘ होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘वे बाहरी हैं। सरकार किसी भी तरह से उनका समर्थन नहीं करेगी। मैं हड़ताल पर गए डॉक्टरों की निंदा करती हूँ। पुलिसकर्मी ड्यूटी के दौरान मरते हैं लेकिन पुलिस हड़ताल पर नहीं जाती है।’

उस समय, मुख्यमंत्री बनर्जी ने प्रदर्शनकारी चिकित्सकों को काम पर लौटने के लिए सख्त ‘समय सीमा’ दी थी, हालाँकि बाद में उन्हें अपना रुख नरम करना पड़ा और अस्पतालों में सुरक्षा बढ़ाने का आश्वासन देना पड़ा।

केंद्र पर दोष मढ़ने के अलावा, सीएम बनर्जी कानून और व्यवस्था को बनाए रखने में अपनी प्रशासन की विफलता को छिपाने के लिए पीड़ितों को उनकी स्थिति के लिए दोषी ठहराने में भी एक्सपर्ट हैं। उदाहरण के लिए, उन्होंने पहले यह आरोप लगाया था कि जब हिंदू ‘मुस्लिम क्षेत्रों’ से रामनवमी जुलूस निकालते हैं तो हिंसा होती है और उन्होंने इस्लामिक कट्टरपंथियों को उनके धर्म और रमज़ान का हवाला देकर क्लीन चिट देने का भी प्रयास किया।

रेप के मामलों को खारिज करने में माहिर हैं ममता बनर्जी

दुख की बात है कि टीएमसी शासित पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध असामान्य नहीं हैं। हाल ही में देखा गया कि कैसे तजामुल हक ने अपनी ‘शरिया अदालत‘ चलाई और एक महिला को तालिबानी अंदाज में जमीन पर पटक कर पीटा, जबकि दूसरी महिला को बांधकर सड़कों पर घुमाया। टीएमसी विधायक हमीदुल रहमान ने पश्चिम बंगाल को ‘मुस्लिम राष्ट्र’ बताते हुए इस कृत्य को उचित ठहराया। देश ने देखा कि कैसे ईडी अधिकारियों पर हमला करने वाले शाहजहाँ शेख और उसके गुर्गों ने संदेशखली में आदिवासी महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया और सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को उसे बचाने के लिए फटकार लगाई।

ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं जब सीएम बनर्जी ने खुद एक महिला होने के बावजूद महिला पीड़ितों के प्रति अपनी अपमानजनक असंवेदनशीलता दिखाई है। पिछले साल अप्रैल में, उन्होंने दावा किया कि कालीगंज में कथित ‘बलात्कार और हत्या का मामला एक ‘प्रेम प्रसंग’ था जो गलत हो गया। बताया गया कि उत्तर दिनाजपुर जिले के कालियागंज इलाके में एक दलित महिला नहर में तैरती हुई पाई गई। बताया गया कि पीड़िता की हत्या से पहले उसके साथ बलात्कार किया गया था।

2022 में, उन्होंने 14 वर्षीय लड़की के साथ क्रूर बलात्कार और हत्या के आरोपों को ‘प्रेम संबंध’ के रूप में गलत साबित करने की कोशिश की। इसी तरह, 2012 में, ममता बनर्जी ने कोलकाता के पार्क स्ट्रीट में एक एंग्लो-इंडियन महिला सुजेट जॉर्डन के साथ बलात्कार के आरोपितों को दोषमुक्त कर दिया था। बनर्जी ने कहा कि यह घटना ‘शाजानो घोटोना’ (मनगढ़ंत घटना) थी, जिसे कथित तौर पर ‘सरकार को बदनाम करने के लिए डिज़ाइन किया गया था।’ 2013 में बनर्जी ने राज्य में बढ़ते बलात्कार के मामलों को जनसंख्या में वृद्धि से जोड़ा था।

आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल मामले की बात करें तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राजनीतिक लाभ के लिए इस तरह के गंभीर मुद्दे पर दोष मढ़ने और उसका राजनीतिकरण करने के बजाय सुरक्षा और कानून व्यवस्था सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। इस देश के लोगों को याद रहेगा कि कैसे एक मौजूदा मुख्यमंत्री ने पीड़ितों के लिए पूरी जाँच और न्याय सुनिश्चित करने के बजाय प्रशासनिक कमियों से ध्यान हटाने के लिए विरोध प्रदर्शन आयोजित किए थे।

यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित है। मूल लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

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