बच्चे कह रहे मम्मा आपके टॉप होने का क्या फायदा। आप हमें ज्यादा पढ़ने के लिए मत कहा करो। यह दर्द है सीमा सूर्यवंशी का। सीमा का नाम मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग (MPPSC) की सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा की चयनित सूची के मेरिट लिस्ट में हैं। लेकिन, उन्हें अब तक नियुक्ति पत्र नहीं मिला है।
उनके जैसी आरक्षित वर्ग की 91 महिलाएँ मेरिट लिस्ट में होकर भी नियुक्ति पत्र से वंचित हैं। ऐसी ही एक महिला हुमा अख्तर ने ऑपइंडिया को बताया, “मेरिट लिस्ट में जगह बनाने पर हमें प्रोत्साहन मिलना चाहिए था। लेकिन वह भी नहीं मिल रहा जिसके हम हकदार हैं। क्या पिछड़े वर्ग से होकर मेरिट लिस्ट में आना हमारा गुनाह है?”
असल में आरक्षित वर्ग की इन महिलाओं को मेरिट लिस्ट के आधार पर अनारक्षित सीट के लिए चयनित करने का फैसला किया गया। फिर मामला कोर्ट में चला गया। इन महिलाओं का कहना है कि उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारी कोर्ट के फैसले की गलत तरीके से व्याख्या कर उनकी नियुक्ति में अड़चनें डाल रहे हैं। राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी से मिलकर भी ये कई बार फरियाद लगा चुकी हैं। थक-हार कर रविवार (5 जनवरी 2020) को इन्होंने भोपाल के नीलम पार्क में धरना दिया। इस दौरान कुछ महिलाएँ अपने बच्चों के साथ ही बैठी थीं। इन्होंने बताया कि 7 जनवरी को होने वाली सुनवाई के दौरान मंत्री जीतू पटवारी के वादे के अनुसार यदि उच्च शिक्षा विभाग ने एफिडेविट दायर नहीं किया तो वे आमरण अनशन पर बैठने को मजबूर होंगी।
लेकिन, क्या लंबे समय तक आंदोलन से इन्हें इनका हक मिल जाएगा?
अतिथि विद्वानों के अनुभव को देखकर तो ऐसा नहीं लगता। इस कड़ाके की ठंड में भी अतिथि विद्वान राजधानी के शाहजहाँनी पार्क में 28 दिन से धरने पर बैठे हैं। कफन ओढ़कर प्रदर्शन कर चुके हैं। खून से दीया जला चुके हैं। शहर की सड़कों पर शनिवार को शू पॉलिश कर विरोध जताया। लेकिन, सरकार ने अब तक इनकी सुध नहीं ली है।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार शनिवार को राज्य कैबिनेट की बैठक में इस मसले पर चर्चा हुई तो कमलनाथ कैबिनेट ही दो खेमों में बँट गई। बैठक के दौरान तय किया गया कि आंदोलनरत करीब 5000 अतिथि विद्वानों को एडजस्ट करने के लिए कॉलेजों में एक हजार नए पद स्वीकृत किए जाएँ। लेकिन इसके खर्च को लेकर वित्त विभाग की आपत्ति और नियमितीकरण को लेकर मंत्रियों जीतू पटवारी, गोविंद सिंह राजपूत, डॉ. गोविंद सिंह और बाला बच्चन की अलग-अलग राय होने के चलते कोई फैसला न हो सका। इसका समाधान खोजने के लिए पॉंच मंत्रियों की जो समिति बनी थी उसने भी बैठक में सुझाव रखे। लेकिन सबके सुझाव अलग-अलग थे। आखिर में सीएम कमलनाथ ने मंत्री जीतू पटवारी, मुख्य सचिव एसआर मोहंती और अपर मुख्य सचिव वित्त अनुराग जैन की एक और कमेटी बना दी।
गौरतलब है कि शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते हुए 2017 में एमपीपीएससी ने सहायक प्राध्यापकों, लाइब्रेरियन और स्पोर्टस ऑफिसर की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया। 1992 के बााद पहली बार सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया शुरू की गई थी। विधानसभा चुनाव के कारण परीक्षा 2018 में हुई। लेकिन रिजल्ट आते ही विवाद शुरू हो गए। करीब सालभर नियुक्ति ही नहीं दी गई। फिर सहायक प्राध्यापक के चयनित उम्मीदवारों ने पद यात्रा निकाली। राजधानी भोपाल पहुॅंचकर सिर मुॅंडवाए। इसके बाद 3 दिसंबर को सीएम कमलनाथ ने ट्वीट कर बताया कि उन्होंने पीएससी से चयनित लोगों को नियुक्ति पत्र जारी करने के निर्देश दे दिए हैं।
इस बीच कई मामले कोर्ट भी गए। इनमें से ही एक मामला मेरिट लिस्ट में आने वाली आरक्षित वर्ग की 91 महिलाओं से जुड़ा है। परीक्षा के दौरान ज्यादा अंक पाने वाले आवेदकों को मेरिट लिस्ट के आधार पर अनारक्षित सीट के लिए चयनित किया गया। सामान्य वर्ग की महिला आवेदकों ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की। 18 सितंबर 2019 को हाई कोर्ट का आदेश आया। मेरिट लिस्ट में शामिल श्वेता हार्डिया ने ऑपइंडिया को बताया कि इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि आरक्षित वर्ग की मेरिट लिस्ट में आने वाली महिला उम्मीदवारों का समायोजन सामान्य श्रेणी के कोटे में होगा।
हार्डिया के अनुसार इस आदेश की तरीके से व्याख्या नहीं की गई और उन्हें महाविद्यालयों की च्वाइस फिलिंग की प्रक्रिया से रोक दिया। इसके बाद 14 अक्टूबर को ये महिलाएँ हाई कोर्ट पहुॅंची और आदेश पर स्पष्टीकरण देने की गुहार लगाई। 17 अक्टूबर को हाई कोर्ट ने मेरिटोरियस महिलाओं को नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल करने का आदेश MPPSC और उच्च शिक्षा विभाग को दिया। हार्डिया के अनुसार फिर भी उनको नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया है, जबकि ऐसे लोगों को नियुक्ति पत्र दिए गए हैं जिनके नाम चयन सूची के आखिर में हैं।
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