उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों (Uttar Pradesh Assembly Election 2022) के तीसरे चरण का मतदान आज रविवार (20 फरवरी) को जारी है। इस चरण प्रदेश का सबसे हॉट विधानसभा सीट करहल सुर्खियों में है। करहल विधासभा सीट पर समाजवादी पार्टी के मुखिया और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Samajwadi Party Chief and Ex-CM Akhilesh Yadav) चुनाव लड़ रहे हैं और उनके विरोध में भाजपा (BJP) के एसपी सिंह बघेल के नाम से विख्यात सत्यपाल सिंह बघेल (Satya Pal Singh Baghel) उम्मीदवार हैं।
अखिलेश यादव ने यह सीट बहुत सोच-समझकर चुना है। इस जगह पर उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने साल 1955 से 1963 तक पढ़ाई की थी और फिर जैन इंटर कॉलेज में लेक्चरर बन गए थे। साल 1963 से 1984 तक मुलायम सिंह ने इस कॉलेज में राजनीति विज्ञान पढ़ाया था। राजनीति में आने के बाद मुलायम सिंह यादव ने इसी भूमि को अपनी राजनीति की कर्मभूमि भी बनाया। वे मैनपुरी लोकसभा सीट से लंबे समय तक सांसद रहे। इसी मैनपुरी जिले में करहल विधानसभा सीट आता है।
आगरा से भाजपा सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री बघेल पर हाल ही में करहल में हमला हुआ था। कहा जाता है कि अखिलेश यादव के समर्थकों और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उन पर हमला किया था। इसके बाद सरकार ने उन्हें जेड कैटेगरी की सुरक्षा उपलब्ध कराई है। आज अखिलेश यादव के सबसे बड़ राजनीतिक दुश्मन बघेल कभी उनके पिता मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी थे।
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के सुरक्षा अधिकारी
बात 1989 की है। उत्तर प्रदेश में पहली बार समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने थे। उस वक्त उनकी सुरक्षा में यूपी पुलिस का एक 30 वर्षीय युवा सब इंस्पेक्टर तैनात हुआ। उसकी नई-नई शादी ही थी, लेकिन शादी के चार दिन बाद ही उसने अपनी ड्यूटी ज्वॉइन कर ली। दिन-रात मुलायम सिंह के आसपास रहने के कारण वे भी बघेल को पहचानने लगे और एक समय ऐसा भी आया, जब वह मुलायम सिंह के बेहद खास हो गए।
करीब डेढ़ साल तक ऐसे ही चलते रहा, लेकिन जून 1991 में मुलायम सिंह यादव की सरकार गिर गई और उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। मुलायम सिंह की जगह भाजपा के कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बन गए और बघेल उनकी सुरक्षा में लगे रहे। हालाँकि, वह मुलायम सिंह यादव के लगातार संपर्क में रहे। साल 1993 में अचानक बघेल में पुलिस विभाग से इस्तीफा दे दिया। तब मुलायम सिंह ने उन्हें समाजवादी पार्टी की यूथ ब्रिगेड का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। यहीं से बघेल के राजनीतिक जीवन की शुरुआत होती है।
राजनीतिक जीवन की शुरुआत
साल 1993 में मुलायम सिंह यादव फिर से मुख्यमंत्री बने और वह उनके और करीब होते चले गए। औरेया के भटपुरा गाँव के गड़ेरिया (अनुसूचित जाति) आने वाले बघेल नौकरी छोड़कर यूथ ब्रिगेड में जमे रहे। इस दौरान अपना और अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए उन्होंने मिलिट्री साइंस में पीएचडी किया और आगरा कॉलेज में नौकरी करने लगे और साथ में राजनीति भी।
समय गुजरता रहा और 1996 में लोकसभा चुनाव का वक्त आया। बघेल ने मुलायम सिंह यादव से टिकट माँगी, लेकिन उन्होंने बघेल को टिकट नहीं दिया। इसके बाद उन्होंने मायावती (Mayawati) की पार्टी बहुजन समाजवादी पार्टी (BSP) ज्वॉइन कर ली। उन्होंने इटावा के जलेसर सीट से चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गए। 1998 में लोकसभा चुनावों में उन्होंने मुलायम सिंह यादव से संपर्क किया और इस बार उन्हें उसी जलेसर सीट से सपा का टिकट मिल गया। इस बार बघेल का भाग्य खुल गया था। सपा की टिकट पर बघेल भारी मतों से विजयी घोषित हुए। इसके बाद इसी सीट से वह 1999 और 2004 में चुनाव जीते।
साल 2010 में आपसी मतभेद के बाद सपा ने उन्हें पार्टी के निकाल दिया। इस बार वे फिर मायावती से मिले और मायावती ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। उसके बाद आया साल 2014 का मोदी लहर, जिसमें बड़े-बड़े नेता धाराशायी हो गए। इस लहर में बघेल भी जीत नहीं पाए। साल 2015 में वह भाजपा में शामिल हो गए।
भाजपा में बघेल
भाजपा में शामिल होने के बाद वे पार्टी की टिकट पर साल 2017 में कानपुर के टुंडला से लड़े और जीते। उन्हें प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री बनाया गया। उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में आगरा से टिकट मिला और वे जीतकर केंद्र में मंत्री बने।
चार बार सांसद रहे एसपी सिंह बघेल करहल सीट से अखिलेश यादव के खिलाफ मैदान में हैं। बघेल के पक्ष में प्रचार के लिए मुख्यमंत्री योगी भी जा चुके हैं। बघेल के खड़ा होने के बाद अखिलेश के सुरक्षित मानी जा रही करहल सीट भी उनके लिए चुनौती बनती जा रही है।
व्यक्तिगत जीवन
सत्यपाल सिंह बघेल उर्फ प्रो. एसपी सिंह बघेल के पिता राम भरोसे सिंह मध्य प्रदेश पुलिस विभाग में तैनात थे। इंदौर के यशवंतराव होल्कर अस्पताल में बघेल का जन्म हुआ। इसके साथ ही उनकी प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक मध्य प्रदेश में ही हुई। उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा में सब इंस्पेक्टर के तौर पर भर्ती होने के बाद उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के सुरक्षा गार्ड के रूप में तैनाती मिली थी।