उत्तर-पूर्वी दिल्ली हाल ही में हिंदू विरोधी दंगों की आग में जला है। इन दंगों पर राजनीतिक रोटी सेंकने और समुदाय विशेष को पीड़ित बताने के प्रपंच में शामिल नेताओं में एनसीपी के मुखिया शरद पवार का नाम भी शामिल है। उनका कहना है कि पीएम ‘कपड़ों से दंगाइयों को पहचाने जाने’ की बात कर मजहब विशेष पर हमला कर रहे हैं। वे मोदी-शाह पर समाज के विभाजन का आरोप मढ़ते हैं। दंगों के लिए भी वे बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा जैसों को जिम्मेदार बताते हैं।
मुस्लिमो को पीड़ित दिखाने के लिए झूठ का सहारा लेना पवार की पुरानी आदत है। ऐसा उन्होंने 1993 के मुंबई धमाकों के वक्त भी किया था। 12 मार्च 1993 को मुंबई को दहलाने वाले 12 सीरियल बम धमाके हुए। लेकिन पवार ने 13वें धमाके की कहानी गढ़ी। बताया कि एक धमाका मस्जिद बंदर में भी हुआ था। चूँकि इन धमाकों में हिन्दू बहुल इलाकों को निशाना बनाया गया था, तो पवार ने कट्टरपंथियों को पीड़ित की तरह पेश करने के लिए मस्जिद में विस्फोट की कहानी गढ़ी। उन्होंने कट्टरपंथी आतंकियों को बचाने के लिए बम को ‘साउथ इंडियन आतंकियों’ वाला भी बताया।
इस हमले को अंजाम देने वाले याकूब मेमन, टाइगर मेमन, दाऊद इब्राहिम और छोटा शकील जैसे लोग कौन थे, ये किसी से छिपा नहीं है। आज पवार आरोप लगाते हैं कि भाजपा साम्प्रदायिकता को हवा देकर देश की राजधानी को जला रही है। साथ ही वो दंगाइयों और पुलिस के बाच गठजोड़ की बात करते हैं। वही पुलिस, जिसके हेड कांस्टेबल रतन लाल दंगाइयों द्वारा मार डाले गए। डीसीपी अमित शर्मा किसी तरह लिंच होने से बचे।
शरद पवार का कहना है कि उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द्र को बरकरार रखने के लिए झूठ बोला था। उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे पवार ने मुस्लिमों को भी पीड़ित दिखाने के लिए बम ब्लास्ट्स की संख्या बढ़ा दी थी। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्होंने एक अतिरिक्त बम ब्लास्ट की ‘खोज’ कर ली थी, जो असल में हुआ ही नहीं था। भले ही आपको यह अविश्वसनीय लगे लेकिन यही सच है।
ये ऐसा पहला आतंकी हमला था, जब भारत में आरडीएक्स का इस्तेमाल किया गया था। 26/11 तरह ये हमले भी पूर्व नियोजित थे और इन्हें काफी प्लानिंग के बाद अंजाम दिया गया था। उन ब्लास्ट्स में 300 के क़रीब लोग काल के गाल में समा गए थे, वहीं 1400 के क़रीब लोग घायल हुए थे। यह भारत की ज़मीन पर आतंकी हमलों में हुई अब तक की सबसे बड़ी क्षति है।
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार ने हमलों के तुरंत बाद दूरदर्शन स्टूडियो में जाकर बोला था और घोषणा की थी कि कुल 13 धमाके हुए हैं। उन्होंने न जाने कहाँ से एक अतिरिक्त विस्फोट की ‘खोज’ कर ली थी।
NCP Chief Sharad Pawar in Mumbai: The national capital has been burning since the last few days. The ruling party at the Centre could not win the Delhi Assembly polls and tried to divide the society by promoting communalism. pic.twitter.com/YmyzaQBivR
— ANI (@ANI) March 1, 2020
पवार ने दावा किया था कि उनके इस झूठ के लिए उनकी प्रशंसा की गई थी। एनसीपी सुप्रीमो ने इस हमले में समुदाय विशेष को बराबर पीड़ित दिखाने व सच्चाई को दबाने के लिए झूठ का सहारा लिया था। ऐसा स्वयं पवार ने स्वीकार किया था। उन्होंने इसे ‘संतुलन’ के लिए किया गया प्रयास बताया था। हमले के 22 वर्षों बाद पवार ने पुणे में आयोजित 89वीं मराठी साहित्यिक बैठक को सम्बोधित करते हुए स्वीकार किया था कि उन्होंने जान-बूझकर एक अतिरिक्त बम ब्लास्ट की कहानी गढ़ी ताकि एक विशेष मजहब को पीड़ित दिखा कर सांप्रदायिक तनाव से बचा जाए क्योंकि ‘पाकिस्तान ऐसा ही चाहता था’। उन्होंने कहा कि उन्हें भी यह पता था कि ये सभी धमाके हिन्दू बहुल क्षेत्रों में हुए थे।
पवार ने कहा कि उन्होंने दूरदर्शन स्टूडियो जाकर ऐसा कहा क्योंकि यह सांप्रदायिक तनाव की स्थिति को बचाने के लिए सही था। वे लोगों को इस बात का एहसास दिलाना चाहते थे कि मजहब के लोग भी इस विस्फोट के शिकार हुए हैं। उन्होंने दावा किया कि न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण आयोग द्वारा उनके इस क़दम की सराहना की गई थी। यहाँ तक की पवार ने उस हमले का दोष लिट्टे पर भी मढ़ा था। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम दंगे रोकने के लिए ऐसा करने का दावा किया। 78 वर्षीय पवार भारत सरकार में केंद्रीय रक्षा व कृषि मंत्री रह चुके हैं।
12 मार्च 1993 में इन स्थानों पर धमाके हुए थे- मुंबई स्टॉक एक्सचेंज, नरसी नाथ स्ट्रीट, शिव सेना भवन, एयर इंडिया बिल्डिंग, सेंचुरी बाज़ार, माहिम, झावेरी बाज़ार, सी रॉक होटल, प्लाजा सिनेमा, जुहू सेंटॉर होटल, सहार हवाई अड्डा और एयरपोर्ट सेंटॉर होटल। इस धमाके का साज़िशकर्ता दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन था। इसकी पूरी साज़िश पाकिस्तान में रची गई थी। उस दिन को आज भी ब्लैक फ्राइडे के नाम से जाना जाता है।