कॉन्ग्रेस जो कहती है वह पूरा नहीं करती। यह कहना है नेशनल कॉन्ग्रेस पार्टी (एनसीपी) के मुखिया शरद पवार का। मनमोहन सरकार में मंत्री रहे पवार कॉन्ग्रेस में लंबे अरसे तक रह चुके हैं। फिलहाल उनकी पार्टी महाराष्ट्र में कॉन्ग्रेस की सहयोगी है।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे की आत्मकथा के विमोचन पर पवार ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता कि 2005 में शिवसेना छोड़ कॉन्ग्रेस में शामिल होना राणे की भूल थी या मूर्खता।
पवार ने कहा कि उस वक़्त राणे के पास एनसीपी में शामिल होने का भी विकल्प था। मैंने मुख्यमंत्री बनाने के
कॉन्ग्रेस के वादे को लेकर भी उन्हें आगाह किया था।
पवार ने कहा, “राणे ने उस समय कॉन्ग्रेस में शामिल होने का फैसला इसलिए किया क्योंकि पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था। राणे को लगा था कि कॉन्ग्रेस अपना वादा पूरा करेगी। लेकिन कॉन्ग्रेस ऐसे काम नहीं करती। मेरे जैसे नेताओं को पता है कि ऐसे वादे केवल फायदे के लिए होते हैं। कॉन्ग्रेस जो कहती है, पूरा नहीं करती। मैंने कॉन्ग्रेस में लंबा वक्त बिताया है।”
एनसीपी प्रमुख ने कहा कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से लगता है कि शिवसेना छोड़ना राणे की गलती थी। अगर राणे ने शिवसेना नहीं छोड़ी होती, तो राज्य में राजनीतिक परिदृश्य बिल्कुल अलग होते। वह राज्य में आज एक प्रमुख भूमिका निभा रहे होते।
वहीं, कार्यक्रम के दौरान राणे ने कहा, “जब मैं विधायक बना, तब मैं मंत्री बनना चाहता था और जब मैं मंत्री बना, तो मैं मुख्यमंत्री बनना चाहता था और बना भी। अब मैं सांसद हूँ, लेकिन अपनी इच्छा से नहीं।” राणे ने कहा कि उनको बुरा लगता है कि उनके जीवन का अधिकतर समय बर्बाद हो गया और अब भी बर्बाद हो रहा है। इस समारोह में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी मौजूद थे।
गडकरी ने कहा कि राणे से उनका रिश्ता राजनीति से ऊपर था। उनके निजी राजनीतिक जीवन में दो नेताओं (राणे और गोपीनाथ मुंडे) के लिए बेहद सम्मान है। बता दें कि, राणे ने 2017 में कॉन्ग्रेस छोड़ ‘महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष’ का गठन किया था और बाद में वह सत्तारूढ़ बीजेपी के सहयोगी बन गए। अभी वह बीजेपी के कोटे से राज्यसभा के सदस्य हैं।