Tuesday, November 5, 2024
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‘तिरंगा नहीं उठाएँगे, कश्मीर पर चीन का शासन करवाएँगे’… देश तोड़ने की बातें करने वाले सत्ता की मलाई देख अब लड़ेंगे चुनाव

जब तक चुनाव नहीं था, अब्दुल्ला बाप-बेटे और महबूबा मुफ़्ती अलगाववादियों के चहेते बनने के लिए देश-विरोधी बातें करते थे, इंटरव्यू में जहर उगलते थे। जैसे ही चुनाव आया, सत्ता की मलाई चाभने के लिए 'गुपकार' के नाम पर...

जम्मू कश्मीर की दोनों प्रमुख स्थानीय राजनीतिक पार्टियाँ अजीबोगरीब बातें कर रही हैं। जहाँ उनके दोनों बड़े नेता चुनाव न लड़ने की बातें कर रहे हैं, वहीं उनकी पार्टियाँ साथ चुनाव लड़ने के लिए दमखम दिखा रही हैं। अब वहाँ पीपल्स फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (PFGD) ने जम्मू कश्मीर में होने वाले जिला विकास परिषद (DDC) के चुनाव साथ मिल कर लड़ने का निर्णय लिया है। वहीं उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती चुनाव नहीं लड़ेंगे।

जम्मू कश्मीर की प्रदेश कॉन्ग्रेस कमिटी भी DDC का चुनाव लड़ेगी। बता दें कि PAGD में नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, पीपल्स कॉन्फ्रेंस, आवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस, J&K पीपल्स मूवमेंट के साथ ही सीपीआई और सीपीएम भी शामिल हैं। इसका गठन अक्टूबर 15, 2020 को हुआ था। गठबंधन के अध्यक्ष फ़ारूक़ अब्दुल्ला प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करेंगे। प्रवक्ता सज्जाद गनी लोन ने इस बात की जानकारी दी है।

पिछले साल अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने के बाद ये पहली बार है, जब जम्मू कश्मीर में हाल ही में खाली हुई पंचायत सीटों के साथ-साथ DDC का चुनाव करने का निर्णय लिया गया है। नवम्बर 28, 2020 को मतदान होना है। ऐसे में नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मंत्री आगा रुहुल्लाह मेंहदी का कहना है कि ये केंद्र सरकार का बिछाया ‘जाल’ है, ताकि जम्मू कश्मीर की पार्टियाँ चुनाव में हिंसा ले सकें। उन्होंने इन चुनावों और इसमें हिस्सा लेने का विरोध किया।

जम्मू कश्मीर में कॉन्ग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीए मीर ने अपनी पार्टी को प्रदेश की सबसे पुरानी पार्टी बताते हुए कहा कि वो लोकतांत्रिक प्रक्रिया से कभी अलग नहीं रही है और भाजपा को किसी हाल में जीत कर दबदबा बनाने का रास्ता नहीं दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा और जनसंख्या के हिसाब से उनकी कुछ चिंताएँ भी हैं। इस तरह से अब लगभग सभी प्रमुख पार्टियाँ आगामी चुनावों में हिस्सा ले रही हैं।

जहाँ फ़ारूक़ अब्दुल्ला कह रहे हैं कि जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को फिर से कायम करने के लिए अब सुप्रीम कोर्ट ही उनकी एकमात्र उम्मीद बची है, वहीं उनके बेटे उमर अब्दुल्ला का कहना है कि जब तक ये केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा, तब तक वो व्यक्तिगत रूप से चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि वो 6 वर्षों तक जिस ‘शक्तिशाली’ सदन के नेता रहे हैं, वो वहाँ सदस्य के रूप में नहीं जा सकते, क्योंकि उसे कमजोर कर दिया गया है।

जम्मू कश्मीर की एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती भी कह चुकी हैं कि जब तक जम्मू कश्मीर का पुराना संविधान और झंडा वापस नहीं आ जाता, तब तक वो न तो कोई चुनाव लड़ेंगी और न ही भारत का झंडा उठाएँगी। उन्होंने केंद्र सरकार के लिए ‘डकैत’ शब्द का प्रयोग भी किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा इस देश के संविधान की जगह अपना घोषणापत्र लाना चाहती है। उन्होंने कहा था कि अब उन जैसे नेताओं का इस आंदोलन में ‘खून देने का वक्त’ आ चुका है।

इसका मतलब साफ़ है कि जहाँ अब्दुल्ला और मुफ़्ती परिवार के लोग खुद किसी भी चुनाव में हिस्सा न लेकर प्रतीकात्मक विरोध भी दर्ज कराना चाह रहे हैं, ताकि लोगों को लगे कि वो अनुच्छेद-370 को भूले नहीं हैं और सब कुछ सामान्य नहीं हुआ है, लेकिन दूसरी तरफ उनकी पार्टियाँ पूरी ताकत से चुनाव लड़ती रहेंगी, क्योंकि उन्हें भाजपा को रोकना है और सत्ता की मलाई भी चाभनी है। वो दोनों तरफ से रहना चाहते हैं।

जम्मू कश्मीर में कट्टरवादियों की नजर में आतंकवादियों और अलगाववादियों की तरह उन्हें भी प्रदेश का ‘सच्चा हिमायती’ समझा जाए, इसीलिए सीनियर अब्दुल्ला चीन को इधर आकर जम्मू-कश्मीर को अपने में मिला लेने का देश-विरोधी आइडिया आता है और मुफ़्ती परिवार भारत और भारत के झंडे के खिलाफ बयान तो दे रहा है, लेकिन साथ ही भारत के संविधान और सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा भी जता रहा है। ये दल फ़िलहाल कन्फ्यूजन की स्थिति में हैं। चुनाव नहीं लड़े तो सत्ता जाएगी और चुनाव लड़े तो कट्टरपंथियों की नजरों में गिरेंगे।

कुछ ही दिनों पहले ‘पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन’ ने डॉ फारूक अब्दुल्ला को अपना अध्यक्ष और महबूबा मुफ्ती को 6 पार्टी समूह का उपाध्यक्ष घोषित किया था। यह निर्णय पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के गुपकार रोड पर स्थित निवास पर आयोजित अलायंस में शामिल घाटी के शीर्ष नेताओं की दो घंटे तक चली बैठक में लिया गया था। सज्जाद लोन को गठबंधन का प्रवक्ता बनाया गया है।

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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