पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति (हाई लेवल कमेटी) ने वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18626 पन्नों की अपनी रिपोर्ट सौंप दी। इस रिपोर्ट को अगर नरेंद्र मोदी की सरकार स्वीकार कर लेती है तो देश ‘वन नेशन वन इलेक्शन‘ की दिशा में बढ़ते हुए साल 2029 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव हो सकता है।
कोविंद कमिटी की रिपोर्ट को लागू करने के लिए मोदी सरकार को विधेयक लाकर संविधान में संशोधन करना पड़ेगा। समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके लिए राज्यों से अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस लोकसभा चुनाव के बाद जब संसद की बैठक होगी तो इस कदम को अधिसूचित करने के लिए एक तिथि निर्धारित की जानी चाहिए।
इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि नियत तारीख के बाद राज्य चुनाव द्वारा गठित सभी राज्य विधानसभाएँ केवल 2029 के आम चुनाव (संसदीय चुनाव) तक की अवधि के लिए होंगी। रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 और 2028 के बीच गठित राज्य सरकारों का कार्यकाल 2029 तक होगा। इस तरह साल 2029 में होने वाले लोकसभा के चुनाव के साथ वहाँ विधानसभा के भी चुनाव होंगे।
ऐसे में कई राज्य सरकारों के कार्यकाल छोटे हो जाएँगे। उदाहरण के लिए, अगर किसी राज्य सरकार का कार्यकाल 2025 में समाप्त होता है तो अगली सरकार के गठन के लिए वहाँ विधानसभा का चुनाव होगा। लेकिन, यह सरकार अगले पाँच साल की ना होकर सिर्फ चार साल की होगी, क्योंकि साल 2029 में लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव साथ कराने की सिफारिश की गई है।
इसी तरह जिस राज्य सरकार का कार्यकाल साल 2027 में खत्म होता है और वहाँ विधानसभा का चुनाव होता है वह सरकार साल 2032 तक नहीं चलेगी। उस राज्य सरकार का कार्यकाल भी साल 2029 तक तक ही होगा, यानी सिर्फ दो साल का। इसी तरह 2028 के चुनाव वाले राज्य का कार्यकाल सिर्फ एक साल का होगा।
रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी अन्य घटना की स्थिति में नई सरकार के गठन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं। चाहे वह लोकसभा का मामला हो या विधानसभाओं का। इस प्रकार गठित नई सरकार का कार्यकाल भी लोकसभा की बची हुई अवधि के लिए ही होगा और कार्यकाल समाप्त होने के बाद सदन विघटित हो जाएगी।
इसे इस उदाहरण से समझते हैं कि अगर 2029 में लोकसभा चुनाव और राज्यों की विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं। अगर बिहार में त्रिशंकु सदन बनता है तो फिर से चुनाव कराए जा सकते हैं, लेकिन उसकी अवधि अगले लोकसभा चुुनाव यानी 2034 तक ही होगी। इसे एक अन्य उदाहरण से समझते हैं।
अगर साल 2029 में बिहार में X की सरकार बनती है, लेकिन 2031 में वह सरकार गिर जाती है तो नए सिरे चुनाव कराए जा सकते हैं, लेकिन उस सरकार की अवधि अगले लोकसभा चुनाव यानी साल 2034 तक ही होगी। लोकसभा के मामले में भी यही स्थिति रहेगी। अगर केंद्र सरकार बहुमत खो देती है तो जरूरत पड़ने पर नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं, लेकिन वह 2034 तक के लिए ही होगा।
इसके अलावा, लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव और पंचायत चुनावों के लिए अलग-अलग मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान पत्र तैयार करने की जगह एकल मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान पत्र बनाने के लिए वर्तमान कानून में संशोधन की सिफारिश की गई है। इसके लिए समिति ने एक कार्यान्वयन समिति के गठन की सिफारिश की है।
रिपोर्ट में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बाद अगले चरण में नगरपालिकाओं और पंचायत चुनावों की बात कही गई है। इसमें कहा गया है कि लोकसभा के साथ होने वाले राज्य विधानसभाओं के चुनाव के 100 दिनों के भीतर नगरपालिका एवं पंचायत चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए।
हालाँकि, कई राजनीतिक दलों ने वन नेशन, वन इलेक्शन का विरोध किया है। जिन राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया है उनमें कॉग्रेस, डीएमके, आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, सीपीआई (एम), सीपीआई, तृणमूल कॉन्ग्रेस, एआईएमआईएम और समाजवादी पार्टी प्रमुख हैं। वहीं, हाई कोर्ट के तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीश और एक पूर्व राज्य चुनाव आयुक्त ने इस पर चिंता जाहिर की है।
बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अध्यक्षता में ये कमेटी 2 सितंबर को बनी थी। इसमें गृहमंत्री अमित शाह और पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद समेत 8 मेंबर थे। वहीं केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को कमेटी का कमेटी का स्पेशल मेंबर बनाया गया था। 23 सितंबर 2023 को पहली बैठक दिल्ली के जोधपुर ऑफिसर्स हॉस्टल में वन नेशन वन इलेक्शन कमेटी की पहली बैठक हुई थी और 14 मार्च को इसे राष्ट्रपति को सौंपा गया था।
इस रिपोर्ट में निर्वाचन आयोग, विधि आयोग और कानूनी विशेषज्ञों की राय भी शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साथ चुनाव कराना जनहित में होगा। इससे आर्थिक विकास तेज होगा और महंगाई नियंत्रित होगी। अब आगे इस रिपोर्ट को लोकसभा चुनाव के बाद कैबिनेट के आगे रखा जाएगा। फिर कैबिनेट के फैसले के हिसाब से संविधान में नए खंड जोड़े जाएँगे ताकि चुनाव एक साथ हो सकें।