राष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा के नेतृत्व वाले ‘राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA)’ ने ओडिशा के रायरंगपुर की रहने वाली जनजाति समाज की द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार घोषित किया है और उनकी जीत भी तय है, क्योंकि राज्य की सत्ताधारी पार्टी बीजद ने भी उनका समर्थन करने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इसे गर्व का क्षण बताया। इसके बाद सोशल मीडिया पर 2007-12 के बीच भारत की राष्ट्रपति रहीं प्रतिभा पाटिल भी लोगों को याद आ रही हैं।
वो प्रतिभा पाटिल का ही कार्यकाल था, जिस दौरान कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र की यूपीए सरकार में तमाम घोटाले हुए। प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह तो पूरे 10 वर्ष रोबोट की तरह बने रहे, वहीं असली सत्ता गाँधी परिवार के हाथ में रही। इसी दौरान प्रतिभा पाटिल को भी ‘रबड़ स्टांप’ होने का ही लोगों का ख़िताब दिया। राष्ट्रपति भले ही प्रमुख फैसले न लेते हों, लेकिन प्रतिभा पाटिल के कार्यकाल के दौरान शायद ही ऐसी कोई उपलब्धि हो जो लोगों के जेहन में हो।
द्रौपदी मुर्मू ने एक-एक कर चढ़ी सीढियाँ, कदम-कदम पर मनवाया अपना लोहा
जहाँ तक द्रौपदी मुर्मू की बात है, 2015-21 में झारखंड के राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल निर्विवाद रहा। वो दूसरी महिला हैं, जो राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। साथ ही जनजाति समाज से देश को पहली राष्ट्रपति मिलेगी। वो भारत के इतिहास की पहली जनजाति महिला हैं, जो राज्यपाल के पद पर पहुँची थीं। जुलाई 2021 में कार्यकाल ख़त्म होने के बाद से वो रायरंगपुर स्थित अपने गाँव में ही रह रही थीं। 2017 में भी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए उनके नाम पर चर्चा हुई थी, लेकिन फिर NDA ने रामनाथ कोविंद के नाम पर मुहर लगाई।
राज्यपाल का कार्यकाल ख़त्म होने के बाद 2020 में उनके कार्यकाल को एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया था, क्योंकि कोरोना माहमारी आपदा के बीच नए राज्यपाल की नियुक्ति नहीं हो सकी थी। जनजाति मामले, शिक्षा कानून व्यवस्था और स्वास्थ्य सम्बंधित मुद्दे को लेकर वो राज्यपाल के रूप में भी प्रखर रहीं। उन्होंने इन मुद्दों को उठाया और राज्य सरकार के फैसलों पर सवाल भी खड़े किए, लेकिन संवैधानिक मर्यादा और शिष्टाचार के दायरे में रह कर।
राज्यपाल के रूप में वो राज्य के विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति भी थीं, ऐसे में उनके समय में कई यूनिवर्सिटीज के कुलपति के खाली पद को भरा गया। वो उच्च शिक्षा सम्बंधित मुद्दों के लिए ‘लोक अदालत’ लगाती थीं, जिनमें 5000 से अधिक यूनिवर्सिटी शिक्षकों और कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान किया गया। एनरोलमेंट प्रक्रिया को उन्होंने सेंट्रलाइज किया और चांसलर का पोर्टल जारी किया। 1997 में उन्होंने राजनीति में एंट्री ली थी।
उस समय उन्हें रायरंगपुर के डिस्ट्रिक्ट बोर्ड में काउंसिलर चुना गया था। इससे पहले वो ‘श्री ऑरोबिन्दो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर’ में बतौर ऑनररी अस्सिस्टेंट शिक्षिका कार्यरत थीं। फिर उन्होंने सिंचाई विभाग में जूनियर अस्सिस्टेंट के रूप में काम किया। 2 बार विधायक रहीं द्रौपदी मुर्मू भाजपा-बीजद की संयुक्त राज्य सरकार में मंत्री भी थीं। ओडिसा की विधानसभा ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक का ‘नीलकंठ अवॉर्ड’ से सम्मानित किया था।
प्रतिभा पाटिल: लोग कहते हैं कॉन्ग्रेस की ‘रबड़ स्टांप’ राष्ट्रपति
प्रतिभा पाटिल कहने को तो देश की पहली महिला राष्ट्रपति थीं, लेकिन कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के सामने उस समय राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पद की क्या इज्जत रह गई थी – ये सभी को बखूबी पता है। अभी भी सोशल मीडिया पर लोग उन्हें ‘Worst President’ बता रहे हैं और सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रपति के रूप में डॉ राजेंद्र प्रसाद और एपीजे अब्दुल कलाम का नाम ले रहे हैं। वहीं प्रणब मुखर्जी और रामनाथ कोविंद की भी लोग तारीफ़ कर रहे हैं।
प्रतिभा पाटिल सोनिया गाँधी के विश्वस्तों में से एक रही हैं। राष्ट्रपति रहते हुए उन पर करदाताओं के ज़रूरत से ज़्यादा रुपए को अपनी विदेशी यात्राओं में लुटाने के आरोप लगे। उनके और उनके परिवार की विदेश यात्राओं का सरकार खर्च 205 करोड़ रुपए के आसपास था। जब वो विदेश में छुट्टियाँ मनाने जाती थीं तो उनके परिजन भी उनके साथ होते थे, खासकर ग्रैंडचिल्ड्रन। एक बार गोवा में छुट्टियाँ मनाते हुए भी उनकी तस्वीर वायरल हुई थी।
इतना ही नहीं, राष्ट्रपति को जो भी गिफ्ट्स मिलते हैं, उन्हें भी वो महाराष्ट्र के अमरावती स्थित अपने घर पर ले गई थीं। इन्हें ‘नेशनल ट्रीजरी’ में जमा कराना होता है। उन्हें बाद में ऐसे 150 गिफ्ट्स को वापस राष्ट्रपति भवन को सौंपने के लिए कहा गया था। 2012 में प्रतिभा पाटिल अपने परिजनों के साथ सेशेल्स और दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर गई थीं। 14 घरेलू और 4 विदेशी यात्राओं पर उनके परिवार के कम से कम 3 से 11 परिवार के सदस्य उनके साथ रहे।
2009-10 के बीच कई राज्यों की यात्राओं के दौरान उनके पति देवीसिंह शेखावत, बेटे राजेन्द्र सिंह शेखावत, बहू मंजरी शेखावत, बेटी शेखावत और दामाद जयेश शेखावत के अलावा उनके बेटे-बेटी के बच्चे सुरभि शेखावत, पृथ्वी सिंह शेखावत, ध्रुवेश राठौड़ और दिव्या राठौड़ साथ रहे। इन सभी को ‘प्रेसिडेंशियल गेस्ट्स’ की सारी सुविधाएँ दी जाती थीं। पोलैंड, स्पेन, रूस, तजाकिस्तान, यूके, साइप्रस और चीन की यात्रा में उनके साथ कम से कम दो परिजन जरूर रहे।
तब की मनमोहन सिंह सरकार ने इसे ‘सामान्य राजनयिक प्रक्रिया’ बताते हुए इसका बचाव किया था। प्रतिभा पाटिल और उनके परिजनों की विदेशी यात्राओं पर ‘एयर इंडिया’ ने 169 करोड़ रुपए खर्च किए और उनके लिए हमेशा बोईंग 747-400 का प्रयोग ही किया जाता था। इसके अलावा विदेश मंत्रालय ने अन्य खर्च के लिए 36 करोड़ रुपए अलग से खर्च किए। प्रतिभा पाटिल ने 79 दिन विदेश में गुजारे। कुल 12 विदेश यात्राओं में उन्होंने 4 महाद्वीपों के 22 देशों का दौरा किया।
While #DraupadiMurmu was Jharkhand Governor, star performer MLA, won Best MLA prize, handled various ministries and experienced whereas Pratibha Patil was selected by the Family because she cooked food in Indira Gandhi's Kitchen
— Rishi Bagree (@rishibagree) June 21, 2022
रिटायरमेंट के बाद पुणे में रक्षा मंत्रालय की जमीन पर प्रतिभा पाटिल द्वारा एक मकान बनवाने की योजना की खबर भी सामने आई थी। उनका परिवार ‘विद्या भारती शैक्षणिक मंडल’ चलाता है, जिसके म्यूजियम में उन्होंने बतौर राष्ट्रपति मिले 150 गिफ्ट्स को रख दिया था। प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद सेक्रेटेरिएट ने उन्हें ये सब वापस सौंपने को कहा। इनमें अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा दिया गया स्टोन बॉक्स, ब्रिटिश पीएम का दिया कैंडल सेट, वियतनाम के राष्ट्रपति का दिया लकड़ी के फ्रेम वाली तस्वीर, FIFA प्रेजिडेंट द्वारा दिया गया मोमेंटो, चीन का गिफ्ट बॉक्स और नेल्सन मंडेला के गोल्ड और सिल्वर मेडल शामिल थे।
गाँधी परिवार की पुरानी वफादार रही हैं प्रतिभा पाटिल
फरवरी 2011 में राजस्थान में कॉन्ग्रेस के ही एक मंत्री अमीन खान ने कहा था कि 1977 में जब इंदिरा गाँधी की प्रधानमंत्री की कुर्सी चली गई थी, तब प्रतिभा पाटिल उनके लिए किचन में भोजन पकाती थीं और बर्तन धोती थीं, इसीलिए उन्हें राष्ट्रपति बनाया गया। उन्होंने कहा था कि प्रतिभा पाटिल ने बदले में कभी कुछ नहीं माँगा, इसीलिए उन्हें राष्ट्रपति बनाया गया। बाद में उन्हें इस बयान के लिए इस्तीफा देना पड़ा था। प्रतिभा पाटिल ने एक ‘श्रम साधना ट्रस्ट’ की स्थापना भी की थी।
इसके अलावा वो ‘संत मुक्ताबाई सहकारी साखर कारखाना’ का संचालन भी करती हैं। ‘प्रतिभा महिला सहकारी बैंक’ की फंडिंग भी वो करती थीं। 2003 में RBI ने इसका लाइसेंस सीज कर दिया और ट्रेडिंग बंद हो गई। बैंक के शेयर कैपिटल से ज्यादा तो उनके सम्बन्धियों को लोन दे दिए गए थे। बैंक के शीर्ष 10 डिफॉलटर्स में 6 उनके सम्बन्धी थे। रिटायरमेंट के बाद वो अपने प्राइवेट कार के ईंधन का खर्च भी सरकार से ही चाहती थीं।
प्रतिभा पाटिल पर आरोप लगे थे कि जब वो अमरावती की सांसद हुआ करती थीं, तब उन्होंने अपने पति द्वारा संचालित ट्रस्ट में MPLADS फंड के 36 लाख रुपए उधर डाइवर्ट कर दिए थे। ये भी याद रखने वाली बात है कि तब शिवसेना ने राजद में रहते गठबंधन प्रत्याशी भैरोंसिंह शेखावत की जगह प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया था, क्योंकि वो मराठी थीं। वंशानुगत बीमारियों से पीड़ित लोगों को उन्होंने स्टरलाइज करने की बात कही थी, ताकि आगे कोई बीमारी न हो। उन्होंने 1975 में ये बयान दिया था।