प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज (4 जुलाई 2022) प्रसिद्ध क्रांतिकारी अल्लूरी सीताराम राजू की 125वीं जयंती पर आंध्र प्रदेश के भीमावरम पहुँचकर वहाँ की जनता को संबोधित किया। यहाँ उन्हें महान क्रांतिकारी की 30 फीट ऊँची प्रतिमा का अनावरण भी किया। उन्होंने इस अवसर पर संत अल्लूरी सीताराम के बलिदान को नमन करते हुए बताया कि संयोग से इसी साल रम्पा क्रांति के 100 साल पूरे हो रहे हैं।
PM Modi unveils a 30-feet statue of Alluri Sitarama Raju in Bhimavaram on the occasion of his 125th birth anniversary & part of Amrit ka Mahotsav pic.twitter.com/S5QiwuT3Aq
— COC (@Controversyy3) July 4, 2022
उन्होंने अल्लूरी सीताराम को भारत की सांस्कृतिक और आदिवासी पहचान का प्रतीक बताते हुए कहा, “अल्लूरी सीताराम राजू गारू की 125वीं जन्म जयंती और रम्पा क्रांति की 100वीं वर्षगाँठ को पूरे वर्ष मनाया जाएगा। पंडरंगी में उनके जन्मस्थान का जीर्णोद्धार, चिंतापल्ली थाने का जीर्णोद्धार, मोगल्लू में अल्लूरी ध्यान मंदिर का निर्माण, ये कार्य हमारी अमृत भावना के प्रतीक हैं।”
PM Shri @narendramodi addresses 125th Jayanti celebrations of Alluri Sitarama Raju in Bhimavaram, Andhra Pradesh. https://t.co/lTkCXXmEHH
— BJP (@BJP4India) July 4, 2022
RRR फिल्म के निर्देशक ने अल्लूरी सीताराम से ली थी फिल्म के लिए प्रेरण
बीते दिनों साउथ की जो फिल्म आरआरआर ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया और खासी चर्चा का विषय रही, उस फिल्म में राजू और राम की दोस्ती की कहानी के लिए निर्देशक ने प्रसिद्ध क्रांतिकारी अल्लूरी सीताराम राजू और कोमाराम भीम के जीवन से ही प्रेरण ली थी। निर्देशक राजमौली ने कहा था कि इन क्रांतिकारियों के जीवन के बारे में बहुत अधिक ज्ञात नहीं है, लेकिन इस काल्पनिक कहानी के जरिए ये दिखाने का प्रयास किया गया है कि उनके जीवन में क्या हुआ था और अगर दोनों एक साथ मिल गए होते तो क्या होता।
अल्लूरी सीताराम राजू का संक्षिप्त परिचय
अल्लूरी सीताराम राजू एक भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक सशस्त्र अभियान चलाया। उनका जन्म 1897 में विशाखापटनम में हुआ था। उनका असली नाम श्रीरामराजू था, जो कि उनके नाना के नाम पर था। वह छोटी उम्र में ही संत बन गए थे। सीताराम राजू वर्ष 1882 के मद्रास वन अधिनियम के खिलाफ ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गए। भारत की ब्रिटिश सरकार ने मद्रास फॉरेस्ट एक्ट पास कर स्थानीय आदिवासियों को जंगल में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसी को लेकर उन्होंने आदिवासियों के लिए लड़ाई लड़ी और औपनिवेशिक ताकतों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का आह्वान किया।
महज 27 साल की उम्र में वह सीमित संसाधनों के साथ सशस्त्र विद्रोह को बढ़ावा देने और गरीबों, अंग्रेजों के खिलाफ अनपढ़ आदिवासी को प्रेरित करने में कामयाब रहे। अंग्रेजों के प्रति बढ़ते असंतोष ने 1922 के रम्पा विद्रोह (Rampa Rebellion) को जन्म दिया, जिसमें अल्लूरी सीताराम राजू ने एक नेतृत्वकर्त्ता के रूप में एक प्रमुख भूमिका निभाई। 1922 से 1924 के बीच हुए इस विद्रोह में अल्लूरी ने ब्रिटिशर्स के खिलाफ विद्रोह करने के लिए विशाखापट्टनम और पूर्वी गोदावरी जिलों के आदिवासी लोगों को संगठित किया। इस विद्रोह के दौरान कई पुलिस थानों और अंग्रेजी अधिकारियों पर हमला करके लड़ाई के लिए हथियार जमा किए गए।
उनके वीरतापूर्ण कारनामों का ही नतीजा था कि स्थानीयों ने उन्हें ‘मान्यम वीरुडू’ (जंगलों का नायक) उपनाम दे दिया था। साल 1924 में अल्लूरी सीताराम राजू का विद्रोह जब चरम पर था तो पुलिस उनका पता लगाने के लिए आदिवासियों को सताने लगी। ऐसे में जब राजू को इस बात का पता चला तो उनका दिल पिघल गया। उन्होंने आत्मसमर्पण का निर्णय लिया और खुद अपनी जानकारी देकर पुलिस को कहा कि वो कोइयूर में हैं। आकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए।
ब्रिटिश पुलिस ने बिन समय को गवाए उन्हें अपनी हिरासत में लिया और बाद में उनके साथ विश्वासघात करते हुए उन्हें एक पेड़ में बाँधा, फिर सार्वजनिक रूप से उन्हें गोलियों से भून दिया गया। उनकी हत्या क्रूरता से हुई मगर आदिवासियों के लिए वह नायक बन गए। वहीं सुभाष चंद्र बोस ने कहा कि भारतीय युवाओं को अल्लूरी सीताराम राजू से प्रेरणा लेनी चाहिए।