शनिवार 12 सितंबर 2020 को प्रशांत भूषण और उनके पिता शांति भूषण ने इंडिया टुडे को एक साक्षात्कार दिया। साक्षात्कार में उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर कई विचार रखे। इसके अलावा इंडिया अगेंस्ट करप्शन, इंदिरा गाँधी, नरेन्द्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल के संबंध में कई बातें कही।
बात करते हुए प्रशांत भूषण ने कहा,
“मुझे एक बात का सबसे ज्यादा अफ़सोस है कि मैं अरविन्द केजरीवाल का चरित्र नहीं समझ पाया। समय बीतने के बाद समझ आया कि हमने एक भयावह राजनीतिक दैत्य तैयार किया है, जबकि एक ज़माने में मैं अरविन्द का प्रशंसक हुआ करता था। अरविन्द केजरीवाल की हरकतों के लिए मेरा रवैया कभी आलोचनात्मक नहीं रहा। लोकसभा चुनावों के बाद पूरी तस्वीर साफ़ हो गई। वह केवल बेशर्म और तानाशाह ही नहीं है बल्कि अपने दल की नीतियों पर भी खरा नहीं उतरता है।”
प्रशांत भूषण ने यह जानकारी दी कि कुल 36 जानकारों की समिति ने पार्टी के लिए नीतियाँ तैयार की थीं। अरविन्द केजरीवाल की तैयारी थी कि उन सारी नीतियों को एक बार में ख़त्म कर दिया जाए। अरविन्द केजरीवाल ने हमेशा जितने भी निर्णय लिए, सिद्धांतों के आधार पर नहीं लिए बल्कि अपनी सुविधा के अनुसार लिए। इतना ही नहीं, अरविन्द केजरीवाल ने इंडिया अगेंस्ट करप्शन अभियान को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा का साथ भी दिया था।
इसके बाद राजदीप सरदेसाई ने कश्मीर मुद्दे पर सवाल किया। इस सवाल का जवाब देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण (प्रशांत भूषण के पिता) ने कहा कि उनके विचार प्रशांत जैसे ही हैं। उनका मानना है कि यह तय करना एक क्षेत्र के लोगों का अधिकार है कि वह किस तरह के प्रशासन या सरकार की अपेक्षा रखते हैं। इस तर्क के आधार पर यही अधिकार कश्मीर के लोगों का भी है।
ब्रेक्सिट के लिए किए गए यूके के जनमत संग्रह का हवाला देते हुए शांति भूषण ने एक हैरान कर देने वाला दावा किया। अपने दावे में उन्होंने कहा:
“उन लोगों ने अलग होने के बावजूद जनमत संग्रह किया। जैसा कि पाकिस्तानी सरकार ने भी हमेशा अलग होने की बात पर ज़ोर दिया है। यह अधिकार कश्मीर के लोगों को भी दिया जाना चाहिए, अगर वह भारत की सीमा से अलग होने की इच्छा रखते हैं।”
इसके बाद पिता पुत्र ने भारत की न्यायपालिका पर भी आरोप लगाने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा। राजदीप ने कोर्टरूम की प्रैक्टिस में रियायत बरतने पर सवाल किया। इसका जवाब देते हुए शांति भूषण ने कहा, “मेरे समय में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ईमानदार हुआ करते थे। इस बात पर भरोसा करना बहुत कठिन था कि शायद ही कोई भ्रष्टाचार में शामिल मिलता था। जब मैंने अपना वकालत का जीवन शुरू किया था, तब कुछ ऐसे हालात थे। आज ऐसे हालात हैं कि हमें पहले इस बात की पहचान करनी होती है कि न्यायाधीश भ्रष्ट है या ईमानदार।”
प्रशांत भूषण ने चर्चा में शामिल होते हुए कहा कि काफी न्यायाधीश ईमानदार तो हैं लेकिन वह सरकार के विरुद्ध आवाज़ उठाने में बहुत कमज़ोर हैं। यह बेहद साफ़ तौर पर देखा जा सकता है कि जो मुद्दे राजनीतिक दृष्टिकोण से संवेदनशील होते हैं, उसमें सर्वोच्च न्यायालय सरकार के विरुद्ध नहीं हो सकता।
इसके बाद शांति भूषण ने बेटे की बात पर जोर देते हुए कहा कि अगर कोई सरकार ताकतवर है तो वह आसानी से न्यायपालिका को कमज़ोर कर सकती है। शक्तिशाली सरकारें ऐसा करने के लिए तमाम हथकंडे अपनाती है। जैसे न्यायाधीशों के नज़दीकियों को धमकी देना, उन्हें लालच देना और उनकी बात न मानने पर नतीजों के लिए तैयार रहने की धमकी देना।
भूषण पिता-पुत्र ने साक्षात्कार के दौरान यह दावा किया कि वह भाजपा या सरकार विरोधी नहीं हैं। लेकिन सच तभी सामने आ जाता है जब शांति भूषण ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जवाहर लाल नेहरू पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि नेहरू लोकतंत्र में भरोसा करते थे जबकि नरेन्द्र मोदी तानाशाही में भरोसा करते हैं। शांति भूषण का यह तर्क पूर्वग्रहों पर आधारित है, मनगढ़ंत भी है। यही कारण है कि उन्होंने इंदिरा गाँधी को क्लीन चिट दे दी।
शांति भूषण के अनुसार इंदिरा गाँधी की तुलना में नरेन्द्र मोदी से संवाद करना कहीं ज़्यादा कठिन है। इसके ठीक बाद प्रशांत भूषण ने भी कहा कि इंदिरा गाँधी फासीवादी नहीं थीं लेकिन नरेन्द्र मोदी हैं। पिता-पुत्र ने इस तरह के दावे तब किए, जब इंदिरा गाँधी ने अपने राज में विपक्ष के सभी नेताओं को जेल में बंद कर दिया था। इसके अलावा असहिष्णुता और फासीवाद जैसे मुद्दों पर बोलते हुए अपने पूर्वग्रहों के आधार पर पिता-पुत्र ने कई तरह के अनर्गल आरोप लगाए।