इस्लामी भीड़ की हिंसा जितनी ही सामान्य है उस पर पर्दा डालने के लिए चलाया जाने वाला ‘मुस्लिम विक्टिम’ नैरेटिव। हरियाणा के मेवात के नूहं में हिंदुओं की जलाभिषेक यात्रा पर हमले के बाद भी ऐसा देखने को मिला। स्वयंभू बुद्धिजीवियों की यह जमात इस्लामी कट्टरपंथियों और आतंकियों की हिंसा को ही नहीं छिपाता, बल्कि वह पिच भी तैयार करता है ताकि भविष्य में ऐसी कोई घटना होने पर उनका बचाव किया जा सके।
2024 के आम चुनाव अभी कुछ महीने दूर हैं। लेकिन हिंदुओं और मोदी से घृणा करने वाली इस जमात की कोशिशें शुरू हो गईं हैं। इसी कड़ी में अब यह कोशिश हो रही है कि यदि अयोध्या के राम मंदिर को कभी आतंकी निशाना बनाए तब भी उनको क्लीनचिट दी जा सके। इसकी शुरुआत पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने की और अब इस थ्योरी को वकील प्रशांत भूषण ने आगे बढ़ाया है।
Prashant Bhushan says he has credible information that there will be a terror attack on Ayodhya Ram Mandir.
— Ankur Singh (@iAnkurSingh) August 4, 2023
NIA, IB should ask @pbhushan1 more details about the plan.
Same claim was made by Satyapal Malik. How are these people so sure?
Who's the 'Source'? pic.twitter.com/cn5fAn9ccg
जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक की ‘भविष्यवाणी’ के बाद सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने भी उस साजिश के सिद्धांत को दोहराया है जिसके अनुसार अयोध्या के राम मंदिर पर हमला होगा। इस थ्योरी को आगे बढ़ाते हुए ऐसा प्रोपेगेंडा गढ़ने की कोशिश हो रही है कि 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिए लहर पैदा करने के मकसद से मोदी सरकार खुद इस तरह के हमले करवाएगी।
इस सप्ताह की शुरुआत में सत्यपाल मलिक ने इस ‘साजिश’ का जिक्र करते हुए आरोप लगाया कि केंद्र की भाजपा सरकार लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर पर हमला करा सकती है। पूर्व राज्यपाल मलिक ने कहा, “मुझे कई आशंकाएँ हैं। वे (2024 आम) चुनाव से पहले कुछ न कुछ करेंगे। ये उनकी फितरत है। उन्होंने गुजरात और देश में ऐसा किया है। वे राम मंदिर पर ग्रेनेड फेंक सकते हैं। वे बीजेपी के किसी बड़े नेता की हत्या करा सकते हैं। पाकिस्तान के साथ सुनियोजित संघर्ष भी हो सकता है।”
अब सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण भी इस ‘साजिश’ में कूद पड़े हैं। उनका कहना है कि मंदिर पर हमला होगा और पीओके में बालाकोट 2.0 होगा। एक वायरल वीडियो में प्रशांत भूषण को कहते हुए सुना जा सकता है, “मेरे पास जो सूचना आ रही है, और सूचना एक सोर्स से नहीं कई सोर्स से, वह भी विश्वसनीय सोर्स से आ रही है कि पुलवामा 2.0 और बालाकोट 2.0 की तैयारी चल रही है। जो मुझे सूचना मिली है उसकी न मैं पुष्टि कर सकता हूँ और न ये बता सकता हूँ कि यह जानकारी किन लोगों से मिली है, लेकिन इसके अनुसार पुलवामा 2.0 जो होगा वह अयोध्या मंदिर पर कोई अटैक होगा, जो कि जैश-ए-मोहम्मद या अलकायदा द्वारा होगा। या करवाया जाएगा। बालाकोट 2.0 जो होगा वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में ग्राउंड मूवमेंट होगा। अबकी बार सिर्फ बमबारी नहीं। जो सुनने में आ रहा है, विश्वस्त सूत्रों से सुनने में आ रहा है इस बार थोड़े से सैनिक भी भेजे जाएँगे। इसलिए नहीं भेजे जाएँगे कि हम पीओके पर कब्जा कर लें। लेकिन ये दिखाने के लिए कि जैसे बालाकोट में दिखाने की कोशिश हमने पाकिस्तान के ऊपर बम गिरा दिए। भले वे बम कहाँ गिरे, उससे किसी को कुछ हुआ कि नहीं, यह किसी को कुछ पता नहीं।”
#BJP #2024 में जितने के लिए #राम_मंदिर पर हमला करवा सकती है, किसी अपने बड़े नेता की हत्या करवा सकती है। #BJP #पाकिस्तान से सेटिंग करके 4-5 दिन के लिए #LOC पार कर सकती हैं, ताकि लोगों के बटोर सकें- सत्यपाल मलिक (पूर्व गवर्नर) #SatyapalMalik pic.twitter.com/bN2HqMZcOT
— Satyapal Malik 🇮🇳 (@SatyapalmalikG) August 4, 2023
सत्यपाल मलिक और प्रशांत भूषण ने अपनी इन साजिश के सिद्धांतों के समर्थन में कोई सबूत पेश नहीं किया है। “विश्वसनीय जानकारी” और “विश्वसनीय स्रोत” जैसे चालाकी भरे शब्दों में लपेट कर इसे परोस दिया। लेकिन इनके बयानों के निहितार्थ बेहद गंभीर हैं। एक तरफ उन्होंने पुलवामा हमला करने वाले आतंकियों को क्लीनचिट दे दी है, दूसरी तरफ भारतीय बालाकोट की विश्वसनीयता पर सवाल कर भारतीय सेना के पराक्रम पर सवाल उठाया है। साथ ही आतंकियों को यह मौका दिया है कि भविष्य में इस तरह का कोई हमला होने के बाद इसे सरकार की ही साजिश के तौर पर प्रचारित किया जा सके। यह एक तरह से आतंकियों को अयोध्या के राम मंदिर पर हमले के लिए प्रोत्साहित करने जैसा है।
किसी राजनीतिक दल का समर्थन या विरोध, किसी भी व्यक्ति की अपनी पसंद हो सकती है। राजनीतिक दलों पर यह आरोप लगाया जा सकता है कि वे चुनाव जीतने की कोशिश में कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन अपनी राजनीतिक कुंठा की वजह से इस तरह की साजिशों को हवा देना राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरे पैदा करता है। राजनीतिक विरोध के इस चलन का उपचार उसी सख्ती से होना चाहिए जिस सख्ती से 2014 के बाद से आतंकवाद का उपचार किया जा रहा है।