राष्ट्रपति चुनावों में उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का निर्णय ले लिया है। ये फैसला शिवसेना के 16 सांसदों द्वारा उद्धव ठाकरे को पत्र लिखे जाने के बाद लिया गया है। इन सांसदों ने ठाकरे से पत्र में कहा था कि वो इन चुनावों में एनडीए प्रत्याशी को ही समर्थन दें।
पत्र के बाद संजय राउत ने बयान जारी कर बताया था कि शिवसेना मुर्मू के नाम पर विचार कर रही है। फैसला 2-3 दिन में ले लिया जाएगा। उन्होंने यह भी साफ कहा था कि मुर्मू को समर्थन देने का मतलब ये नहीं होगा कि वह लोग भाजपा का साथ दे रहे हैं।
Maharashtra | We discussed Droupadi Murmu (NDA’s Presidential candidate) in our meeting y’day… supporting Droupadi Murmu does not mean supporting BJP. Shiv Sena’s role will be clear in a day or two; party chief Uddhav Thackeray will make a decision: Shiv Sena leader Sanjay Raut pic.twitter.com/vI7ghBHVWG
— ANI (@ANI) July 12, 2022
अपनी सफाई में राउत ने कहा कहा था,
“हम विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा को लेकर भी अच्छा सोचते हैं। इससे पहले हमने प्रतिभा पाटिल को समर्थन दिया था न कि एनडीए के प्रत्याशी को। हमने प्रणब मुखर्जी को भी समर्थन दिया था। शिवसेना किसी के दबाव में फैसले नहीं लेती है।”
बता दें कि शिवसेना के फैसले का इंतजार लंबे समय से किया जा रहा था। इसकी वजह थी कि जब विपक्षी दलों ने यशवंत सिन्हा को अपना प्रत्याशी बनाया था तब शिवसेना उनके साथ थी। मगर तभी एकनाथ शिंदे गुट की बगावत की खबरें आने लगीं। नतीजा ये हुआ कि उद्धव सरकार गिर गई।
इस बार भी जब दोनों प्रत्याशियों में से एक पर निर्णय लेने का समय आया तो 16 सांसद खुलकर मुर्मू को समर्थन देने आगे आए। ऐसे में यदि उद्धव ठाकरे इनकी अनदेखी करते तो शायद यहाँ से भी बगावत झेलनी पड़ती। वैसे भी मीडिया रिपोर्ट्स में शिवसेना के संसदीय दल में लंबे समय से बगावत के आसार जताए जा रहे हैं।
कौन सी पार्टियाँ देंगी किस प्रत्याशी का साथ
बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव में मुर्मू का नाम घोषित किए जाने के बाद अधिकांश पार्टियों ने उन्हें अपना समर्थन देने का निर्णय लिया है। इस लिस्ट में भाजपा तो आती ही है। इसके अलावा जिन्होंने मुर्मू का नाम सुनते ही एनडीए के चयन की तारीफ की थी वह ओडिशा की बीजू जनता दल थी। वहीं अन्य पार्टियों में शामिल हैं:
- JDU
- शिवसेना
- वाईएसआर कॉन्ग्रेस
- AIADMK
- लोक जनशक्ति पार्टी (LJP)
- अपना दल
- निशाद पार्टी
- बहुजन समाज पार्टी (BSP)
- रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले)
- नेशनल पीपुल पार्टी (NPP)
- नागा पीपुल फ्रंट (NPF)
- मीजो नेशनल फ्रंट (MNF)
- नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP)
- सिक्किम क्रांतिकारी मोर्ची (SKM)
- असोम गणा परिषद (AGP)
- पत्ताली मक्कल काटची (PMK)
- AINR कॉन्ग्रेस
- जननायक जनता पार्टी (JJP)
- यूनाइटिड डेमोक्रेटिक पार्टी (UDP)
- त्रिपुरा से IPFT
- यूनाइटिड पीपुल्स पार्टी लिबरल (UPPL)
- शिरोमणि अकाली दल (SAD)
- तेलुगु देसम पार्टी (TDP)
विपक्ष द्वारा खड़े किए गए प्रत्याशी यशवंत सिन्हा को समर्थन देने वाली पार्टियों में हैं:
- कॉन्ग्रेस
- NCP
- तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC)
- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI)
- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI-M)
- समाजवादी पार्टी (SP)
- राजद (RJD)
- राष्ट्रीय लोक दल (RLD)
- रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (RSP)
- तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS)
- द्रविड मुन्नेत्र कळघम (DMK)
- नेशनल कॉन्फ्रेंस
- ऑल इंडिया यूनाइटिड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AUDF)
- विदुथलई चिरुथैगल काटची (VCK)
- इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML)
- ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहालदुल मुस्लिमीन (AIMIM)
उल्लेखनीय है कि जिन पार्टियों ने अभी चुनाव के मद्देनजर अपना पक्ष साफ नहीं किया है उनमें एक झारखंड के झारखंड मुक्ति मोर्चा है और दूसरी आम आदमी पार्टी है।
कौन कर सकता है राष्ट्रपति चुनावों में वोटिंग
बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव में मतदान की प्रक्रिया 18 जुलाई को 10 बजे से 5 बजे तक संसद भवन के कमरा नंबर 63 में चलेगी। ये चुनाव आम चुनावों से अलग होते है। इसमें भारत के नागरिक अप्रत्यक्ष तौर पर हिस्सा लेते हैं यानी जो उनके द्वारा चुने विधायक, सांसद होते हैं वो इसमें वोटिंग देकर राष्ट्रपति को चुनते हैं। इस चुनाव में सभी प्रदेशों की विधानसभाओं के चुने हुए सदस्य, लोकसभा और राज्यसभा में चुनकर आए सांसद वोट डालते हैं।
राष्ट्रपति की ओर से राज्य सभा में मनोनीत 12 सदस्य वोट नहीं डाल सकते हैं। इसके अलावा राज्यों की विधान परिषदों के सदस्यों को भी वोटिंग का अधिकार नहीं है, क्योंकि उन्हें जनता ने नहीं चुना होता है।
इस चुनाव में खास तरीके से वोटिंग होती है। इस प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले सदस्य तमाम उम्मीदवारों में से पहले अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट डालते है। अर्थात वह बैलट पेपर में सदस्य बता देते हैं कि राष्ट्रपति पद के लिए उनकी पहली, दूसरी और तीसरी पसंद क्या है। यदि पहली पसंद वाले वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो सका, तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है। इस तरह इस चु इसलिए इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है।