सेंट्रल विस्टा की जरूरत तो मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने भी सार्वजनिक तौर पर महसूस की थी। लेकिन वो सरकार ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ की शिकार थी तो केवल बातें हुईं। उस दिशा में जमीन पर कोई काम नहीं हुआ। मोदी सरकार के नेतृत्व में अब इस पर जमीनी काम शुरू हुए हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से इसके खिलाफ पूरा लिबरल गिरोह प्रोपेगेंडा करने में जुटा है। ठीक उसी तरह जैसा इस जमात ने 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद किया था।
भारत ने 1998 में 11-13 मई के बीच एक के बाद एक 5 न्यूक्लियर ब्लास्ट (परमाणु परीक्षण) कर पूरी दुनिया को चौंका दिया था। खुद को विश्व में परमाणु ताकत के तौर पर स्थापित किया था। तमाम अंतराष्ट्रीय दबाव के बावजूद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तत्परता से पोखरण में खेतोलोई गाँव के पास परमाणु परीक्षण किए गए थे।
इन सफल परीक्षणों के बाद से 11 मई का दिन हर साल नेशनल टेकनॉलजी डे के तौर पर मनाया जाने लगा। बताया जाता है कि पोखरण पर निगरानी रखने के लिए अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने 4 सैटेलाइट लगाई थीं। लेकिन भारत ने बड़े सुनियोजित ढंग से उन्हें चकमा दिया और ये परीक्षण सफल रहा।
कुल पाँच परीक्षण हुए। इनमें से 3 का परीक्षण 11 मई को हुआ, जबकि बाकी 13 मई को किए गए। इनमें एक फ्यूजन बम और बाकी फिजन बम थे। पूरा मिशन अब्दुल कलाम की अगुवाई में अंजाम दिया गया था। जब परीक्षण के सफल होने की घोषणा की गई तो अमेरिका तक हैरान रह गया। चीन ने भी भारत के परमाणु शक्ति-सम्पन्न बनने पर आपत्ति जताई थी।
लेकिन इन बाहरी ताकतों के अलावा देश में भी एक जमात ऐसी थी जो वाजपेयी हिम्मत दिखाने से चिढ़ गई थी। इनमें उस समय के विपक्षी नेताओं से लेकर मीडिया गिरोह तक शामिल था।
उस समय सोनिया गाँधी ने कहा था कि असली ताकत तो संयम दिखाने में है। शक्ति प्रदर्शन में नहीं। वहीं सीपीआईएम का कहना था कि ये सब राजनीतिक लाभ पाने के लिए हुआ। CPI (M) के तत्कालीन महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत का कहना था कि भारत के प्रधानमंत्री और उनके साथी पाकिस्तान को उकसाने में लगे हुए हैं। वे भड़काऊ भाषणों से पाकिस्तान को युद्ध के लिए ललकार रहे हैं। भाजपा के ऐसे कदम से केवल क्षेत्रों में तनाव बढ़ेगा।
1998 में वामपंथी नेताओं ने इस परमाणु परीक्षण को बाबरी विध्वंस से जोड़ते हुए आरोप लगाया था कि संघ परिवार ने पहला धमाका 6 दिसंबर 1992 में किया था। पार्टी के तत्कालीन जनरल सेक्रेट्री ने जून 1998 में हिंदूफोबिया दिखाते हुए अपनी स्पीच में परमाणु बम को ‘हिंदू बम’ कहा था। साथ ही इल्जाम लगाया था कि राम मंदिर का नारा जैसे मुस्लिमों को टारगेट करता है वैसे ही परमाणु बम को पाकिस्तान के लिए तैयार किया जा रहा है। शरद यादव जैसे नेताओं ने इसे आरएसएस का गेमप्लान बताते हुए कहा था कि इसे भारत को अंध हिंदू राष्ट्रवादियों का देश बनाने की साजिश से जोड़ा था।