Sunday, November 17, 2024
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राहुल गाँधी ने Unitech प्रॉपर्टी को 2019 के हलफनामे में डाला, लेकिन यह 2014 में क्यों गायब था?

इन चौंकाने वाले तथ्यों के सामने आने के बाद, कोई भी केवल यह उम्मीद कर सकता है कि भारत के चुनाव आयोग द्वारा 2019 और 2014 के चुनावी हलफनामे में विसंगतियों की पूर्ण और गहन जाँच शुरू की जानी चाहिए।

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने अपने गढ़ में संभावित हार को देखते हुए अमेठी के अलावा, ‘सुरक्षित विकल्प’ के रूप में वायनाड से चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भरा। राहुल को डर है कि भाजपा के उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से हार सकते हैं, जो 2014 में अमेठी में हारने के बावजूद भी अपने निर्वाचन क्षेत्र में अथक काम कर रहीं हैं। हालाँकि, वायनाड का यह ‘सुरक्षित सीट’ राहुल गाँधी के लिए कुछ नए सवाल खड़े कर सकती है, जिनका उनके लिए जवाब देना और भी मुश्किल होगा।

राहुल गाँधी ने गुरुवार को वायनाड, केरल से अपना नामांकन दाखिल किया, जबकि उनकी बहन प्रियंका ने वायनाड में लोगों से आग्रह किया कि वह उनके भाई का ख्याल रखें। राहुल गाँधी के चुनावी हलफनामे ने उन संपत्तियों के बारे में गंभीर सवाल खड़े किए हैं जो ऑपइंडिया ने अपने पहले के कई खुलासों में देश के सामने रखा था।

अपने 2019 के चुनावी हलफनामे में, राहुल गाँधी ने सिग्नेचर टॉवर्स-II में दो संपत्तियों की खरीद की सूची दी है, जो यूनिटेक के स्वामित्व में है। चुनावी हलफनामे के मुताबिक, राहुल गाँधी ने घोषणा की है कि उन्होंने सिग्नेचर टावर-II में ऑफिस स्पेस B-007 और B-008, दो प्रॉपर्टी खरीदी हैं। शपथ पत्र में कहा गया है कि ऑफिस स्पेस B007, 1.65 करोड़ रुपए में और B008, 6.27 करोड़ रुपए में खरीदा गया था।

दिलचस्प बात यह है कि हलफनामे में कहा गया है कि ये सम्पत्तियाँ 1 दिसंबर 2014 को खरीदी गई थीं।

राहुल गाँधी का चुनावी हलफ़नामा -2019

इससे पहले, ऑपइंडिया ने बताया था कि कैसे राहुल गाँधी ने 2010 में यही दो प्रॉपर्टी खरीदी थीं। अक्टूबर 2010 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा कॉन्ग्रेस को 2 जी के सम्बन्ध में नोटिस का जवाब देने के लिए कहा गया था और 2 जी पर कैग रिपोर्ट लोकसभा में पेश किए जाने से कुछ हफ्ते पहले, राहुल गाँधी ने यूनिटेक के गुड़गाँव में ‘सिग्नेचर टॉवर-II में दो ऑफिस खरीदने के लिए यूनिटेक के साथ एक करार किया था। राहुल गाँधी ने इस आलीशान टॉवर में B-007 और B-008 के लिए 1.44 करोड़ रुपए और 5.36 करोड़ रुपए का भुगतान किया था। शेष भुगतान संपत्तियों के कब्जे के बाद भुगतान करना था।

व्हिसलब्लोअर्स ने ऑपइंडिया से बात करने के बाद, रिपब्लिक टीवी ने उन दस्तावेजों को भी जारी किया जहाँ राहुल गाँधी ने खरीद के कागजात पर हस्ताक्षर किए थे।

स्रोत -रिपब्लिक TV

यही प्रॉपर्टी, B007 और B008 जो अक्टूबर 2010 में राहुल गाँधी द्वारा खरीदे गए थे, 2019 के चुनावी हलफनामे में प्रकट हुए हैं जिसे राहुल गाँधी ने वायनाड में दायर किया है।

दिलचस्प बात यह है कि जैसा कि हमने पहले बताया था, राहुल गाँधी के 2014 के चुनावी हलफनामे में, इन दोनों संपत्तियों को राहुल गाँधी द्वारा सूचीबद्ध नहीं किया गया था।

अक्टूबर 2010 में संपत्तियों को खरीदने के बाद भी 2014 में, राहुल गाँधी ने अपने चुनावी हलफनामे में केवल अपनी बहन प्रियंका गाँधी वाड्रा के साथ संयुक्त रूप से ख़रीदा गया फार्महाउस ही सूचीबद्ध किया था।

राहुल गाँधी का चुनावी हलफ़नामा -2014

यूनिटेक 2 जी घोटाले में शामिल होने के लिए बदनाम है। 2008 की शुरुआत में, यूनिटेक की सहायक कंपनी, यूनिटेक वायरलेस को सरकार द्वारा पहले आओ, पहले पाओ की नीति के तहत 1,658 करोड़ रुपए में अखिल भारतीय दूरसंचार लाइसेंस प्रदान किया गया था। इसके बाद, उसने अपने 67% शेयर नॉर्वे के टेलीनॉर को 6,120 करोड़ रुपए में बेच दिए। इससे कंपनी का मूल्य 9,100 करोड़ रुपए हो गया। इस हिस्सेदारी की बिक्री तब हुई जब कंपनी के पास कोई अन्य संपत्ति नहीं थी। इसलिए, यह मानना उचित था कि यह उस लाइसेंस का मूल्य था जो उसके पास था।

फिर, कैग रिपोर्ट ने घोटाले से पर्दा उठा दिया। इसमें कहा गया है कि सस्ती स्पेक्ट्रम बिक्री से सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ जबकि यूनिटेक जैसी निजी संस्थाओं को लाभ पहुँचाया गया। आगे यह आरोप भी लगाया गया कि इस प्रक्रिया में नियमों और दिशानिर्देशों का खुलेआम उल्लंघन किया गया, जिससे लाइसेंस प्राप्त करने वालों और एक्चुअल में इसे प्राप्त करने वालों के बीच एक मिलीभगत का पता चलता है।

हमारे पिछले एक्सपोज़ में, हमने लिखा था:

घटनाओं की पूरी शृँखला की टाइम लाइन भी दिलचस्प है। अक्टूबर 2009 में, सीबीआई ने 2 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में अनियमितताओं का मामला दर्ज किया। 8 अक्टूबर 2010 को, सुप्रीम कोर्ट ने घोटाले पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक या CAG की रिपोर्ट पर तत्कालीन यूपीए सरकार से जवाब माँगा। उसी साल अक्टूबर में, राहुल गाँधी ने गुरुग्राम के सिग्नेचर टावर्स-II में दो व्यावसायिक सम्पत्तियाँ खरीदीं, जो यूनिटेक के स्वामित्व में हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस संपत्ति का उनके 2014 के हलफनामे में उल्लेख नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि इस तरह के कई सौदे संदिग्ध, घोटाला करने वाले व्यक्तियों द्वारा रणनीतिक रूप से किए गए हैं, जो उनके चुनावी हलफनामों में दिखाई देने से बचाने के लिए है।

उस समय हमने सोचा कि शायद 2014 के चुनावी हलफनामे में सम्पत्तियाँ लिस्ट नहीं की गई, क्योंकि हो सकता है 2010 से 2014 के बीच सम्पत्तियाँ राहुल गाँधी द्वारा बेच दी गई हों।

हालाँकि, राहुल गाँधी के 2019 लोकसभा चुनाव के हलफनामे में इन संपत्तियों के लिस्ट होने के साथ, कुछ प्रासंगिक सवाल पैदा हो रहे हैं कि राहुल गाँधी को जवाब देना चाहिए, क्यों उन्होंने इन संपत्तियों को अपने 2014 के हलफनामे में उल्लेख नहीं किया।

आइए देखते हैं, ऐसे दो संभावित परिदृश्य हैं जो उनके 2014 के चुनावी हलफनामे में इन संपत्तियों की अकथनीय अनुपस्थिति की व्याख्या करेंगे।

दृश्य- 1:

पहला परिदृश्य जो अपने 2014 के चुनावी हलफनामे से अनुपस्थित रहने वाले सिग्नेचर टॉवर की संपत्तियों की अनुपस्थिति की व्याख्या करेगा, अगर राहुल गाँधी ने 2010 की अक्टूबर में इन संपत्तियों को खरीदने के बाद अपने 2014 के चुनावी हलफनामे को दाखिल करने से पहले इन दो संपत्तियों को बेच दिया था और फिर से इसे 1 दिसंबर 2014 को खरीद लिया हो जैसा कि उनके  2019 हलफनामे में अब दावा किया गया है।

यह निश्चित रूप से, एक अधिक संभावनाहीन परिदृश्य है क्योंकि एक संपत्ति को एक बार बेचकर फिर से उसे अधिक मूल्य पर खरीदना कोई व्यावसायिक समझ की बात नहीं होगी। 2010 में, राहुल गाँधी ने इस आलीशान टॉवर में B-007 और B-008 के लिए 1.44 करोड़ रुपए और 5.36 करोड़ रुपए का भुगतान किया था। अपने 2019 के चुनावी हलफनामे में, राहुल गाँधी कहते हैं कि 2014 में ऑफिस स्पेस में B007, 1.65 करोड़ रुपए में और B008  7.93 करोड़ रुपए में खरीदा गया था।।

2010 में मूल्य जिसके लिए हस्ताक्षर किए गए एग्रीमेंट्स पेपर हैं और 2019 हलफनामे में दर्शाए गए मूल्य में पर्याप्त अंतर है। जिस संपत्ति का राहुल गाँधी ने दावा किया कि 2014 में उन्होंने खरीदी थी, वह उस लागत मूल्य से बहुत अधिक है, जो उन्होंने 2010 में साइन की थी।

इस प्रकार, यह बताने का कोई मतलब नहीं होगा कि राहुल गाँधी ने अक्टूबर 2010 में यूनिटेक से इन संपत्तियों को खरीदा, फिर अपने 2014 के चुनावी हलफनामे को दाखिल करने से पहले अपनी संपत्तियों को बेच दिया, और फिर दिसम्बर 2014 में उन्हीं संपत्तियों को बहुत अधिक मूल्य पर पुनर्खरीद करने के लिए आगे बढ़े। जो अब उनके 2019 के चुनावी हलफनामे में दिखाई दे रहा है।

दृश्य- 2

दूसरा और अधिक संभावित परिदृश्य यह है कि राहुल गाँधी ने 2014 के चुनावी हलफनामे में सभी संपत्तियों का खुलासा नहीं किया।

यदि संपत्ति को 2010 में खरीदा गया था, भले ही उस समय पूरी राशि का भुगतान किया गया हो या नहीं, संपत्तियों को 2014 के हलफनामे में सूचीबद्ध किया जाना चाहिए था। जैसा कि नहीं किया गया और इस बात का कोई तुक नहीं है कि अपनी संपत्ति बेचने और महीनों बाद, दिसम्बर 2014 में अपनी संपत्ति फिर से खरीदने की बात यह संदेह पुष्ट करता है कि राहुल गाँधी अपने 2014 के हलफनामे में सत्य बयान नहीं किया था।

झूठ बोलने का कारण, यह हो सकता है  कि वह शायद यह अच्छी तरह से जानते होंगे कि संपत्तियाँ यूनिटेक से खरीदी जा रही थीं, जो 2-जी घोटाले में आरोपित थे और जिसकी उनकी ही कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा जाँच की जा रही थी और वह इसे जनता की नज़र से छिपाना चाहते थे।

अगर वह तब झूठ बोल रहे थे तो वह अब भी झूठ बोल रहे हैं

यदि हम मानते हैं कि परिदृश्य 2 की अधिक संभावना है और यह कि संभवतः राहुल गाँधी ने 2014 के चुनावी हलफनामे में झूठ बोला था, तो इस बात के भी स्पष्ट कारण हैं कि राहुल गाँधी अपने 2019 के हलफनामे में भी झूठ बोल रहे हैं।

यदि हम स्वीकार करते हैं कि राहुल गाँधी ने अपने 2014 के चुनावी हलफनामे में झूठ बोला था और उन्होंने अक्टूबर 2010 में 2 यूनिटेक संपत्तियों की खरीद की थी और इसे अपने 2014 के हलफनामे में जोड़ने में विफल रहे, तो उनके 2019 के चुनावी हलफनामे में घोषणा की गई कि ये संपत्तियाँ दिसंबर 2014 में खरीदी गई थीं, भी सच नहीं है।

चुनावी हलफनामे में तथ्यों को तोड़मरोड़ कर या गलत तरीके से पेश करना एक गंभीर अपराध है जो उम्मीदवार को अयोग्य घोषित कर सकता है।

इन चौंकाने वाले तथ्यों के सामने आने के बाद, कोई भी केवल यह उम्मीद कर सकता है कि भारत के चुनाव आयोग द्वारा 2019 और 2014 के चुनावी हलफनामे में विसंगतियों की पूर्ण और गहन जाँच शुरू की जानी चाहिए।

नुपुर जे शर्मा की मूल रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद रवि अग्रहरि ने किया है।

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