राहुल गाँधी अपनी गंभीर वीडियो शृंखला में दोबारा चेहरे पर करुआ तेल (या सोया सॉस) मल कर भारत-चीन सीमा विवाद पर बोलने आए हैं। बात यह है कि जिस व्यक्ति और पार्टी को जनता ने प्रासंगिकता से दूर कर दिया हो, अपना संसदीय क्षेत्र छोड़ कर दक्षिण का रास्ता नापना पड़ा, वो मोदी की छवि पर बात करता है तो हास्यास्पद ही लगता है।
राहुल गाँधी चेहरे पर एक नकली दर्द के साथ आज के वीडियो में समझाना चाह रहे हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि/सकारात्मकता उनकी ‘56 इंच’ वाली छवि है जिसे चीन ने समझ लिया है और उसे चैलेंज कर रहा है।
राहुल गाँधी के नए वीडियो का क्या औचित्य है?
नए वीडियो में राहुल कहते हैं कि पीएम मोदी के सामने एक मजबूत नेता की छवि बनाए रखना मजबूरी है और चीन इसी का फायदा उठाकर पीएम मोदी की छवि पर चोट कर रहा है। अब सोचिए जरा कि एक बार राहुल गाँधी ने भी मोदी की इमेज को ही लेकर अपनी बात रखी थी।
उन्होंने तब कहा था कि मोदी की इमेज ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है और वह उसे बर्बाद कर देंगे। अब राहुल गाँधी की इन बातों से ये तो पता चलता है कि राहुल गाँधी न केवल पीएम मोदी को लेकर चीन जैसी सोच ही रखते हैं, बल्कि इन दोनों का मकसद भी उनकी छवि से खिलवाड़ करना ही है।
राहुल गाँधी आगे वीडियो में कहते हैं कि उनकी चिंता ये है कि चीनी हमारी सीमा में आ घुसे हैं और वो बिना रणनीति के कुछ नहीं करते। उनके दिमाग में एक संसार का नक्शा खिंचा हुआ है और वो उसी के हिसाब से काम करते हैं। उसी के हिसाब से उसे आकार देते हैं।
PM fabricated a fake strongman image to come to power. It was his biggest strength.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 20, 2020
It is now India’s biggest weakness. pic.twitter.com/ifAplkFpVv
अब राहुल गाँधी की ये बात सुनकर आपको नहीं लगा कि कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष की ये लाइनें बाहुबली फिल्म से प्रेरित है या बिल्कुल उस जैसी ही हैं। याद करिए फिल्म का एक सीन जहाँ माहिष्मति का एक धोखेबाज पहले कालकेयी को नक्शा भिजवाता है, सेना से जुड़े सारे भेद खोलता है और फिर बाद में पकड़े जाने पर राजदरबार में गंभीर भाव के साथ चेताता है कि आखिर कालकेयी की सेना बहुत खतरनाक है। वो जिस राज्य में घुसते हैं उसे अपना बना लेते है।
राहुल गाँधी की बातों को और उस कैरेक्टर को जोड़ कर देखिए, कोई अधिक फर्क़ नहीं है। क्योंकि यही वो राहुल गाँधी हैं जिनकी कॉन्ग्रेस ने राजीव गाँधी फाउंडेशन के नाम पर चीन के साथ मिलकर दुष्कृत्य किए और भारत की अर्थव्यवस्था तक को (फ्री ट्रेड अग्रीमेंट आदि के जरिए) नीलाम करने की सोची। लेकिन अफसोस ये उसमें असफल रहे।
आगे राहुल गाँधी देश की आंतरिक सुरक्षा पर बात करते हैं और मोदी सरकार पर सवाल उठाते हैं। हैरत ये है कि ये सवाल किस आधार पर उठाया जा रहा है और पूछ कौन रहा है। क्या राहुल गाँधी ये बात नहीं जानते कि जिस नेता पर वो सवाल उठा रहे हैं, उस नेता के नेतृत्व में बालाकोट और उरी जैसे स्ट्राइक्स को अंजाम दिया जा चुका है। लेकिन जब ऐसी ही स्थिति यूपीए कार्यकाल में आई तो उन्होंने आईएफ के अनुरोध के बाद भी उन्हें छूट नहीं दी और सैनिक सिर्फ़ बदले की आग में खुद ही झुलस के रह गए।
Surgical strikes; Balakot; Chinese intrusion thwarted. Compare that to:
— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) July 20, 2020
UPA let China occupy 640 sqkm of Eastern Ladakh: Shyam Saran.
UPA denied IAF request to strike Pak terror hideouts after 26/11: Air Chief Dhanoa.
Grow intelligence, not hair. https://t.co/uiHZ333vlg
राहुल गाँधी चीन पर चिंता जाहिर करते हैं। वो भी चेहरे पर बिना किसी शर्म के भाव के। क्या उन्हें इतना भी नहीं पता कि वो यूपीए सरकार ही थी जिसने चीन को बिना किसी विरोध के पूर्वी लद्दाख में 640 किमी कब्जाने दिया था।
राहुल गाँधी हमें सामरिक रणनीतियाँ और वैश्विक राजनीति की पाठशाला में दो और तीन मिनट के वीडियो से सब कुछ समझाने वाले? वहीं न जिन्हें बोलते हुए ये भी नहीं मालूम कि कोई एक ही घटना दिन और रात में एक साथ नहीं हो सकती और जो भाषण देते हुए सबके बीच बोल देते हैं कि this morning I woke up at night.
हैरत की बात हैं कि आज गाँधी परिवार के युवराज और जनता के बीच पप्पू नाम से मशहूर राहुल जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल कर रहे हैं और देश को जवाब देने की बात कर रहे हैं। जबकि वे खुद कब-कब अपनी गलतियों को मानने के लिए सामने आए हैं…ये सबको मालूम है।
बहुत पुरानी बात मत करिए। साल 2019 की बात कीजिए। लोकसभा चुनाव में भारी दावों के बाद भी करारी शिकस्त ने जब कॉन्ग्रेस का मनोबल तोड़ दिया। राहुल गाँधी ने पार्टी का हौसला बढ़ाने की बजाय विदेश यात्रा पर जाना उचित समझा। आज यही व्यक्ति कह रहे है कि वो देखना चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी चीन की चालाकियों का क्या जवाब देंगे। जवाब देंगे भी या केवल अपने हथियार उनके आगे डाल देंगे।
राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस से कुछ सवाल
आज राहुल गाँधी प्रधानमंत्री से उन सवालों के जवाब माँग रहे हैं जिन पर आए दिन मीडिया में खबरें आ रही हैं और खुद पीएम भी विपक्षी नेताओं के साथ बैठक कर चुके हैं। स्थिति क्या है इसकी पल-पल की खबरें आमजन को है। लेकिन क्या कभी राहुल गाँधी ने खुद से पूछा है कि वो आम जनता के सवालों के जवाब में उन्हें क्या परोस रहे हैं।
राहुल गाँधी वेबिनार में पब्लिक के नाम पर कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं को बिठाते हैं और उन्हीं के चुनिंदा व पहले से मालूम प्रश्नों का उत्तर भी देते हैं। क्या उनका कोई फर्ज नहीं है कि वे सामने आए और उन सवालों पर विराम लगाए जिन्हें लेकर कॉन्ग्रेस की छवि दिन पर दिन बिगड़ रही है।
लेकिन नहीं। प्रश्नों पर विराम तभी लगता है जब संतोषजनक जवाब मिले। मगर, कॉन्ग्रेस पर अपने किए कुकर्मों का कोई उत्तर नहीं है। राहुल गाँधी जैसा व्यक्ति अगर आज वीडियो के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि चीन क्या करना चाहता है, और क्यों करना चाह रहा है, तो लोगों को सँभल जाना चाहिए।
साथ ही इन बातों पर विचार करना चाहिए कि ऐसे लोगों को देश की सुरक्षा पर बोलने का आखिर क्या अधिकार है जिन्होंने देश को नीलाम करने तक की प्लानिंग कर ली हो? क्या ऐसे लोगों को याद नहीं कि इतिहास में इनके कितने कुकर्म दर्ज हैं जिनका खुलासा आजतक हो रहा है। मगर कारनामे हैं कि खत्म होने का नाम नहीं ले रहे।
ये कुछ सवाल हैं जो राहुल गाँधी की इन वीडियोज पर सहमति दर्ज करने से पहले जनता को मुखर होकर उनसे करने चाहिए। पूछिए राहुल गाँधी से और कॉन्ग्रेस से कि 2007 और 2008 में सोनिया गाँधी चीन क्यों गई थी? आखिर क्यों राहुल गाँधी बार-बार चीनी राजनयिकों के साथ या उसके दूतावास में जाते हैं?
डोकलाम मामले के दौरान वो चीनियों से क्यों मिल रहे थे? कैलाश मानसरोवर यात्रा की आड़ में वो किस राजनयिक से मिल रहे थे? क्या कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के साथ 2008 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस द्वारा किए करार के अंतर्गत यह भी आता है कि यहाँ इस पार्टी का बड़ा नेता अपने ही राष्ट्र की सामरिक क्षमता ही नहीं, सेना के मनोबल पर भी सवाल उठाएगा?
अपने पार्टी के बेहतर और युवा नेताओं को अपने समर्थकों समेत बाहर जाने से न रोक पाने वाले राहुल गाँधी अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर वीडियो में चेहरे पर सोया सॉस लगा कर जो ज्ञान देते हैं, अपने घर की आग क्यों नहीं बुझा पाते? शायद इसलिए क्योंकि उन्हें शी जिनपिंग पर सचिन पायलट या ज्योतिरादित्य सिंधिया से ज्यादा भरोसा है।
साथ ही, अचानक से गोरे-गोरे, कूल डूड बने फिरने वाले डिम्पल वाले चेहरे को, चिरयुवा कहे जाने वाले राहुल गाँधी इतना उदासीन और साँवलेपन के साथ क्यों परोस रहे हैं? क्या उन्हें अब गरीबों से जुड़ने के लिए इस तरह की नस्लभेदी राह लेनी पड़ रही है जहाँ गरीबों, मजदूरों का समझाने के लिए चेहरे का रंग गहरा करना पड़ रहा है?
मुस्कुराते हुए डिम्पलों की जगह कपाल पर पड़ी सिलवटों ने क्यों ले लिया है? क्या पीआर टीम ने कहा है कि इससे अब वो समझदार और गंभीर व्यक्तित्व के तौर पर सुने जाएँगे? क्या अब उन्हें पप्पू की जगह श्री पप्पू सिंह जी महाराज कह कर लोग बुलाएँगे?
बात यह है कि सियार नीले रंग के पानी की नाद में कूद कर भले ही रंग बदल ले, आचरण सियारों वाला ही रहेगा। जिस व्यक्ति को सुबह वो कब उठा इसका ख्याल नहीं रहता, इंटरनेट पर मूर्खताओं से भरे वीडियो बच्चों के हँसी-मजाक के काम में आते हैं, वो राष्ट्रीय प्रतिरक्षा, सीमा सुरक्षा और सामरिक नीतियों पर ज्ञान देने लगे, तो बड़ा अजीब लगता है।
राहुल गाँधी को भले ही यह लगता हो कि मोदी की छवि उन्हें चीन का चुनाव नहीं जितवा सकती, लेकिन मोदी को चीन का चुनाव जीतने की जरूरत है भी नहीं। ये बात और है कि राहुल और सोनिया गाँधी ने चीन की सरकार और पार्टी के साथ जो करार किए हैं, उनसे वो वहाँ के पीपुल्स हॉल की सदस्यता अवश्य पा जाएँगे और वहाँ उन्हें यहाँ वाली ‘पप्पू’ की छवि का भी सामना नहीं करना पड़ेगा।
वीडियो का सारांश यह है कि भारत को चीन पर हमला कर देना चाहिए। यहाँ राहुल की मंशा यही है कि कॉन्ग्रेस पर जो चीन से हारने का दाग लगा हुआ है और भारतीय जमीन चीन को दे देने की बात हर जुबान पर है, वो भाजपा द्वारा चीन से लड़ कर हारने के बाद ‘तुम भी तो हार गए’ कहने से बराबर हो जाएगा।
ये बात और है कि वैश्विक रक्षा विशेषज्ञ वैसा नहीं सोचते और भारतीय सेना चीन से लड़ कर निपटने में अब सक्षम है। तो, राहुल गाँधी का यह सपना भी उनके प्रधानमंत्री बन पाने के सपने की तरह ही रंग बदलते चेहरे और पिता की तरह सर के बालों की शैली में लगातार हो रहे परिवर्तन के बावजूद, अधूरा ही रह जाएगा।