राजस्थान में 199 सीटों के लिए शनिवार (25 नवंबर 2023) को मतदान हो गया। हालाँकि, एक सीट पर कॉन्ग्रेस प्रत्याशी की मौत के बाद इस सीट पर बाद में चुनाव कराया जाएगा। इस बार राज्य में कुल 74.96 प्रतिशत मतदान हुआ। इसमें से 0.83 प्रतिशत वोटिंग डाक मतपत्रों के जरिए हुई। इस बार का मतदान पिछले विधानसभा चुनावों के मतदान से लगभग 1 प्रतिशत अधिक हुई है।
साल 2018 के विधानसभा चुनावों में राजस्थान में 74.06 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। पिछली बार की तुलना में इस बार हुई अधिक मतदान, क्या राज्य में सरकार परिवर्तन का संकेत है, इसको लेकर चुनाव विशेषज्ञ और तमाम लोग चर्चा कर रहे हैं। दरअसल, अंतिम रैली में भी पीएम मोदी ने राज्य की कॉन्ग्रेस सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए लोगों से अधिक-से-अधिक संख्या में मतदान करने के लिए कहा था।
अगर राजस्थान में पुरानी सरकारों पर नजर डालें तो पता चलता है कि वहाँ हर पाँच साल में जनता सरकार को बदल देती है। अगर भाजपा की सरकार है तो अगली बार कॉन्ग्रेस की सरकार आती है और अगर कॉन्ग्रेस की सरकार है तो अगली बार भाजपा की सरकार आती है। अगर मानकर चला जाए कि यह ट्रेंड इस बार भी जारी रहता है तो राज्य में भाजपा की सरकार बनने की गुंजाइश दिखाई देती है।
इससे अलग हटकर अगर वोटिंग ट्रेंड पर नजर डालें तो एंटी इंकम्बैंसी (सत्ता विरोधी लहर) की स्थिति में वोटिंग प्रतिशत में वृद्धि देखने को मिलती है। इस बार भी वोटिंग प्रतिशत में वृद्धि सत्ताधारी कॉन्ग्रेस के लिए चिंता का विषय है। इसके पीछे कई कारण भी हैं। राज्य की अशोक गहलोत की सरकार भले आम लोगों की भलाई की बात करें, लेकिन उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार, परीक्षा प्रश्न पत्र का आउट हो जाना, महिलाओं के खिलाफ अपराध में वृद्धि जैसे तमाम मसले रहे हैं, जिससे राज्य सरकार के खिलाफ जनता में आक्रोश दिखा था।
‘लाल डायरी’ जैसे आरोप, जिसमें पार्टी के शीर्ष नेताओं तक को कठघरे में खड़ा किया गया है, ने भी जनता को चिंतन पर मजबूर किया है। इससे अलग, पार्टी में ही अंदरुनी फूट भी एक बड़ा कारण हैं। सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच खींचतान जैसे कारण पार्टी के प्रदर्शन पर सीधा प्रभाव डाले हो सकते हैं।
पिछले 20 सालों के चुनाव नतीजों को गौर करें तो पाएँगे कि जब-जब मतदान प्रतिशत में गिरावट आई है, तब-तब कॉन्ग्रेस फायदा पहुँचा है। वहीं, मतदान प्रतिशत में वृद्धि का लाभ भाजपा को मिला है। हालाँकि, ये ट्रेंड जारी रहता है या टूटता है, इसका पता 3 दिसंबर को मतगणना के दिन पता चल जाएगा।
अगर साल 1998 के चुनावी नतीजों को देखें तो उस समय लगभग 63.40 प्रतिशत मतदान हुआ था। इसके बाद कॉन्ग्रेस की सरकार बनी थी और अशोक गहलोत पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। उसके ठीक बाद साल 2003 के चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़कर 67.18 प्रतिशत हुआ। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला और उसकी सरकार बनी।
साल 2008 के विधानसभा चुनावों में फिर वोटिंग पर्सेंट गिरकर 66.25 प्रतिशत रह गया और फिर से कॉन्ग्रेस की सरकार बनी। साल 2013 के विधानसभा चुनावों में 75 प्रतिशत मतदान हुआ और भाजपा को सत्ता मिली। इस दौरान भाजपा को 167 सीटें मिलीं और कॉन्ग्रेस को सिर्फ 21 सीटें मिलीं।
इसी तरह साल 2018 के विधानसभा चुनावों में 0.98 प्रतिशत कम वोटिंग हुई और 74.06 प्रतिशत मतदान के कारण कॉन्ग्रेस की सरकार बनी। इस बार कॉन्ग्रेस को 92 सीटें मिलीं। इस बार भी मतदान प्रतिशत में पिछली बार के मुकाबले 0.90 प्रतिशत अधिक वोटिंग हुई है और भाजपा की सरकार बनने की आशा व्यक्त की जा रही है।
हालाँकि, अशोक गहलोत इसे कॉन्ग्रेस के पक्ष में वोटिंग बता रहे हैं, जबकि भाजपा दावा कर रही है कि इस बार राजस्थान में उसकी सरकार बनेगी। देखना है कि दोनों प्रमुख पार्टियों में से किसके दावे इस बार सही होते हैं। इस बार के चुनाव में शामिल कुल 5.25 करोड़ मतदाता 1863 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे।