मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार के पतन के बाद से ही राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस सरकार के भविष्य को लेकर अटकलें लगती रहती है। राज्य में जिला परिषद और पंचायत समिति चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने ऑपइंडिया से बातचीत में दावा किया है कि यह राज्य में कॉन्ग्रेस की आखिरी सरकार है और इसका लंबा भविष्य नहीं है।
उन्होंने कहा, “हमने कभी अधिकृत तौर पर नहीं कहा कि कॉन्ग्रेस की सरकार को गिराएँगे। ये जरूर कहा था कि ये सरकार अपने कर्मों से गिरेगी। कर्मों का कारण कॉन्ग्रेस पार्टी खुद है। अशोक गहलोत अपना घर खुद सँभाल नहीं पाए।”
उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस में हुई महत्वाकांक्षा की लड़ाई से केवल कॉन्ग्रेस को ही नुकसान नहीं हुआ, बल्कि इससे राजस्थान को भी नुकसान हुआ। सचिन पायलट की नाराजगी का हवाला देते हुए कहा, “प्रदेश सरकार और कॉन्ग्रेस दोनों नैतिक रूप से कमजोर हो चुकी है। उनका मनोबल गिर चुका है। मुख्यमंत्री की भाषा देखें, उनकी कार्यशैली देखें, वे हमेशा विचलित दिखाई पड़ते हैं।” पूनिया ने कोरोना के कारण पैदा हुए संकट को कॉन्ग्रेस के लिए अवसर के समान बताते हुए कहा कि यदि सामान्य हालात होते तो राज्य की जो स्थिति है उसमें यह सरकार आंदोलन से ही गिर गई होती।
सतीश पूनिया के साथ ऑपइंडिया की पूरी बातचीत आप नीचे सुन सकते हैं;
गौरतलब है कि राजस्थान में अमूमन पंचायत और जिला परिषद चुनाव में सत्ताधारी दल की जीत होती रही है। इस बार बीजेपी की जीत ने इस मिथक को तोड़ने का काम किया है। राज्य के 21 जिलों में से 20 में जिला प्रमुख चुन लिए गए हैं। इनमें से 12 में बीजेपी का प्रमुख चुना गया है। प्रदेश की सत्ताधारी कॉन्ग्रेस के खाते में 5 तो निर्दलीयों के हिस्से में 3 जिलों में प्रमुख की कुर्सी आई है। जिला परिषदों की कुल 636 सीटों में से 353 पर बीजेपी को तो 252 कॉन्ग्रेस को सफलता मिली है। वहीं पंचायत समिति में भाजपा ने 1989 और कॉन्ग्रेस ने 1852 सीटें जीती हैं। अन्य को 525 सीटों पर सफलता मिली है।
बीजेपी की यह जीत इसलिए भी चौंकाने वाली है क्योंकि ये नतीजे किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में आए हैं। ग्रामीण इलाकों के इन चुनावों में किसान वोटर प्रभावशाली माने जाते हैं। पूनिया ने इस जीत का श्रेय केंद्र की मोदी सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में किए गए बुनियादी विकास के काम को दिया है।
हालाँकि जानकार इन नतीजों को पूनिया की सांगठनिक क्षमताओं की परिणति बता रहे हैं। असल में पूनिया को प्रदेश बीजेपी की जिम्मेदारी सँभाले करीब एक साल हुआ है। लेकिन, उन्होंने इस दौरान संगठन को सक्रिय करने के लिए संभाग, जिला और मंडल स्तर तक प्रभारी और सह प्रभारी लगाए। नगर निगम चुनाव से लेकर और पंचायतीराज चुनाव तक प्रभारी और सह प्रभारी की जिम्मेदारी ज्यादातर उन लोगों को दी गई जो 30 से 50 वर्ष के बीच के थे।
संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले पूनिया का यह सांगठनिक कौशल ही है कि वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह शेखावत, गुलाबचंद कटारिया जैसे नेताओं के बीच बँटी प्रदेश बीजेपी को न केवल वे एक साथ लेकर चलने में कामयाब रहे, बल्कि पार्टी को एक ऐसे चुनाव में सफलता दिलवाई जिसका अतीत प्रदेश की विपक्षी दल की हार को तय बताते हैं।