मध्य प्रदेश में सियासी संकट के बीच कॉन्ग्रेस ने अपने विधायकों को जयपुर के दो महँगे लग्जरी रिसॉर्ट में ठहराया है। ये रिसॉर्ट दिल्ली-जयपुर हाइवे से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। दोनों रिसॉर्ट के बीच 34 किलोमीटर की दूरी है। ख़ुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इन विधायकों से चर्चा कर रहे तो उनका मंत्रिमंडल इनकी आवभगत में लगा हुआ है। एक रिसॉर्ट में जहाँ 10 हज़ार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से कमरा मिलता है, वहीं दूसरे में 21 हज़ार रुपए प्रतिदिन लगते हैं। ऐसे में कॉन्ग्रेस अपनी रिसॉर्ट राजनीति में लाखों फूँक रही है। इन रिसॉर्ट में कुछ कमरे पेड़ों पर भी बनाए गए हैं।
दोनों ही रिसॉर्ट को आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया है और लोगों की आवाजाही पर भी रोक लगा दी गई है। महाराष्ट्र में जब सियासी संकट आया था तब भी ब्यूना विस्टा रिसॉर्ट में कॉन्ग्रेस ने अपने विधायकों को ठहराया था। वहाँ पार्टी शिवसेना और एनसीपी के साथ मिल कर सरकार बनाने में कामयाब रही थी। इसलिए पार्टी इसे लकी मान कर चल रही है। यहाँ गोल्फ से लेकर टेनिस खेलने तक की व्यवस्था है। पिछली बार की तरह इस बार भी सारी जिम्मेदारी मुख्य सचेतक महेश जोशी को सौंपी गई है।
भारतीय जनता पार्टी ने 16 मार्च को मध्य प्रदेश विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराने की माँग की है। ऐसा होने पर कॉन्ग्रेस को अभी 4 दिन और अपने विधायकों को रिसॉर्ट में रखना पड़ेगा। कमलनाथ की क्षमताओं पर पार्टी और पार्टी के प्रति आस्था रखने वाले मीडिया के एक समूह को अभी भी उम्मीद है। जहाँ तक ‘रिसॉर्ट पॉलिटिक्स’ की बात है तो यह 14वॉं मौका है। अब तक नौ राज्यों की सियासी उठापठक की वजह से यह पॉलिटिक्स देखने को मिला है। इस सिलसिले की शुरुआत 1982 में कॉन्ग्रेस के ही भय से हुई थी।
एक नज़र उन सभी 14 मौकों पर जब ‘रिसॉर्ट पॉलिटिक्स’ देखने को मिली;
- मई 1982 (हरियाणा): देवी लाल ने भाजपा-आईएनएलडी के 48 विधायकों को कॉन्ग्रेस के डर से दिल्ली के एक होटल में भेज दिया था।
- अक्टूबर 1983 (कर्नाटक): इंदिरा गाँधी के भय से तत्कालीन मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े ने अपने 80 विधायकों को बेंगलुरु के एक रिसॉर्ट में भेजा था।
- अगस्त 1984 (आंध्र प्रदेश): तत्कालीन सीएम एनटीआर अमेरिका गए तो भास्कर राव को मुख्यमंत्री बनाया गया। उन्होंने लौटते ही विधायकों को होटल में भेजा।
- सितम्बर 1995 (आंध्र प्रदेश): एक दशक बाद एनटीआर के ख़िलाफ़ उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने ही बगावत कर डाला। नायडू ने अपने समर्थक विधायकों को होटल में भेजा।
- अक्टूबर 1996 (गुजरात): भाजपा के बागी शंकर सिंह वाघेला ने 47 बागी विधायकों को होटल में भेजा।
- मार्च 2000 (बिहार): नीतीश कुमार 7 दिन के लिए सीएम बने और विधायकों को होटल में ठहरवाने के बावजूद बहुमत साबित नहीं कर पाए।
- जून 2002 (महाराष्ट्र): भाजपा-शिवसेना गठबंधन को रोकने के लिए कॉन्ग्रेस-एनसीपी ने विधायकों को होटल में भेजा, तब दिवंगत विलासराव देशमुख सीएम थे।
- मई 2016 (उत्तराखंड): हरीश रावत सरकार को बर्खास्त करने की माँग की गई। भाजपा ने अपने विधायकों को होटल में भेजा।
- फरवरी 2017 (तमिलनाडु): शशिकला समर्थित पलानीसामी गुट के 130 विधायकों को होटल में भेजा गया। पन्नीरसेल्वम विरोधी गुट में थे।
- अगस्त 2017 (गुजरात): अहमद पटेल की राज्यसभा में जीत के लिए कॉन्ग्रेस ने अपने 44 विधायकों को रिसॉर्ट में भेजा।
- मई 2018 (कर्नाटक): कॉन्ग्रेस-जेडीएस ने अपने विधायकों को होटल में भेजा। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन येदियुरप्पा को फ्लोर टेस्ट से पहले इस्तीफा देना पड़ा।
- जुलाई 2019 (कर्नाटक): कॉन्ग्रेस-जेडीएस के 17 बागी विधायकों को रिसॉर्ट में ठहराया गया। कुमारस्वामी सरकार गिर गई।
- नवम्बर 2019 (महाराष्ट्र): एनसीपी नेता अजीत पवार की बगावत के बाद एनसीपी-शिवसेना-कॉन्ग्रेस ने अपने विधायकों को होटल में भेजा।
- मार्च 2020 (मध्य प्रदेश): ये सियासी ड्रामा अभी चालू है। कमलनाथ गुट के विधायक जयपुर में रुकवाए गए हैं।
Amid the political crisis in the aftermath of #JyotiradityaScindia‘s exit from the Congress, over 90 MLAs of the party from #MadhyaPradesh arrived by a chartered flight at the Sanganer airport.https://t.co/ZUprdXfiml
— The Hindu (@the_hindu) March 11, 2020
इस तरह से देखा जाए तो पहले दोनों ही मौके पर कॉन्ग्रेस का ही भय था, जिसके कारण पहले हरियाणा में देवीलाल और फिर कर्नाटक रामकृष्ण हेगड़े को अपने विधायकों को रिसॉर्ट में भेजना पड़ा था। अब स्थिति ये है कि लगातार पिछले 5 मौकों से यही कॉन्ग्रेस अलग-अलग राज्यों में अपने विधायकों को लेकर भागदौड़ में लगी हुई है। गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र और फिर मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस को ऐसा करना पड़ा है।