रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 2000 रुपए के सभी नोटों को वापस लेने का ऐलान किया है। RBI के इस फैसले पर कॉन्ग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश में लगे हुए हैं। हालाँकि इससे पहले साल 2014 में मनमोहन सिंह सरकार में भी इसी तरह का फैसला लिया जा चुका है। यही नहीं, इससे पहले साल 1978 में भी नोट बंदी हो चुकी है।
दरअसल, आरबीआई ने शुक्रवार (19 मई 2023) को ‘क्लीन नोट नीति’ के चलते ₹2000 के सभी नोट वापस लेने का फैसला किया है। नोट बदलने या बैंक में जमा करने के लिए देशवासियों को 30 सितंबर 2023 तक का समय दिया गया है। नोट बदलने के लिए 4 महीने की समय सीमा को पर्याप्त माना जा रहा है। हालाँकि विपक्ष इसे मुद्दा बनाते हुए राजनीतिक रोटियाँ सेंकने की जुगत में लगा हुआ है। लेकिन शायद कॉन्ग्रेस अपनी सरकार में लिए गए फैसलों को भूल चुकी है।
साल 2014 की शुरुआत में केंद्र में कॉन्ग्रेस नीत यूपीए सरकार सत्ता में थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। तब, 22 जनवरी 2014 को RBI ने 2005 से पहले के सभी नोटों को वापस लेने का ऐलान कर दिया था। इसमें 10 रुपए से लेकर 500 और 1000 रुपए तक के नोट भी शामिल थे। हालाँकि तब कॉन्ग्रेस नेताओं से लेकर उनके अन्य सहयोगी दलों ने सरकार के इस फैसले का विरोध करने की कोशिश नहीं की थी। लेकिन अब हो-हल्ला मचा रहे हैं।
1978 में हुई थी पहली नोटबंदी, 10 हजार के नोट भी हुए थे बंद…
2014 में हुई ‘नोट बंदी’ से पहले साल 1978 में हुई आजाद भारत की पहली नोट बंदी में भी मनमोहन सिंह का बड़ा हाथ था। दरअसल, तब केन्द्र में मोरारजी देसाई सरकार थी और उसमें मनमोहन सिंह वित्त सचिव का भार सँभाल रहे थे। तब 16 जनवरी 1978 को काला धन खत्म करने के लिए ₹1000, ₹5000 और ₹10000 के नोटों को बंद करने की घोषणा की गई थी। सरकार के इस ऐलान के बाद 17 जनवरी 1978 को देश की सभी बैंकों और उनकी शाखाओं के अलावा सरकारों के खजाने को भी बंद रखने का भी फैसला किया गया था।