सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुरुवार (नवंबर 12, 2019) को सबरीमाला मामले पर स्पष्ट फैसला न आने के बाद केरल के कानून मंत्री एके बालन का एक बयान आया। उन्होंने कहा कि राज्य अभी इस फैसले पर विचार कर रहा है कि अगर 10-50 उम्र तक की औरतें सबरीमाला मंदिर में घुसने का प्रयास करती हैं, तो उन्हें सहायता मुहैया करवाई जाए या नहीं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश बहुत उलझा हुआ है और इस पर अध्य्यन की जरूरत है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने कहा, “सबरीमाला में घुसने का प्रयास करने वाली 10 से 50 वर्ष तक की उम्र की महिलाओं को राज्य सरकार कोई सहायता मुहैया नहीं कराएगी। हमें अभी इस बात पर विचार करना है कि आगे क्या किया जा सकता है अगर किसी ने मंदिर में घुसने की इच्छा व्यक्त की तो। कोर्ट का आदेश बेहद उलझा हुआ है और उस पर अध्य्यन की आवश्यकता है।” राज्य के कानून मंत्री (वो भी वामपंथी सरकार) का इस तरह का बयान वामपंथियों को खटक सकता है। हालाँकि सबरीमाला मामले पर इससे पहले भी केरल की वामपंथी सरकार कभी घोड़ा-कभी चतुर का खेल खेल चुकी है।
Sabarimala order ‘complicated’, won’t provide assistance to women trying to enter, says Kerala Law Minister AK Balan.https://t.co/UvlOXQHWgj
— TIMES NOW (@TimesNow) November 15, 2019
गौरतलब है कि गुरुवार को सबरीमाला मामले पर सुप्रीम कोर्ट से निर्णायक फैसला नहीं आया है। क्योंकि 5 जजों की पीठ में से 3 जज इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजे जाने के पक्ष में रहे जबकि 2 जजों ने इससे संबंधित याचिका पर ही सवाल उठा दिए। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस खानविलकर और जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने के पक्ष में अपना मत सुनाया। जबकि पीठ में मौजूद जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस नरीमन ने सबरीमाला समीक्षा याचिका पर असंतोष व्यक्त किया। अंततः पीठ ने सबरीमाला मामले में फैसला सुनाने के लिए बड़ी पीठ (7 जजों की बेंच) को प्रेषित कर दिया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया है। लेकिन साथ ही ये भी कहा कि केरल मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध का लैंगिक भेद-भाव से कोई लेना देना नहीं है।
संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने संगठन के ट्विटर हैंडल पर लिखा, “हम मामले को बड़ी संविधान पीठ को भेजने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। निश्चित आयु वर्ग की महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध का लैंगिक भेदभाव या असमानता से कोई लेना-देना नहीं है। यह विशुद्ध रूप से देवता की विशेषता पर आधारित है।”
परंपराओं और रीति-रिवाजों से जुड़े मामले आस्था और विश्वास के मुद्दे हैं। शबरीमला मंदिर में एक विशेष आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध से लिंग असमानता या भेदभाव का कोई संबंध नहीं है, तथा यह प्रतिबंध केवल देवता की विशिष्टता के कारण है। pic.twitter.com/a3UQy0pFkO
— RSS (@RSSorg) November 14, 2019
उन्होंने कहा, “हमारी पुरजोर राय है कि मामले में किसी भी आधार पर न्यायिक समीक्षा करना हमारे संविधान में पूजा करने की आजादी की भावना का उल्लंघन होगा और संबंधित अधिकारियों की राय को ऐसे मामलों में सर्वोच्च तरजीह दी जानी चाहिए।”
यहाँ बता दें कि सबरीमाला मंदिर के ट्रस्टियों (त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड) ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है और इसे आंशिक जीत बताया है। वहीं केरल की सरकार ने भी कहा है कि वो कानून विशेषज्ञों से इस पर सलाह लेंगे। जबकि मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने कहा है कि वे तो हमेशा ही कोर्ट को कार्यान्वित करने के लिए तैयार थे, चाहे वो जो भी हो।