Saturday, July 27, 2024
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शिवसेना सांसद ने दिया इस्तीफा, कहा – ‘अपने कार्यकर्ताओं के साथ नहीं कर पा रहा न्याय, NCP है मूल वजह’

"जिंतुर नगरपालिका में NCP के एक व्यक्ति को गैर सरकारी प्रशासक के रूप में नियुक्त किया गया है। यह शिवसेना के कार्यकर्ताओं के साथ अपमान जैसा है और यह अस्वीकार्य है।"

महाराष्ट्र के सत्ताधारी दल शिवसेना में खींचतान का दौर जारी है। वही खींचतान अब सतह पर नज़र आ रही है। परभणी से शिवसेना सांसद संजय जाधव ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया है। इसका कारण जिंतुर नगरपालिका में एनसीपी का दखल बताया जा रहा है। उन्होंने इस संबंध में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र भी लिखा है। जिसमें उनका कहना है कि वह अपने दल के कार्यकर्ताओं से न्याय करने में असमर्थ हैं।   

संजय जाधव ने अपने पत्र में यह लिखा कि वह अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं। इस आधार पर उन्हें सांसद बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। इसके अलावा उन्होंने यह भी लिखा कि पिछले 8-10 महीनों से परभणी में जिंतुर नगरपालिका में प्रशासक नियुक्ति का मामला वह देख रहे हैं। वहाँ फिलहाल एनसीपी के एक व्यक्ति को गैर सरकारी प्रशासक के रूप में नियुक्त किया गया है। यह शिवसेना के कार्यकर्ताओं के साथ अपमान जैसा है और यह अस्वीकार्य है।  

संजय जाधव ने अपने इस्तीफ़े का पत्र 25 अगस्त को लिखा था। हालांकि संजय जाधव ने यह भी कहा कि भले पार्टी कार्यकर्ताओं को इंसाफ न मिले। लेकिन वो बतौर शिवसैनिक पार्टी के लिए काम करते रहेंगे। वहीं शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे के मुताबिक़ यह मामला हल हो गया था। उन्होंने कहा था, “अगर सरकार में या पार्टी के भीतर किसी भी तरह के विवाद हैं तो शीर्ष नेतृत्व हल करेगा।”

बीते कुछ समय में शिवसेना और एनसीपी कार्यकर्ताओं के बीच महाराष्ट्र के कई शहरों में पदों के संबंध में विवाद की ख़बरें सामने आई हैं। दोनों ही दलों के कई नेता इस मुद्दे पर अपनी असहमति जता चुके हैं। लेकिन दलों के शीर्ष नेता अक्सर यही कहते हुए नज़र आते हैं कि गठबंधन में सब कुछ सही है। दोनों दलों के नेताओं के बीच किसी भी तरह का मनमुटाव नहीं है। लेकिन सांसद संजय जाधव का इस्तीफ़ा होने के बाद सतह पर ऐसा नहीं नज़र आता है।      

अभी से लगभग साल भर पहले जब विधानसभा चुनाव के बाद उद्धव ठाकरे ने भाजपा का साथ छोड़ कर एनसीपी और कॉन्ग्रेस के साथ मिल कर महाराष्ट्र में सरकार बनाई थी, तभी से तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं। इसके पहले तक दोनों दल एक दूसरे के वैचारिक स्तर पर विरोधी रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक दृष्टिकोण से अंतिम नतीजे क्या होते हैं, इस पर कुछ भी कहना कठिन!     

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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