भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में हाल में राजस्थान में बनी भाजपा की सरकार में मंत्री बनाए गए सुरेंद्रपाल सिंह टीटी विधानसभा चुनाव हार गए हैं। टीटी बिना चुनाव लड़े ही मंत्री बनाए गए थे। भाजपा ने उन्हें श्रीकरणपुर विधानसभा सीट से उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया था। हालाँकि, कॉन्ग्रेस के रुपिंदर सिंह कुन्नर ने उन्हें 11,261 वोटों से हरा दिया है।
टीटी को भाजपा ने राजस्थान सरकार में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया था। चुनाव हारने के बाद अब उनके मंत्री पद पर संकट छा गया है। राजस्थान में ऐसा पहली बार हुआ है, जब विधायक बनने से पहले कोई नेता मंत्री बना हो और अपना चुनाव हार गया हो। कुन्नर को 94,761 और टीटी को 83,500 वोट मिले है।
बताते चलें कि राजस्थान के कुल 200 सीटों पर कुछ महीने पहले चुनाव की घोषणा की गई थी। हालाँकि, चुनाव प्रचार के दौरान ही श्रीकरणपुर सीट के कॉन्ग्रेस प्रत्याशी सरदार गुरमीतसिंह कुन्नर का निधन हो गया था। इसके बाद चुनाव आयोग ने इस सीट का चुनाव कुछ समय के टाल दिया था। इसके बाद इस सीट पर 5 जनवरी 2024 को मतदान हुआ था।
इस सीट पर कॉन्ग्रेस ने अपने दिवंगत प्रत्याशी गुरमीत सिंह के बेटे रुपिंदर सिंह को उम्मीदवार बनाया था। चुनाव जीतने के बाद रुपिंदर सिंह कुन्नर भावुक हो गए। उन्होंने अपने पिता गुरमीत सिंह की तस्वीर के आगे मत्था टेका तो आँसू आ गए। उन्होंने कहा कि ये चुनाव सरदार गुरमीत सिंह कुन्नर ही लड़ रहे थे। कुन्नर की जीत पर कॉन्ग्रेस नेता अशोक गहलोत ने उन्हें बधाई दी है।
वहीं, टीटी की हार पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने कहा कि वे हार की समीक्षा करेंगे। दरअसल, टीटी को विधायक बनने से पहले राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाकर चार अहम विभाग- कृषि विपणन विभाग, कृषि सिंचित क्षेत्र विकास एवं जल उपयोगिता, इंदिरा नहर विभाग और अल्पसंख्यक मामले एवं वक्फ विभाग दिए गए थे। हालाँकि, अभी तक उन्होंने कार्यभार नहीं सँभाला है।
बताते चलें कि श्रीकरणपुर राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में पड़ता है। इस जिले में विधानसभा की कुल 6 सीटें हैं। इनमें से 2 सीटें भाजपा के खाते में आई हैं, जबकि कॉन्ग्रेस के खाते में इस जिले की चार सीटें हो गई हैं। गुरमीत सिंह कुन्नर ने 2018 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार पृथ्वीपाल सिंह और भाजपा के सुरेंद्रपाल सिंह को शिकस्त दी थी। उन्होंने 73,092 वोटों से जीत हासिल की थी।
अब जबकि टीटी चुनाव हार गए हैं तो उनका मंत्री बने रहना मुश्किल है। हालाँकि, नियम ये कहता है कि कोई भी भारतीय नागरिक बिना विधायक बने छह महीने तक मंत्री बने रह सकता है। इस दौरान उसे विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य बनना अनिवार्य होगा। राजस्थान में विधानसभा तो है, लेकिन विधान परिषद नहीं है। ऐसे में विधानसभा चुनाव हारने के बाद उन्हें छह महीने में अपना पद छोड़ना होगा।