हाल ही में एक शब्द सबसे ज्यादा चर्चा का विषय रहा – ‘सेंगोल’। चोल राजवंश के इस प्रतीक को राजदंड के रूप में देखा जाता है, जो शासक को न्याय और धर्म की याद दिलाता रहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के बगल में इसे स्थापित किया। इस दौरान तमिल पुरोहितों का समूह, जिन्हें ‘अधीनम’ कहा जाता है, वो मौजूद रहे। उनकी ही निगरानी में ये पूरा का पूरा कार्यक्रम संपन्न हुआ।
कुछ दिनों पहले वामपंथी अख़बार ‘The Hindu’ ने अपनी एक खबर में दावा किया कि ब्रिटिश इंडिया के अंतिम गवर्नर जनरल माउंटबेटन की ‘सेंगोल’ के साथ कोई तस्वीर ही नहीं है, आज़ादी के समय सत्ता हस्तांतरण के दौरान माउंटबेटन को ‘सेंगोल’ नहीं दिया गया था। ‘अधीनम’ मठ ने इस खबर की निंदा की है। थिरुवावादुथुरई के ‘अधीनम’ के गुरु महासन्निधानम् ने ‘The Hindu’ की खबर को शरारतपूर्ण और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर परोसने वाला बता दिया।
असल में ‘The Hindu’ ने अपनी खबर में ‘अधीनम’ के महंत के हवाले से ही दावा किया था कि माउंटबेटन को कभी ‘सेंगोल’ दिया ही नहीं गया था (नेहरू को देने के लिए)। महंत के हवाले से कहा गया था कि इस कार्यक्रम के संबंध में कोई स्पष्ट सूचना नहीं है। अम्बालवान देसिका परमाचार्य स्वमिगल, जो थिरुवावादुथुरई अधीनम के 24वें महंत हैं, उनके हवाले से ये खबर प्रकाशित की गई थी। इसमें कहा गया था कि ‘सेंगोल’ सीधे नेहरू को ही दिया गया।
अब ‘अधीनम’ ने ‘द हिन्दू’ पर गलत तथ्य पेश करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि 9 जून को आई इस खबर में महंत के बयान को गलत सन्दर्भ में पेश किया गया। साथ ही पूजा के बाद ‘अधीनम’ के साथ ‘द हिन्दू’ के पत्रकार के अशिष्टता से पेश आने की बात भी कही गई है। अब ‘अधीनम’ ने 1947 के सत्ता हस्तांतरण में ‘सेंगोल’ के योगदान पर गौरव जताया है। साथ ही कहा है कि ‘अधीनम’ का एक समूह आमंत्रण के बाद दिल्ली गया था, वहाँ माउंटबेटन को ‘सेंगोल’ दिया गया, फिर उसका गंगाजल से अभिषेक हुआ, फिर उसे पवित्र कर के नेहरू को दिया गया।
A couple of days ago a newspaper stated that there is no image of Mountbatten & no proof of that but they have wrongly understood it. From then & now all know that if we go to see CM or PM, photographers are not allowed inside the PM office & it's what we did too. Some are… pic.twitter.com/Dbzaac5qxe
— ANI (@ANI) June 10, 2023
‘अधीनम’ के अपने आधिकारिक बयान में कहा, “जब ‘द हिन्दू’ ने पूछा कि ‘सेंगोल’ माउंटबेटन को दिया गया था या नहीं, हमने जवाब दिया कि इसे पंडित नेहरू को दिया गया था। ये तो सही बात है। तब के महंत के सेक्रेटरी रहे मसीलमणि पिल्लई ने इस संबंध में स्पष्ट लिखा है। फ़िलहाल वो 96 साल के हैं। उन्होंने लिखा है कि चक्रवर्ती राजगोपालचारी और मद्रास के कलक्टर के कहने पर ऐसा हुआ था। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिल संस्कृति को सम्मान दिया गया।”