Sunday, November 17, 2024
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कॉन्ग्रेस ने जानबूझकर मालेगाँव ब्लास्ट में कर्नल पुरोहित को देशद्रोही बनाया, हिंदू आतंक का नैरेटिव गढा: रिपोर्ट से खुलासा, CWG घोटाले से ध्यान भटकाना था उद्देश्य

पुरोहित को फँसाने को लेकर कर्नल बख्शी ने कहा, "NIA के चार्जशीट में कहा गया है कि महाराष्ट्र ATS के एक अधिकारी आया है और इंटेलिजेंस JCO के पास आया और कहा कि उसे उस घर को दिखाया जाए। उसके बाद वे घर में जाते हैं और जमीन पर कुछ रगड़ने लगता है और अगले दिन फोरेंसिक टीम आती है। इस तरह RDX रखा गया था। NIA ने भी कहा कि ATS के लोगों ने फँसाने के लिए RDX प्लांट किया था।"

कॉन्ग्रेस (UPA) की नेतृत्व वाली केंद्र की तत्कालीन UPA सरकार ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित (Lt. Colonel Shrikant Prasad Purohit) को जानबूझकर फँसाया था, जबकि सरकार को जानकारी थी कि वह ड्यूटी पर थे और खुफिया जानकारी जुटा रहे थे। हाल ही में सामने आए खुफिया दस्तावेजों से इसका खुलासा हुआ है।

बता दें कि मालेगांव विस्फोट मामले में 2008 में गिरफ्तार किए गए लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को कुल 8 साल 9 महीने 22 दिन की जेल हुई थी। उस समय की सरकार और मीडिया ने ‘हिंदू आतंकवाद’ की विचार को स्थापित करने के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को देशद्रोही बताया।

रिपब्लिक टीवी को इससे संंबंधित सैन्य खुफिया महानिदेशालय द्वारा लिखित आधिकारिक गुप्त सेना फ़ाइल नंबर ए/31687/पुरोहित/एमआई-9 नाम का दस्तावेज मिला है। यह पत्र दिसंबर 2017 में दक्षिणी कमान संपर्क इकाई के आवेदन डिटैचमेंट 3 के जवाब में लिखा गया था। इसे कॉन्ग्रेस सरकार के साथ बातचीत का संदर्भ देते हुए कथित तौर पर सेना प्रमुख को भेजा गया था।

रिपोर्ट के अनुसार, पत्र के बिंदु 2 में डीजीएमआई ने पूर्व एटीएस प्रमुख राकेश मारिया द्वारा भेजे गए एक प्रश्न का संदर्भ दिया है, जिसमें सेना से लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित से जुड़े मामले में संबंधित किसी भी बैठक और आतंकवादी पर साझा या भेजे गए इनपुट और पत्रों का विवरण माँगा गया है। राकेश मारिया का यह सवाल राष्ट्रमंडल खेलों से संबंधित घोटाले को लेकर सुरेश कलमाड़ी से पूछताछ के नौ दिन बाद 24 मार्च 2011 को आया है। रिपब्लिक टीवी का दावा है कि यह ऐसे समय में किया गया था, जब कॉन्ग्रेस को ध्यान भटकाने की जरूरत थी।

समाचार रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पत्र के तीसरे बिंदु से पता चलता है कि डीजीएमआई ने मारिया को 5 दिनों के बाद क्या प्रतिक्रिया दी। प्रतिक्रिया कथित तौर पर अधूरी और सेना के अन्य कार्यालयों से किसी भी परिणामी प्रतिक्रिया के बिना थी। कथित तौर पर प्रतिक्रिया थी, “लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के मामले में किसी भी आतंकवादी से संबंधित इनपुट या बैठकों के बारे में जानकारी से संबंधित कोई भी आधिकारिक कम्युनिकेशन कार्यालय के पास उपलब्ध नहीं है।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉन्ग्रेस द्वारा ‘नो इनपुट अवेलेबल’ शब्द का इस्तेमाल सत्य के रूप में किया गया था। बाद में डीजीएमआई ने अधिक इनपुट के लिए परिणामी कार्यालयों को लिखा, लेकिन सरकार ने कोई फॉलोअप कार्रवाई नहीं की।

पेज 2 पर 4 लाइनें बताती हैं कि पूरा कॉन्ग्रेस नेतृत्व कर्नल पुरोहित के बारे में झूठ बोल रहा था। सेना के पत्र की लाइन 1 में कथित तौर पर निष्कर्ष निकाला गया है कि ‘लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित एक सोर्स नेटवर्क का संचालन कर रहे थे, जिसके माध्यम से उन्होंने खुफिया जानकारी प्राप्त की थी’। यह उस बात के विपरीत है, जिसे हमें यह मानने के लिए प्रेरित किया गया था कि ‘कोई इनपुट नहीं’ था।

लाइन 2 में आगे कहा गया है कि सेना के पत्र का निष्कर्ष है कि ‘लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के उपयुक्त स्तर के वरिष्ठों को सोर्स द्वारा प्रदान की गई जानकारी के बारे में सूचित किया गया था’। हालाँकि, कॉन्ग्रेस ने कभी भी यह खुलासा नहीं किया कि सुधाकर चतुर्वेदी, जिन्हें इस मामले में एक आरोपित के रूप में नामित किया गया था, वे वास्तव में एक ‘सोर्स’ थे। इन्होंने सेना के लिए काम किया था।

दस्तावेज़ के बिंदु 3A से पता चलता है कि UPA सरकार की सुधाकर चतुर्वेदी से संबंधित उल्लेखित साक्ष्य तक पहुँच थी। सेना के गोपनीय दस्तावेज में लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित की गिरफ्तारी से 10 महीने पहले जनवरी 2008 में प्राप्त एक रिपोर्ट के बारे में विस्तार से बताया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘सूत्रों में से एक श्री सुधाकर चतुर्वेदी थे’ जिन्हें एक सक्रिय सोर्स के रूप में पेश किया गया था। इसमें कहा गया है कि सुधाकर चतुर्वेदी वास्तव में ‘अपनी जिम्मेदारी वाले क्षेत्र में राजनीतिक और धार्मिक गतिविधियों की जानकारी दे रहे थे।’ यह सब इस महीने डीडीजीएमआई द्वारा भेजे गए सेना के पत्र में लिखित है।

सुधाकर चतुर्वेदी को 2017 में लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित की रिहाई के एक महीने बाद जमानत दी गई थी। इससे पहले गृह मंत्रालय के पूर्व अवर सचिव आरवीएस मणि ने खुलासा किया था कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित कट्टरपंथ में शामिल समूहों की कमर तोड़ रहे थे और इसलिए उन्हें जानबूझकर यूपीए सरकार द्वारा फँसाया गया था।

कर्नल पुरोहित के दोस्त हनी बख्शी का बयान

सेना के टेक्निकल सपोर्ट डिविजन (TSD) के पूर्व कमांडिंग ऑफिसर और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के दोस्त कर्नल हनी बख्शी ने इस मामले में खुलासा किया है। उन्होंने कहा, “मामले की जानकारी मिलते ही मैं मुंबई गया और पुरोहित से कहा कि प्रसाद तुने गलत नहीं किया है ना तो ईश्वर में विश्वास रख और तू निकल जाएगा इससे। पुरोहित के एक सीनियर अधिकारी ने कोर्ट में कहा था कि पुरोहित जो भी कर रहे हैं, उसकी मुझे ब्रीफिंग देते हैं।”

कर्नल बख्शी ने ANI के एडिटर स्मिता प्रकाश के साथ बातचीत में कहा, “पुरोहित अप्रत्यक्ष रूप से 2003-04 मेरे अधीन थे। वह तीसरी पीढ़ी के सैन्य अधिकारी थे, जिस पर आप गर्व कर सकते हैं। वे बहुत राष्ट्रवादी थे। उनके खिलाफ सेना ने भी इन्क्वॉयरी की थी, उसमें कुछ नहीं मिला था। उस दौरान जनरल बिपिन रावत सामने आए और कहा था कि इस अधिकारी सारे सपोर्ट दिए जाएँ, जिसकी आवश्यकता हो। जनरल रावत बहुत फेयर आदमी थे।”

पुरोहित को फँसाने को लेकर कर्नल बख्शी ने कहा, “NIA के चार्जशीट में कहा गया है कि महाराष्ट्र ATS के एक अधिकारी आया है और इंटेलिजेंस JCO के पास आया और कहा कि उसे उस घर को दिखाया जाए। उसके बाद वे घर में जाते हैं और जमीन पर कुछ रगड़ने लगता है और अगले दिन फोरेंसिक टीम आती है। इस तरह RDX रखा गया था। NIA ने भी कहा कि ATS के लोगों ने फँसाने के लिए RDX प्लांट किया था।”

उस दौरान कर्नल पुरोहित को सेना द्वारा सपोर्ट नहीं करने पर कर्नल बख्शी ने कहा, “अगर एक बार नैरेटिव क्रिएट कर दिया जाए तो उसे…. ये एकदम से शॉकर के रूप में आया था कि यार, पुरोहित ने ऐसा कर दिया। उन्होंने कहा कि पुरोहित कवर्ट ऑपरेशन पर थे और इसकी बुक में एंट्री नहीं होती। इसलिए यह एक ऐसा ऑपरेशन था, जो होकर भी नहीं था।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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