उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद राज्य में नामी बदमाशों को घर से निकाल निकाल कर उनके अंजाम तक पहुँचाने वाली योगी सरकार इस समय विरोधी पार्टियों के निशाने पर है। लगातार सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर योगी सरकार ने बीते 5 सालों में किया ही क्या है। जनसभाओं में दावे हो रहे हैं कि वर्तमान की योगी सरकार ने प्रदेश की कानून व्यवस्था को बदहाल कर दिया और यदि दोबारा राज्य में सुशासन चाहिए तो अखिलेश ‘बबुआ’ या मायवती ‘बुआ’ को चुनकर लाना होगा।
अब उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था बदहाल हुई है या बहाल- ये ऑपइंडिया आपको अपनी पिछली रिपोर्ट में बता ही चुका है। आज हम इस रिपोर्ट में आपको बताने जा रहे हैं 2017 से पहले का उत्तरप्रदेश…। जिसे लेकर मायावती कहती हैं कि उनकी सरकार रहते कभी कोई दंगा हुआ ही नहीं और अखिलेश कहते हैं कि उनकी सरकार में राज्य की सबसे बेहतरीन कानून व्यवस्था थी।
इन दोनों नेताओं की कही बातों में कितनी सच्चाई है, इसके लिए जरूरी है कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को याद किया जाए ताकि पता चले कि आज सालों बाद जो बातें कही जा रही हैं क्या उनका क्या औचित्य है!
मायावती के कार्यकाल में हिंसा की घटनाएँ
पहले बात मायावती से शुरू करते हैं। 13 मार्च 2007 को मायावती ने यूपी की मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी और उनका कार्यकाल 6 मार्च 2012 तक चला था। जहाँ मायावती कहती हैं कि उनके कार्यकाल में दंगे हुए ही नहीं वहीं NCRB के आँकड़े बताते हैं कि इस दौरान हिंसा की हजारों घटनाएँ हुई थीं। तमाम झड़पों से लेकर राजनीतिक हिंसा के मामले मायावती के कार्यकाल पर वो धब्बा है जिन्हें वो चाहकर भी नहीं धो सकती। रिपोर्ट्स दावा करती हैं कि मायावती के कार्यकाल में केवल दंगों और झड़पों की 4000 से ज्यादा घटनाएँ सालाना हुई थीं।
इनमें जो प्रमुख घटनाएँ थी जिनका जिक्र आज भी मीडिया में पढ़ने को मिलता है उनमें साल 2007 का वो दंगा शामिल है जिसकी शुरुआत एक ट्रक दुर्घटना से हुई थी। उस समय कुछ मुसलमान ट्रक टकराने से मारे गए थे। लेकिन मुस्लिम समुदाय के अन्य लोगों ने अपना गुस्सा उतारने के लिए इतना हाहाकार मचाया कि ताजमहल के अंदर पर्यटकों को बंद करना पड़ा था और इलाके में कर्फ्यू लग गया था। फिर, साल 2008 में गोरखपुर में तत्कालीन भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के काफिले पर आजमगढ़ से उपद्रवियों ने हमला किया था। इस घटना ने हिंसा को तूल दिया था और घटना में एक की मौत व कई घायल हुए थे।
साल 2010 में ईद ए मिलाद के जुलूस में बरेली में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच दंगा हुआ था। 2 मार्च को शुरू हुई हिंसा ने कई इलाकों में अपना असर दिखाया और दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे पर डंडे चलाते व पत्थर फेंकते दिखे थे। इस दौरान दुकानें जलीं थीं। लोगों के घर टूटे थीं। स्थिति को काबू करने के लिए 2010 में भी कर्फ्यू लगाया गया था। साल 2011 में भूमि अधिग्रहण का विरोध करते हुए ज्यादा मुआवाजे की माँग करने वाले किसानों की पुलिस अधिकारियों से झड़प हुई थी। उस समय भी किसानों ने पत्थरों और लाठियों से पुलिस को मारा था। इस पूरी घटना में दो पुलिकर्मी और किसान की मौत हो गई थी।
अखिलेश यादव के कार्यकाल में हुआ अपराध में इजाफा
अब बात अखिलेश यादव के कार्यकाल की करते हैं। साल 2012 से 2016 तक अखिलेश यादव की सरकार थी। उनके मुताबिक ये कार्यकाल सबसे साफ सुथरा था। प्रदेश विकास की राह पर था, दंगाई कंट्रोल में थे और कानून व्यवस्था सबसे सर्वश्रेष्ठ थी। हालाँकि एनसीआरबी के आँकड़े अखिलेश के दावों से कुछ हैं। आँकड़ों की रिपोर्ट के अनुसार 2007 से 2012 में रही मायावती सरकार की तुलना में अखिलेश सरकार में क्राइम का दर 16 फीसद बढ़ा। बसपा शासन में यूपी में औसतन 5783 आपराधिक घटनाएँ हो रही थीं और अखिलेश सरकार में ये नंबर पहुँचे 6433।
दिलचस्प बात ये है कि जिस तरह आज अखिलेश यादव क्राइम के आँकड़ों को खोज-खोजकर योगी सरकार को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। वहीं अखिलेश यादव सपा सरकार के समय बताते थे कि ये आँकड़े इसलिए इतने आ रहे हैं क्योंकि सपा सरकार उन्हें दर्ज करती है। पहले की सरकार में ऐसा होता ही नहीं था इसलिए आँकड़े भी कम थे।
ऐसे ही दंगों की बातें करें तो बसपा सरकार में 22347 दंगे रिकॉर्ड किए गए थे लेकिन सपा सरकार में ये आँकड़े बढ़कर 25007 के लगभग हो गए। सबसे ज्यादा दंगे आगरा, गोरखपुर और आजमगढ़ में रिकॉर्ड हुए थे। इनमें से कुछ दंगों और विवादित की चर्चा हम अपनी रिपोर्ट में भी करेंगे।
रिपोर्ट्स बताती हैं कि 2012 में अखिलेश सरकार आने के बाद यूपी 227 दंगे हुए थे। इसके बाद ये संख्या घटती-बढ़ती रहीं। 2013 में फिर प्रदेश ने मुजफ्फरनगर जैसे दंगों को झेला। लेकिन पाँच साल के कार्यकाल में कोई ये नहीं कह पाया कि अखिलेश सरकार ने दंगों को, हिंसा को, झड़पों को राज्य से खत्म कर दिया। अजीब बात ये थी कि अखिलेश कार्यकाल में हुए दंगे सिर्फ धार्मिक नहीं थे। कहीं छात्र झड़प हो रही थी और कहीं जातिगत संघर्ष। पुलिस इतनी बेबस थी कि जब वो मथुरा में अतिक्रमण हटाने के लिए गई तो पुलिस टीम पर हमला हुआ। नतीजन वहाँ एसपी और एसएचओ मारे गए। वहीं 23 पुलिसकर्मी अस्पताल में भर्ती हुए थे। बताया जाता है कि जिस रामवृक्ष यादव ने जवाहर पार्क में कब्जा किया हुआ ता उसे सपा नेताओं का संरक्षण प्राप्त था।
हाथरस मामले का इस्तेमाल आज भी योगी सरकार को घेरने के लिए किया जाता है। लेकिन शायद अखिलेश सरकार भूल गई है कि उस समय उनकी ही सत्ता थी जब बदायूं में दो नाबालिग लड़कियों का रेप के बाद मर्डर हुआ और वो पेड़ पर लटका दी गईं। इस मामले में भी आरोपित सपा सांसद के करीबी थे। मगर कार्रवाई कोई नहीं हुई। फिर बुलंदशहर में माँ-बेटी से रेप का मामला। 12 लोगों ने माँ-बेटी का रेप किया था। लेकिन उस समय न अखिलेश कानून व्यवस्था की दुआई देने आए और न ही उनके पिता मुलायम यादव जो रेप को जस्टिफाई करने के लिए कहते थे कि लड़के हैं उनसे गलती हो जाती है।
शाहजहाँ पुर में पत्रकार जगेंद्र का वो चेहरा याद करिए। उन्हें जिंदा जलाया गया था। मरते-मरते उन्होंने सपा मंत्री का नाम लिया था कि राममूर्ति वर्मा के कहने पर पुलिस ने उन्हें जला डाला। हालाँकि इस मामले में सपा नेता और जलाने वाले आरोपितों के विरुद्ध क्या कार्रवाई हुई, ये अब भी नामालूम है। इन सब घटनाओं के अलावा जो समाजवादी पार्टी आज आपके सामने कानून व्यवस्था सुधारने के लिए नए नए दावे कर रही है, उस सपा को लेकर साल 2018 में खबर आई थी कि वो सत्ता में रहते हुए 2007 में हुए कचहरी सीरियल ब्लासट मामले के आरोपितों को छुड़ाने का प्रयास कर रही थी।
अब बात योगी आदित्यनाथ सरकार की
सपा-बसपा के कार्यकाल में मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद जैसे गुंडों का पूरे प्रदेश में खौफ हुआ करता था। आज यही गुंडे जेल की सलाखों के पीछे हैं वरना कहीं छिपकर बैठे हैं। जिस पुलिस पर सपा और बसपा सरकार में हमले होते थे उसी पुलिस के सामने अब गुंडे सामने आने से रोते हैं। आए दिन योगी सरकार के नेतृत्व में यूपी पुलिस नए मुकाम हासिल कर रही है।
यूपी पुलिस ने अकेले 2021 में विभिन्न मुठभेड़ों में 26 कुख्यात ढेर कर दिए हैं। 2020 की तुलना में पंजीकृत मुकदमों में 4.4% की कमी आई। डकैती की घटनाओं में 40%, लूट की घटनाओं में 23%, बलात्कार के मामलों में 17% और हत्या की घटनाओं में 11% की कमी आई।
अकेले 2021 में विभिन्न मुठभेड़ों में 3910 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया। इतना ही नहीं, गैंगस्टर एक्ट के तहत भी 9933 अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजा गया। 1012 करोड़ रुपए की संपत्ति को कबत किया गया। पूरे साढ़े 4 वर्षों की बात करें तो भाजपा सरकार में अब तक अपराधियों के 1900 करोड़ रुपए के साम्राज्य को ध्वस्त किया गया है। आलम ये है कि उत्तर प्रदेश में बदमाश खुद तख्ती लटका कर थाने में पहुँचते हैं और कहते हैं कि जेल में ले चलो।