मोदी सरकार को दमनकारी और मोदी को ‘फ़ासिस्ट’ कहने वालों को न ही मोदी या भाजपा के बारे में कुछ पता है और न ही फ़ासिस्ट के मायने पता हैं। हाल ही में एक ट्रायल कोर्ट ने 49 सेलेब्रिटियों पर जो केस करने का निर्देश दिया, उसका ठीकरा भी मोदी के ही सर फोड़ दिया गया। लेकिन विरोध करने वालों को लेकर मोदी का नज़रिया क्या है, इस पर राय कायम करने के पहले दो ऐसी घटनाओं की जानकारी ले लेना ज़रूरी है, जब कट्टरपंथियों ने मोदी को जान से मारने की धमकी दी, लेकिन नरेंद्र मोदी ने उनके गिरफ्तार होने के बाद उन्हें माफ़ कर दिया ताकि उनकी ज़िंदगी न खराब हो। यही नहीं, उनमें से एक को तो नौकरी से निकाले जाने पर तत्कालीन गुजरात सीएम ने आरोपित को दोबारा नौकरी दिए जाने की सिफ़ारिश करते हुए खुद पत्र लिखा।
‘मैंने उसे नई ज़िंदगी दी’
2002 के दिसंबर में तब गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी ने उन्हें मारने की धमकी भरा ईमेल लिखने वाले एक दूसरे समुदाय के युवक को माफ़ी दी थी। उस समय इस खबर को रिपोर्ट करने वाले Rediff.com के अनुसार, “गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र राज्य सरकार से कहा कि वह रज़ाक नाज़िर कासिम के खिलाफ सभी मामले बंद कर दें। उसे ATS ने गिरफ्तार किया था, जब उसने उन्हें एक ‘धमकी भरा’ ईमेल भेजा था। मुख्यमंत्री (महाराष्ट्र के तत्कालीन सीएम विलास राव देशमुख) का कहना है कि जाँच एजेंसी के पास रज़ाक को पाँच साल के लिए जेल भेजने और 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं।“ यह राज्य में साइबर क्राइम का पहला मामला था। लेकिन मोदी ने उसे न केवल जाने दिया, बल्कि इसे रज़ाक को दी गई एक नई ज़िंदगी भी बताया। मोदी ने तब कहा था, “इससे उसकी ज़िंदगी बर्बाद हो जाती। चूँकि उसने धमकी मेरी जान को लेकर दी थी, इसलिए मैंने उसे माफ़ कर एक नई ज़िंदगी देने का निर्णय लिया है।”
रज़ाक मुंबई के अँधेरी स्थित एक निजी आईटी फर्म में प्रोजेक्ट लीडर था। कंपनी ने उसे इस मामले के बाद नौकरी से निकाल दिया था। मोदी ने उसे वापस नौकरी पर रखने की गुज़ारिश भी आईटी फर्म से की थी। यही नहीं, 2006 में भी उन्होंने एक दूसरे मजहब के युवक को ऐसा ही एक पत्र लिखने के लिए माफ़ी दे दी थी, क्योंकि उन्हें लगा था कि लिखने वाले लड़के ने बिना सोचे-समझे भूल कर दी थी, जिसके लिए उसने अपने पश्चाताप का प्रदर्शन किया था।
मोदी ही नहीं, पूरी भाजपा माफ़ी-मोड में
और ऐसा भी नहीं है कि यह उदारता की प्रवृत्ति केवल नरेंद्र मोदी की है। अमित शाह को सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में बदनाम किया गया, और उनके खिलाफ़ जस्टिस लोया की हत्या कराने का प्रोपेगंडा कारवाँ पत्रिका ने रचा। The Wire ने उनके बेटे जय शाह तक को नहीं छोड़ा, और भ्रष्टाचार का झूठा आरोप मढ़ दिया। अमित शाह और मोदी पर 2014 के लोकसभा चुनावों के कुछ ही समय पहले एक लड़की की पुलिसिया अमले से ‘स्टॉकिंग’ कराने को लेकर ‘स्नूपगेट’ कांड नामक प्रपंच की रचना तक की गई। लेकिन इस मामले पर न मोदी कुछ बोले न शाह।
ऐसे में यह सवाल उठाना लाज़मी है कि मोदी-शाह, और पूरी भाजपा ही, फ़ासिस्ट हैं या अति-उदारवादी?
Note: इसके लेखक “गुजरात दंगे: द ट्रू स्टोरी” पुस्तक के लेखक हैं। इस किताब में 2002 गुजरात दंगों – गोधरा और उसके बाद जो कुछ भी हुआ, उसके बारे में सभी विवरण हैं। www.gujaratriots.com के ऐडमिन भी हैं लेखक। इस लेख को आप विस्तार में यहाँ पढ़ सकते हैं।