भ्रष्टाचार के आरोपों में तिहाड़ जेल में बंद पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम सोमवार को 74 वर्ष के हो गए। आज भले चिदंबरम हर बात पर मोदी सरकार को कोसते हों पर किसी वक्त हिंदी को लेकर उन्होंने ठीक वैसी ही लाइन ली थी, जैसा इस बार हिंदी दिवस पर अमित शाह ने कहा था। दिलचस्प यह है कि जब चिदंबरम ने हिंदी की पैरवी की थी, तब वे भी केन्द्र में गृह मंत्री ही हुआ करते थे। अभी शाह के बयान से बिफरी डीएमके भी तब उनके साथ सरकार में शामिल थी।
शनिवार (सितम्बर 14, 2019) को हिंदी दिवस पर अमित शाह ने कहा था कि देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा होने के कारण हिंदी राष्ट्र की एकता बनाने रखने में अहम योगदान दे सकती है। हालाँकि, शाह ने कहा कि भारत में बोली जाने वाली सभी भाषाओं का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन हिंदी के रूप में एक ऐसी भाषा की ज़रूरत है जो वैश्विक स्तर पर देश की पहचान बने। उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा कि वे अपनी मातृभाषा का इस्तेमाल करें, लेकिन हिंदी का इस्तेमाल कर सरदार और बापू के सपने को भी साकार करें।
अब आते हैं कॉन्ग्रेस नेता पी चिदंबरम के करीब 9 साल पहले हिंदी को लेकर दिए बयान पर। इसका वीडियो वायरल हो रहा है। यूपीए सरकार में गृह मंत्री रहते चिदंबरम ने हिंदी की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए हिंदी में भाषण दिया था। उन्होंने कहा था कि वो राजभाषा हिंदी को पूरे देश की भाषण बनाने की आशा रखते हैं। साथ ही उन्होंने तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को सम्बोधित करते हुए कहा था कि हिंदी को पूरे देश की भाषा के रूप में विकसित करने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए। देखें वीडियो:
“हिंदी” भाषा पर कांग्रेस पार्टी का स्टैंड। अब अपने सहयोगी दलों को भी बता दें। pic.twitter.com/zYuN9rZlEy
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) September 16, 2019
अब उन्हीं पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम ‘हिंदी थोपे जाने’ की बात करते हैं और उनकी पार्टी के गठबंधन साथी स्टालिन हिंदी के ख़िलाफ़ बयान देते हैं। स्टालिन की डीएमके भी उस समय कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन में थी, जब चिदंबरम ने 2010 में हिंदी को पूरे देश की भाषा के रूप में विकसित करने की बात कही थी। तमिल अभिनेता कमल हासन कहते हैं कि कोई भी ‘शाह, सुल्तान या सम्राट’ हिंदी को पूरे देश की भाषा नहीं बना सकता। चिदंबरम की ही पार्टी के नेता सिद्दारमैया हिंदी के अमित शाह के बयान को एकता तोड़ने वाला बताते हैं।
चिदंबरम ने तब सरकारी दफ़्तरों में अधिकारियों के बीच पत्र-व्यवहार व अन्य संचार माध्यमों में भी हिंदी का इस्तेमाल किए जाने की पैरवी की थी। आज उनके बटे, उनकी पार्टी और उनके गठबंधन साथी शाह के बयान के ख़िलाफ़ ज़हर उगल रहे हैं। इससे तो यही माना जा सकता है कि सत्ता में रहने और न रहने पर कॉन्ग्रेस नेताओं की सोच समान विषय को लेकर भिन्न रहती है। या फिर यह भी हो सकता है कि अंधविरोध के इस दौर में वह ये नहीं देखना चाहते कि मोदी-शाह सही बोल रहे या ग़लत, सिर्फ़ विरोध करना जानते हैं।