14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकी हमले में 40 सीआरपीएफ जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। इसके बाद भारत सरकार ने चुप रहना उचित नहीं समझा और पाकिस्तान को उसी की भाषा में करारा जवाब दिया गया। चूँकि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन ‘जैश-ए-मुहम्मद’ ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी, भारत ने उसके ठिकानों को तबाह कर सैकड़ों आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। भारतीय वायु सेना द्वारा की गई बहुचर्चित ‘एयर स्ट्राइक’ के बाद पाकिस्तान ने भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया, जिसका उसे कड़ा प्रत्युत्तर दिया गया।
भारतीय मीडिया से लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक- सभी की इस पूरे घटनक्रम पर पैनी नज़र थी क्योंकि दक्षिण एशिया में युद्ध के बादल मँडराने लगे थे। वैसे स्थिति अब भी तनावपूर्ण है लेकिन बड़ी चालाकी से नैरेटिव बदलने की कोशिश की जा रही है। आतंक की समस्या को कश्मीर समस्या से जबरदस्ती जोड़ने की कोशिश इसी का एक हिस्सा है, ताकि पाकिस्तान को जिम्मेदार न ठहराया जा सके। हमने देखा कि कैसे भारतीय पत्रकारों और लिबरल्स के एक समूह ने इमरान ख़ान को शांति के देवता के रूप में प्रचारित किया। इसी क्रम में बीबीसी ने भी कुछ ऐसा किया है, जो उसके पूर्वाग्रह से भरे पक्षतापूर्ण रवैये को प्रदर्शित करता है।
बीबीसी ने क्या किया?
बीबीसी ने इस पूरे घटनाक्रम पर कश्मीर की जनता की राय जानने और उसे प्रसारित करने के लिए एक श्रृंखला बनाई, जिसमें ऐसे लोगों की राय ली गई जो लाइन ऑफ कण्ट्रोल (LOC) के पास रहते हैं। ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (BBC) की इस श्रृंखला में उन कश्मीरियों की राय को प्रदर्शित किया गया, जो पाकिस्तान की पैरवी करते हैं या उसे पाक-साफ बताते हैं। अगर आपको नहीं पता है तो यह जानना ज़रूरी है कि बीबीसी ने पाकिस्तानी मुस्लिमों द्वारा बच्चों के यौन शोषण को ढकने का पूरा प्रयास किया था। इसके अलावा ऑपइंडिया द्वारा बीबीसी की फेक रिसर्च का भी पर्दाफाश किया गया था।
इस श्रृंखला में दो लोगों की राय प्रसारित की गई, जो समान धर्म से ताल्लुक रखते हैं। हालांकि, शुरुआत में बीबीसी ने कश्मीर मसले और इस से जुड़े धार्मिक संघर्षों का उल्लेख तो किया लेकिन बाद में उन्होंने एक साज़िश के तहत अपना एजेंडा चलाना शुरू कर दिया।
चैनल पर प्रसारित हुए इस प्रोग्राम के दौरान पहले व्यक्ति ने कहा कि भारत और पाकिस्तान ने कश्मीर को खेल का मैदान बना डाला है। बकौल अनजान शख्स, इस प्रक्रिया में महिलाओं की जानें ली जा रही हैं और बच्चों को मारा जा रहा है। उसने कहा कि पाकिस्तान ने भारत द्वारा की गई ‘एयर स्ट्राइक’ को फेक बता दिया है। साथ ही, उसने भारत-पाकिस्तान तनाव को भी फेक करार दिया।
दूसरे व्यक्ति की पहचान हंदवारा के शौकत के रूप में कराइ गई। उसने कहा कि वह “कश्मीरियों की आम धारणा को उजागर करना” चाहता था। उसने यह भी कहा कि भारत ने “बदला” के रूप में जवाबी कार्रवाई (एयर स्ट्राइक) की और यह संघर्ष का समाधान नहीं था। उसने पूरे भारत-पाकिस्तान तनाव को ‘मोदी स्टंट’ करार दिया। अव्वल तो यह कि उसने दावा किया कि लगभग सभी कश्मीरियों की यही राय है।
अर्थात यह, कि इसे कश्मीरियों के बीच आम धारणा बता कर पेश किया गया। उस व्यक्ति ने इंडो-पाक तनाव को नकारते हुए कहा कि युद्ध जैसी कोई स्थिति नहीं है। साथ ही, उसने भारत और पाकिस्तान- दोनों ही देशों को ‘अति राष्ट्रवाद (Jingoism)’ को काबू में करने की सलाह दी।
बीबीसी ने दूसरे पक्ष की राय को कोई महत्व नहीं दिया
यह स्पष्ट है कि बीबीसी ने केवल दो लोगों की राय को साझा किया और एक एजेंडे के तहत मोदी विरोधी और भारत विरोधी बयानों को आम धारणा बता कर प्रसारित किया। अब, हमें एक और बात यह पता चली है कि बीबीसी ने जम्मू-कश्मीर की एक मोदी समर्थक महिला से भी बात की, लेकिन उनकी राय को प्रसारित नहीं किया। बीबीसी ने उस महिला से ट्विटर के अलावा फोन से भी बात किया। प्रत्येक अवसर पर, ब्रिटिश समाचार एजेंसी ने काफ़ी समय तक उनसे बात की, पूरे मामले पर उनकी राय के बारे में विस्तार से जाना।
डॉक्टर मोनिका लंगेह जम्मू में रहती हैं और एलओसी के पास राजौरी में उनके कुछ रिश्तेदार रहते हैं। उनकी राय बीबीसी चैनल पर प्रसारित अन्य व्यक्तियों की राय से अलग थी। उनका मानना था कि अगर पाकिस्तान अपनी ज़मीन पर स्थित आतंकी संगठनों पर लगाम नहीं लगाता है तो युद्ध ही एकमात्र विकल्प है। उन्होंने भारत और भारतीय सेना की तारीफ़ की, जो अन्य दोनों व्यक्तियों की राय से अलग थी। क्षेत्र में समस्याओं के लिए उन्होंने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया था।
आतंकवाद पर बात करते हुए डॉक्टर मोनिका ने याद दिलाया कि जम्मू-कश्मीर के 60% हिस्से यानी लद्दाख में आतंकवाद जैसी कोई समस्या नहीं है। इसी तरह उन्होंने जम्मू की बात करते हुए कहा कि राज्य के इस 26% क्षेत्र में भी आतंकवाद मुद्दा नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवाद की समस्या सिर्फ़ कश्मीर में है और वह भी उसके एक छोटे हिस्से तक सीमित है।
अफ़सोस यह कि बीबीसी ने उनकी राय को तवज्जोह नहीं दी और उसे प्रसारित नहीं किया। अगर चैनल चाहता तो उनकी राय को प्रसारित कर यह बता सकता था कि भारतीय कश्मीर समस्या के बारे में क्या सोचते हैं। लेकिन, बीबीसी ने अपने प्रोपगैंडा को चोट पहुँचाना उचित नहीं समझा और केवल उन्हीं की राय को प्रसारित किया, जो उसके एजेंडे में फिट बैठते थे।
यह कहा जा सकता है कि बीबीसी ने डॉक्टर लंगेह की राय को उनकी धार्मिक भावनाओं के कारण प्रसारित नहीं किया। बीबीसी ने उनसे उनकी धार्मिक आस्था के बारे में भी पूरी जानकारी ली थी। इस से यह साफ़ हो जाता है कि सिर्फ़ एक पक्ष की राय को प्रसारित करने वाले बीबीसी ने डॉक्टर लंगेह की राय को उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि के कारण प्रसारित नहीं किया।
(यह खबर हमारी अंग्रेजी वेबसाइट (OpIndia.com) पर प्रकाशित के भट्टाचार्जी के लेख का अंग्रेजी अनुवाद है)