मोदी सरकार ने सबका साथ, सबका विकास के जिस नारे के साथ देश की जनता की सेवा का प्रण लिया था, वह लगातार उनके विज़न और कार्यप्रणाली में नज़र आता रहा। पिछले 72 साल के कामों पर अगर नज़र दौड़ाई जाए तो पिछले पाँच सालों में देश के सर्वाधिक वंचित वर्गों के लिए ज़मीनी स्तर पर मोदी के कार्यों ने उन सभी को लाभ पहुँचाया जो अभी तक सत्ताधारियों के लिए सिर्फ़ वोट बैंक बने हुए थे। जिन्हें कई सरकारों ने सिर्फ़ सब्ज़बाग दिखाए।
जिन बुनियादी मुद्दों को लोग काम करने लायक भी नहीं समझते थें। उन पर मोदी सरकार ने विशेष ध्यान देते हुए सबसे पहले स्वच्छता अभियान शुरू किया जिससे न सिर्फ़ साफ़-सफ़ाई के प्रति जागरूगता बढ़ी बल्कि सफ़ाई कर्मियों का भी जीवन स्तर सुधरा, उन्हें सुविधाएँ दी गई, सफ़ाई के तौर-तरीक़ों का भी उन्नयन किया गया।
आज संसद में अंतरिम बजट 2019-20 पेश करते हुए कार्यवाहक वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने पुनः उस संकल्प को दोहराते हुए घुमन्तू जातियों के लिए योजनाओं की घोषणा करते हुए कहा कि सरकार देश के सबसे वंचित वर्ग तक पहुँचने के लिए प्रतिबद्ध है। इसमें, गैर-अधिसूचित, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू समुदायों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
घुमन्तू जातियाँ ऐसा वर्ग है जिनके बारे में कोई भी आधिकारिक आँकड़ा मौज़ूद नहीं था। बता दें कि घुमंतू और अर्ध-घुमंतू समुदाय जीवन यापन के लिए एक जगह से दूसरी जगह भटकते रहते हैं। मोदी सरकार की वंचितों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण देते हुए आज वित्तमंत्री गोयल ने याद दिलाया कि इन समुदायों तक विकास व कल्याण कार्यक्रम नहीं पहुँच पा रहे थे और ये निरंतर विकास कार्यक्रमों के लाभ से छूट रहे थे।
सबसे पहले रेनके आयोग और आईडेट आयोग ने इन समुदायों की पहचान का काम किया और इन समुदायों की सूची बनाई है।
पीयूष गोयल ने कहा कि नीति आयोग के तहत एक समिति का गठन किया जाएगा जिसका काम गैर-अधिसूचित, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू को औपचारिक रूप से वर्गीकृत करना होगा।
पीयूष गोयल ने मोदी सरकार की मंशा को स्पष्ट करते हुए कहा कि सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत एक कल्याण विकास बोर्ड का भी गठन किया जाएगा। जिसका उद्देश्य गैर-अधिसूचित, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू समुदायों के कल्याण और विकास कार्यक्रमों को कार्यान्वित करना होगा। बोर्ड ऐसे समुदायों तक पहुँच के लिए विशेष रणनीतियाँ बनाना और कार्यान्वित करना भी सुनिश्चित करेगा।
जिस तरह से मोदी सरकार ऐसे वर्गों के प्रति अपना विज़न प्रस्तुत कर रही है उससे आस बँधी है। इससे पहले जिस तरह से मोदी सरकार ने धुंएँ में काम करती माँओं को राहत देते हुए उज्जवला योजना के माध्यम से ग़रीब से ग़रीब और वंचित वर्गों तक मुफ़्त गैस सिलिंडर कनेक्शन और कम दाम पर उनका वितरण सुनिश्चित कर लाभ पहुँचाया वो भी अपने आप में एक मिसाल है।
शौचालय, इससे पहले किसी सरकार ने गंभीरता से नहीं सोचा था कि ये भी बुनियादी ज़रूरत का हिस्सा है। आज घर-घर में शौचालय की सुविधा से माताओं-बहनों को जो राहत मिली है वह तो काबिले तारीफ़ है ही, साथ ही पर्यावरण और साफ़-सफ़ाई के प्रति बढ़ती जागरूकता ने ग़रीबों-वंचितों के स्वास्थ्य में भी हुए सार्थक परिवर्तन को परिलक्षित किया है।
सरकार ने ग़रीबों के स्वास्थ्य के प्रति सजगता का प्रमाण देते हुए जन आरोग्य योजना के माध्यम से उनकी स्वास्थ्य देखभाल भी सुनिश्चित की। मात्र 4 महीने में ही इस योजना का लाभ इतना व्यापक रहा कि इसके दूरगामी संभावनाओं के लिए बिल गेट्स ने भी मोदी सरकार की तारीफ़ की थी।
हाल ही में पद्म पुरस्कारों की घोषणा में भी मोदी सरकार के दृष्टिकोण की झलक देखने को मिली, जहाँ ऐसे पुरस्कार लम्बे समय तक भाई-भतीजावाद या संपन्न वर्गों की अमानत रहें, वहीं मोदी सरकार के कार्यकाल में पद्म पुरस्कार की गरिमा भी पुनः लौट आई, कहीं गुमनाम किसान चाची को ये सम्मान प्राप्त हुआ तो कहीं चाय की आमदनी से ग़रीबों के लिए मुफ़्त स्कूल चलाने वाले डी प्रकाश राव को।