शनिवार को कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा आयोजित मेगा रैली में 20 से भी अधिक दलों के नेतागण पहुँचे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। विपक्षी एकता दिखाने के लिए आयोजित की गई इस रैली को तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) अध्यक्ष ममता बनर्जी ने शक्ति प्रदर्शन के तौर पर पेश किया। इस रैली में फारुक अब्दुल्लाह ने EVM को चोर मशीन बताया तो वहीं अखिलेश यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री जनता तय करेगी। रैली में भाग लेने आए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से जब विपक्ष के प्रधानमंत्री उम्मीदवार को लेकर प्रश्न पूछा गया तो वो हड़बड़ा गए।
वहीं पश्चिम बंगाल में विपक्षी पार्टी CPI(M) ने इस रैली को आड़े हाथों लेते हुए विपक्षी एकता की पोल खोल दी। इस रैली के लिए वामदलों के नेताओं को भी निमंत्रण भेजा गया था लेकिन उन्होंने इस आयोजन से किनारा कर लिया और रैली में भाग नहीं लिया। सीपीआई ने तृणमूल कॉन्ग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी ने राज्य में लोकतंत्र और संस्थाओं को तो तबाह कर दिया है लेकिन केंद्र में मोदी से लड़ने के बड़े-बड़े दावे कर रही है।
सीपीआई के राज्य महासचिव और पोलित ब्यूरो के सदस्य सूर्य कान्त मिश्रा ने कहा:
“TMC और BJP एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और दोनों कई ‘अलोकतांत्रिक लक्षण’ साझा करते हैं। TMC को देश में लोकतंत्र पुनर्स्थापित करने की बातें करने का कोई हक़ नहीं है। उन्होंने 2011 में सत्ता सँभालने के साथ ही राज्य में लोकतंत्र को नष्ट कर दिया है और राज्य की संस्थाओं को विकृत कर दिया है। जिस तरह से उन्होंने पिछले पंचायत चुनाव का संचालन किया, वो लोकतंत्र पर एक धब्बा है।”
सीपीआई द्वारा तृणमूल और विपक्षी एकता का दावा करने वाली महारैली को निशाने पर लेना यह बताता है कि विपक्षी दल भले ही मंच से हाथ हिला-हिला कर कितनी भी एकता दिखा लें, रह-रह कर उनके मतभेद सामने आ ही जाते हैं। वामदलों का तृणमूल कॉन्ग्रेस द्वारा आयोजित रैली का बहिष्कार करना भी यही दिखाता है। वामदलों ने कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लिया था और ममता भी वहाँ पहुँची थी।
मिश्रा ने तृणमूल कॉन्ग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को एक ही पन्ने पर रखते हुए यह भी कहा कि जो राज्य में तृणमूल सरकार 2011 से कर रही है, वही केंद्र में राजग सरकार 2014 से कर रही है। उन्होंने कहा कि तृणमूल कॉन्ग्रेस एक राजनीतिक दल के रूप में न तो लोकतंत्र का सम्मान करती है और न ही संवैधानिक मानदंडों का। वामदलों द्वारा महारैली को आँखें दिखाने के बाद विपक्षी एकता के सूत्रधारों में बेचैनी बढ़नी तय है।