केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का उत्तर दे दिया है जिसमें कोर्ट ने तीन विवादास्पद दस्तावेजों को राफेल मामले में दाखिल पुनर्विचार याचिका में साक्ष्य के तौर पर स्वीकार कर लिया है। समाचार एजेंसी एएनआई ने इस आशय से ट्वीट किया है।
Defence Ministry on SC allows admissibility of 3 documents in Rafale deal as evidence: It’s reiterated that petitioners are using documents with intention to present a selective&incomplete picture of internal secret deliberations on a matter relating to National Security &Defence pic.twitter.com/U4fvs6CAf1
— ANI (@ANI) April 10, 2019
एक प्रेस विज्ञप्ति में रक्षा मंत्रालय ने दोहराया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश किए जा रहे दस्तावेज़ न केवल ‘चुराए’ हुए हैं बल्कि उनका इस्तेमाल रक्षा व राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामले में अधूरी और भ्रामक छवि प्रस्तुत करने के लिए किया जा रहा है।
‘याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश दस्तावेज यह नहीं दिखाते कि कैसे मुद्दों का समाधान किया गया था और उचित अधिकारियों से अनुमति ली गई थी। यह सुविधाजनक तरीके से हिस्से चुनकर तथ्यों और अभिलेखों का आधा-अधूरा प्रदर्शन करने का प्रयास है।’
Defence Ministry: The documents presented by the petitioners are failing to bring out how the issues were addressed and resolved and necessary approvals of the competent authorities taken. These are selective and incomplete presentation of the facts and records by the petitioners https://t.co/7fTgpAKWfe
— ANI (@ANI) April 10, 2019
‘जरूरी दस्तावेज़ हम पहले ही दे चुके हैं’
रक्षा मंत्रालय ने इस पर भी जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने जो-जो दस्तावेज़ माँगे थे वे उसे पहले ही दिए जा चुके हैं। यही नहीं, कैग को भी सरकार ने सभी फाइलें और अभिलेख उपलब्ध कराए थे। ‘हमारी मुख्य चिंता इस बारे में है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशील और क्लासिफाइड जानकारी सार्वजानिक हो जाएगी।’ रक्षा मंत्रालय ने अपने कथन में कहा।
बुधवार को राफ़ेल मामले में दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के उस तर्क को ख़ारिज कर दिया था जिसमें गुप्त दस्तावेजों की साक्ष्य के तौर पर स्वीकार्यता पर आपत्ति की थी। कोर्ट अपने ही पूर्व में (गत 14 दिसंबर, 2018) को दिए गए उस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें उसने फ़्रांस की दसौं से 36 राफ़ेल जेट खरीद के मामले की जाँच के आदेश से इंकार कर दिया था।
Defence Ministry: Govt had provided requisite information as desired by SC & also provided all records & files as required by CAG.The main concern of the Government is relating to availability of sensitive & classified information concerning National Security in the public domain https://t.co/wkpyrg9g4s
— ANI (@ANI) April 10, 2019
ताज़ा सुनवाई में कोर्ट का मुख्य ध्यान ‘चोरी’ किए गए दस्तावेज़ों की स्वीकार्यता और उसके विरुद्ध विशेषाधिकार के सरकार के दावे को लेकर था।
केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी-जनरल केके वेणुगोपाल ने तर्क दिया था कि यह पुनर्विचार याचिका सिरे से ख़ारिज कर देनी चाहिए क्योंकि यह जिन दस्तावेजों पर आधारित है वह ‘चोरी’ के हैं।
मार्च में वामपंथी और विवादास्पद अधिवक्ता प्रशांत भूषण 8 पन्नों का एक नोट सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रस्तुत करना चाहते थे जोकि तथाकथित रूप से रक्षा मंत्रालय से चुराया हुआ था और बाद में द हिन्दू के एन राम ने प्रकाशित किया था। राफ़ेल समझौते में मूल्य-निर्धारण के लिए बातचीत हेतु अधिकृत भारतीय दल (Indian Negotiation Team) के इस नोट का इस्तेमाल इस आरोप के साक्ष्य के तौर पर हुआ था कि राजग के समय हुआ राफ़ेल समझौता संप्रग के समय के राफ़ेल समझौते, जिसे ख़ारिज कर दिया गया था, से अधिक महँगा है।
‘पकड़े’ गए थे एन. राम
मोदी सरकार को निशाना बनाने के लिए हिन्दू ने अपने पास मौजूद रक्षा मंत्रालय के नोट में क्रॉपिंग और छेड़छाड़ कर यह दावा किया था कि रक्षा मंत्रालय इस नए समझौते के खिलाफ था और केवल प्रधानमंत्री इसके लिए दबाव बना रहे थे। इस आरोप को बल देने के लिए नोट में से तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर की लिखी एक टिप्पणी को हटा दिया गया था।
हिन्दू की खबर छपने के तुरंत बाद एएनआई ने पूरे दस्तावेज़ को छापा जिसने यह साबित कर दिया कि हिन्दू द्वारा मूल नोट के साथ छेड़छाड़ की गई है। इसको लेकर समाचारपत्र को काफ़ी शर्मिंदगी भी झेलनी पड़ी जिसके बाद एक स्पष्टीकरण कर यह दावा करने की कोशिश की गई कि उनके द्वारा छापा गया नोट नकली नहीं, केवल पुराना है, और मनोहर पार्रिकर की टिप्पणी बाद में जोड़ी गई। पर उनका यह दावा भी सवालों के घेरे में आ गया जब रक्षा विश्लेषक अभिजीत अय्यर-मित्रा ने उसमें मनोहर पार्रिकर के नोट के अलावा अन्य चीज़ें भी मिटाए जाने की ओर इंगित किया।