चुनाव दिल्ली में है, लेकिन चर्चा यूपी के स्कूलों की हो रही है। दिल्ली के गिने-चुने स्कूलों की तस्वीर दिखाते हुए उसकी तुलना यूपी से करते AAP नेता आजकल खूब दिखाई देते है। यूपी एक बड़ा राज्य है। इसकी तुलना दिल्ली जैसे छोटे से केन्द्रशासित प्रदेश से करना तर्कसंगत नहीं है।
फिर भी कुछ तथ्य जाने
- आर्थिक स्थिति के हिसाब से भी देखें तो दिल्ली में औसतन जितनी बड़ी आबादी व्यापार, नौकरी करता है, टैक्सपेयर की सूची में है, उतना यूपी में नहीं है।
- अगर प्रति व्यक्ति आय की बात करें तो जहाँ यूपी में वर्ष 2018-19 में राष्ट्रीय औसत सवा लाख से 49.1% कम थी, वहीं दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से 3 गुनी अधिक थी।
शिक्षा के मसले पर भी दिल्ली और यूपी की तुलना नही हो सकती लेकिन अगर आँकड़ों के आधार पर तुलना करें तो कुछ रोचक तथ्य सामने आते है:
- आज दिल्ली सरकार के पास केवल 1030 स्कूल हैं। इन स्कूलों में प्राइमरी और सेकेंडरी दोनों कक्षाएँ लगती है। वहीं यूपी के स्कूलों की बात करें तो राज्य के 75 जिलों में से 70 जिलों में दिल्ली से अधिक संख्या में स्कूल चलते है। कुल स्कूलों की संख्या बात करें तो यूपी में 1 लाख 60 हजार से भी अधिक स्कूल चलते हैं।
- दिल्ली की अनुमानित आबादी 2 करोड़ है। लगभग 14 लाख बच्चें ही दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ते है। वहीं यूपी के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या डेढ़ करोड़ से अधिक है।
- सरकारी स्कूलों मे पढ़ने वाले बच्चों का औसत दिल्ली की बजाय यूपी में अधिक है।
- दिल्ली का पूरा बजट यूपी में केवल शिक्षा के लिए आवंटित होने वाले बजट की राशि से भी कम है। वर्ष 2019-20 में दिल्ली का जहाँ कुल बजट 60 हजार करोड़ रुपए का था, वहीं यूपी में केवल शिक्षा के लिए आवंटित बजट की राशि 62,938 करोड़ थी दिल्ली के शिक्षा मंत्री इस तथ्य पर ही बहस के लपेटे में आ सकते हैं।
बात अगर शिक्षा में हुए बीतें 5 वर्षों के काम की करें तो बात शिक्षा विभाग में नई नौकरी की सबसे पहले आती है:
- दिल्ली सरकार के आँकड़ों की मानें तो शिक्षा विभाग के 77305 पदों में से 34970 यानी 45 फीसदी पद खाली है। यूपी में इतने पद खाली नहीं हैं।
- दिल्ली में जितने शिक्षक के कुल पद (लगभग 65000) है, उससे अधिक शिक्षकों की बहाली की प्रक्रिया योगी आदित्यनाथ सरकार ने सरकार बनाते ही शुरु कर दी। यूपी में बीते 3 वर्षों में 68000 से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरु हुई है। न्यायिक प्रक्रिया पूरी होते ही ये शिक्षक स्कूलों में पढ़ाने लगेंगे। यही नहीं, यूपी ने लाखों अतिथि शिक्षकों के मसले सुलझाए हैं, जो राजनीतिक और शैक्षिक रूप से बेहद संवेदनशील थे।
- दिल्ली में भारी बजट होने और बड़ी संख्या में शिक्षकों के पद खाली होने के बावजूद स्थाई शिक्षकों के 5% खाली पद भी नही भरे जा सकें है, वही गेस्ट टीचर बहाल कर सकने की शक्ति होने के बावजूद लगभग 15% शिक्षकों के पद खाली है।
बात केवल स्कूली शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए हुए प्रयासों की ही करे तो:
- जब यूपी में नई सरकार 2017 में बनी तो उसने प्रदेश के लगभग दो तिहाई से अधिक यानी 1 लाख 2 हजार स्कूलों के कायाकल्प का बीड़ा उठाया और बीते ढाई सालों में ही 54000 से अधिक स्कूलों के रिनोवेशन अर्थात सजा-सँवार कर बेहतर बना दिया है। एक लाख का लक्ष्य अगले वर्ष तक पूरा हो जाएगा।
- दिल्ली में जब सरकार बनी तो केवल 5% अच्छें स्कूलों को छाँटा गया, उन्हीं पर ध्यान दिया गया। एक हजार में से केवल 54 स्कूल चुने गए, उन्हें मॉडल स्कूल का नाम दिया। उपलब्ध आँकड़े बताते है कि 4 वर्ष बाद भी आधे स्कूलों में ही काम पूरा हो सका। इन्हीं में से 2 में स्विमिंग पूल, एक में जिम बनाए गए और बातें ऐसे बनाई गई मानों सभी स्कूलों में क्रांति आ गई हो।
इसके अतिरिक्त अगर कुछ अन्य प्रयासों की बात करें तो:
- आर्थिक रूप से गरीब होने के बावजूद यूपी के सभी स्कूलों में न्यूनतम 12500 और अधिकतम डेढ़ लाख तक की राशि दी गई ताकि वे अपने जरूरतों को पूरा कर सकें।
- यूपी के 5,000 प्राइमरी और एक हजार अपर प्राइमरी स्कूलों को English Medium Schools के रूप में Convert किया गया है।
- शिक्षकों और बच्चो की बेहतरी के लिए DIET के खाली पदों को भरा गया है।
- प्रशासनिक व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए 2009 बैच के IAS अधिकारी विजय किरण आनंद जी को पहला Director-general of school education (DGSE) बनाया गया। कड़क ऑफिसर माने जाने वाले विजय जी की कुंभ के सफ़ल आयोजन में बड़ी भूमिका थी।
यूपी बस विज्ञापनों पर ध्यान दे दे तो अच्छे सरकारी स्कूलों की फोटों की बाढ़ आ जाएगी।