अफगानिस्तान में तालिबान के तेजी से पैर पसारने पर अफगान सरकार ने पूरी जंग को खत्म करने के लिए तालिबान के सामने सत्ता बँटवारे का प्रस्ताव रखा है। सत्ता साझेदारी का यह ऑफर वार्ताकारों की मदद से तालिबान के समक्ष रखा गया है। इधर, भारत ने अफगान की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए वहाँ के हिंदुओं और सिखों को सहायता देने का वादा किया है और दूसरी ओर भारत में रहने वाले अफगानी शर्णार्थी भी वापस अपने मुल्क लौटने से डर रहे हैं।
सत्ता साझेदारी का ऑफर
अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से 10 की राजधानियों पर तालिबान ने कब्जा जमा लिया है। गुरुवार को उसने गजनी शहर पर भी कब्जा किया, जो राजधानी काबुल से मात्र 150 किलोमीटर की ही दूरी पर स्थित है। इसके बाद ही तालिबान द्वारा मुल्क में पूर्ण कब्जा करने की आशंकाएँ बढ़ गई हैं। एएफपी ने सरकारी वार्ताकार के हवाले से बताया, “सरकार ने कतर को मध्यस्थ के रूप में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। इसमें तालिबान को देश में हिंसा रोकने के बदले में सत्ता में साझेदारी का प्रस्ताव दिया गया है।”
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बताया कि एक अमेरिकी सुरक्षा अधिकारी ने अंदेशा जाहिर किया है कि अगले 30 दिनों के अंदर राजधानी काबुल को तालिबान अलग-थलग कर देगा और अगले 90 दिनों के अंदर वह मुल्क की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लेगा।
भारत ने जताई चिंता, हिंदू-सिखों के साथ संपर्क में
भारत के विदेश मंत्रालय ने आज अफगान में शांति बहाली की कामना करते हुए कहा कि वह अफगान सरकार की सभी शांति पहलों का समर्थन करता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, “सुरक्षा की स्थिति चिंता का विषय है। हम लगातार मॉनिटर कर रहे हैं। हम तत्काल और लगातार सीजफायर की उम्मीद करते हैं। हम अफगानिस्तान की सभी शांति पहलों का समर्थन कर रहे हैं। हमारी प्राथमिक चिंता उस देश में शांति और स्थिरता की बहाली को लेकर है। हम एक संप्रभु अफगानिस्तान के लिए एक समृद्ध भविष्य की आशा करते हैं।”
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने काबुल स्थित दूतावास के न बंद होने की जानकारी देते हुए कहा कि वह सिखों और हिंदुओं को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। उन्होंने बताया कि पिछले साल काबुल में स्थित दूतावास ने हिंदू और सिख समुदाय के 383 सदस्यों को अफगानिस्तान से भारत आने में मदद की थी। उन्होंने कहा, ”काबुल में हमारा मिशन अफगान हिंदू और सिखों के साथ संपर्क में है और हम उन्हें हर जरूरी सहायता सुनिश्चित करेंगे।”
याद दिला दें कि अभी हाल में यह खबर भी आई थी कि तालिबानी आतंकियों ने वहाँ गुरुद्वारे पर कब्जा कर लिया। इसके बाद कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से आग्रह किया था कि अफगानिस्तान से हिंदू और सिख समुदाय के लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने की व्यवस्था की जाए। पत्र में शेरगिल ने कहा था कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी के हिसाब से करीब 650 सिख और 50 हिंदू अफगानिस्तान में फँसे हुए हैं और ये लोग तालिबान का निशाना बन सकते हैं। उन्होंने कहा था कि इन लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने की व्यवस्था की जाए।
अफगानी शर्णार्थियों ने लौटने से किया मना
उल्लेखनीय है कि अफगान की खराब स्थिति को देखकर भारत ने अपने नागरिकों को वहाँ से फौरन निकलने को कहा था, साथ ही मजार-ए-शरीफ से नई दिल्ली के लिए विशेष उड़ान का संचालन किया था। वहीं, भारत में रह रहे अफगानी शर्णार्थियों का भी अब अपने मुल्क लौटने का मन नहीं है।
दिल्ली के जंगपुरा में रहने वाले दाऊद शरीफी उन्हीं शरणार्थियों में से एक हैं। वह पिछले 7 साल से अधिक समय से भारत में रह रहे हैं। अफगानिस्तान और तालिबान के बीच जारी जंग को देखते हुए दाऊद शरीफी कहते हैं, “मैं हमेशा से अपने वतन लौटने की इच्छा रखता हूँ, लेकिन मेरे बच्चे जो इस देश (भारत) में पैदा हुए हैं, वे इसे कभी पसंद नहीं करेंगे। अफगानिस्तान में हर जगह हिंसा, युद्ध और यातनाएँ हैं। अगर कोई भी वहाँ जाएगा तो मारा जाएगा।”
न्यूज 18 के अनुसार, दाऊद दिल्ली में अफगान शरणार्थी संघ के भी प्रमुख हैं। उनका दावा है कि अफगानिस्तान के हालात देखते हुए 30 हजार अफगान नागरिक भारत में शरण लेने की सोच रहे हैं, क्योंकि भारत उन देशों में से एक है जो अफगान शरणार्थियों को अपने यहाँ शरण देता है। यहाँ के अलावा पाकिस्तान और ईरान भी अफगानिस्तान के नागरिकों को शरण देते हैं।
दूसरी ओर 2018 से भारत में रहने वाले अफगानी शर्णार्थी फरहाद कहते हैं, “मैं अफगानिस्तान नहीं लौट सकता क्योंकि तालिबान पेंटिंग को हराम मानते हैं उन्होंने इसे गैर-इस्लामिक करार दिया है। मेरा पेशा वहाँ स्वीकार नहीं किया जाएगा।” फरहाद बताते हैं कि उनकी पेंटिग्स उनके देश में काफी प्रसिद्ध थीं। यूनेस्को की ओर से निकाली गई एक किताब में उनका नाम भी है। वह कहते हैं कि भले ही अफगानिस्तान में चल रही लड़ाई के दौरान भारत सबसे सुरक्षित देशों में हो, लेकिन एक शरणार्थी के रूप में उनकी स्थिति हमेशा उन्हें परेशान करती रहेगी।